जनभ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन का कहीं अपहरण न हो जाए !

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार का होना कोई ऐसा बडा रहस्योद्धाटन नही है। जिसे जानकर आश्चर्य उत्पन्न होता है। राजनेताओं का भ्रष्ट आचरण, खासकर आर्थिक मामलों में भी जनता का जानापहचाना ही है। लोगों ने कुछ सीमा तक इस स्थिति को स्वीकार भी कर लिया है। जो नेता पैसे लेकर काम कर देता है उसे जनसाधारण अब ईमानदार मानने लगा है। उसकी दृष्टि में भ्रष्टाचारी वह हो गया है जो पैसा लेकर भी काम नहीं करता और उस पैसे को डकार लेता है। यदि जनसाधारण की मानसिकता इस प्रकार की हो चुकी है तो आखिर अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के मामले को लेकर जब जंतर-मंतर पर बैठते हैं तो उनके समर्थन में वहां हजारों की भीड कैसे इकट्ठा हो जाती है? दिल्ली के इतर कुछ अन्य बडे शहरों में भी अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन करने के लिए बहुत से लोग एकत्रित हुए हैं। वैसे अन्ना हजारे का आंदोलन प्रत्यक्ष रुप से लोकपाल विधेयक को लेकर है जिसके प्रारुप को लेकर हजारे का सरकार के साथ मतभेद है। अन्ना को लगता है कि लोकपाल विधेयक आ जाने से भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसी जा सकती है। उनका कहना है कि विधेयक के प्रारुप को तैयार करने वाले समिति में कुछ जनप्रतिनिधि भी रहने चाहिए। इसके लिए अन्ना हजारे के समर्थक स्वामी अग्निवेश, प्रशांत भूषण इत्यादि सिविल सोसायटी शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रारुप समिति में सरकारी प्रतिनिध भी हो और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि भी। अब यह सिविल सोसायटी से क्या अभिप्राय है यह बहुत स्पष्ट नहीं हो पा रहा। समाज अथवा सोसायटी के प्रतिनिधि हो यह बात समझ में आती है लेकिन यह मानकर चलना कि समाज का एक अंश सिविल में आता है और दूसरा गैर-सिविल में आत है आम आदमी को परेशान करने वाला है। दूसरा सिविल सोसायटी के नुमाइंदे कैसे चुने जाएंगे? जिसको स्वामी अग्निवेश सिविल सोसायटी का प्रतिनिधि घोषित कर देंगे। क्या वे सचमुच जनसमाज का प्रतिनिधित्व कर रहे होंगे। यहां भी अनिश्चय की स्थिति बरकरार है। उदाहरण के लिए अग्निवेश विनायक सेन को सिविल सोसायटी का प्रतिनिधि मानते है जबकि उच्च न्यायालय की दृष्टि में वह अपराधी है।

परन्तु भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा इतना तीव्र है कि इन प्रश्नों पर विचार करने का समय ही नहीं है। अन्ना हजारे भी शायद इसे अच्छी तरह जानते ही हैं क्योंकि महाराष्ट्र के जिन गांवों में उन्होंने अपने अथक परिश्रम और अपने दैवीय आचरण से महापरिवर्तन किया है वहां के अनुभव उन्हें इतना तो बताते ही होंगे कि गांव का वह जनसमाज भी सिविल सोसायटी में ही आता है। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतीक बनकर उभरे हैं जिस भ्रष्टाचार का हमने प्रारम्भ में जिक्र किया था उसकी सीमाओं को भी तोडकर राजनेता , नौकरशाह , अपराधियों की त्रिमूर्ती ने आपसी गठबंधन से इतनी भयंकर लूट मचायी कि भ्रष्टाचार को किसी सीमा तक स्वीकार करने वाला जनसमाज भी आहत हो उठा। कॉमनवेल्थ खेलों में, आदर्श सोसायटी में, केन्द्रीय सतर्कता की आयुक्त की नियुक्ति में, 2 जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में, एस बैड घोटाले में इस त्रिमूर्ति ने इतनी भयंकर लूट मचायी कि देश की व्यवस्था ही खतरे में पड गयी। इन सबसे बढकर बोफोर्स घोटाले के आरोपी क्वात्रोची को बचाने में जिस प्रकार सोनिया गांधी का ग्रुप और जांच एजेंसियां मशक्कत कर रहीं थी उससे लगता था कि व्यवस्था भ्रष्टाचारियों को बचाने में लगी हुइ है न कि उनको दंडित करने में जिन राजनेताओं का काला पैसा विदेशों के बैंको में रखा हुआ है उनका नाम छिपाने में सरकार उसी प्रकार मेहनत कर रही है जिस प्रकार क्वात्रोची को देश से भगाने में की थी। स्थिति यहां तक दयनीय हो गयी है कि हसन अली जैसे लोगों जिनके तार विदेशी आतंकवादियों से जुडे होने का संदेह है को पकडा जाए-इसके लिए न्यायालय को सरकार सरकार से बार-बार कहना पड रहा है। जाहिर है पानी सिर से गुजरना शुरु हो गया है लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही क्योंकि इस बार भ्रष्टाचारी के रुप में सरकार ही कटघरे में दिखायी दे रही है। कांग्रेस के पास इसका उत्तर है? भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले बाबा रामदेव उसने यह उत्तर ‘यू ब्लडी इंडियन’ कहकर दिया था। देखना है कि अन्ना हजारे के लिए कांग्रेस के तरकश में कौन सा तीर है?

लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ यह लडाई अंततः भारत की आमजनता को ही लड़नी पड़ेगी। वह जनता जो खेतों में दिन -रात अपना पसीना बहाती है और कारखानों में अपने ही पसीने से नहाती है। दिल्ली में भ्रष्टाचारी जिस लूट को अंजाम दे रहे है वह दरअसल भारत की इसी आम जनता का पैसा है। सिविल सोसायटी ने तो उसे पैसे को डकारने के अलग-अलग तरीके निकाल रखे हैं। अन्ना हजारे के रुप में देश को एक नया जयप्रकाश मिला है। बाबा रामदेव के रुप मेंं एक नया कौटिल्य मिला है जो भारत के लिए एक नया अर्थशास्त्र लिख रहा है और श्री श्री रविशंकर जी के रुप में एक नया सत्याग्रही मिला है जो देष में घूम-घूमकर अलख जगा रहा है। कुछ लोग इन प्रतीकों का यदि अपहरण कर इस सारे आंदोलन की हत्या कर देंगे तो भ्रष्टाचारियों को अपना यह देशद्रोही खेल जारी रखने का एक बार फिर मौका मिल जाएगा। ध्यान रखना चाहिए कि जयप्रकाश नारायण के समग्र कांति आयोजन के सुफल को जहरीला करने में भी उसी प्रकार के कुछ लोगों की शमूलियत थी और उन्होंने अपने प्रयासों से आंदोलन की प्राप्ति को तारपीड़ो कर दिया। जरुरी है कि आंदोलन के शुरु में ही ऐसी ताकतों की शिनाख्त कर ली जाए और उन्हें इस पवित्र आंदोलन से बेदखल कर दिया जाए।

1 COMMENT

  1. अग्निहोत्री जी लिखा आपने अच्छा है लेकिन इस प्रायोजित कार्यक्रम अपहरण करने की आवश्यकता ही नहीं है यह तो अन्ना हजारे जैसे ईमानदार महापुरूष को मोहरा बना कर खेला गया एक खेल मात्र था जिसमे इस महानायक को पता ही नहीं चलने दिया गया की उससे जो कराया जा रहा है वह एक नाटक से ज्यादा कुछ नहीं, इसमें जनता की भावनाओं का अपहरण अवश्य हुआ है जो जनता कोमनवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसायटी घोटाला,कालाधन से बुरी तरह क्रोधित थी उसे पता ही नहीं चला की उनको एक वैज्ञानिक तरीके से शांत कर दिया गया है, वह चार दिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध चीख-चीख कर थककर अपने घर लौट चुकी है, रामदेव बाबा भी हैरान परेशान है की उनकी कई दिनों की तपस्या कांग्रेस चार दिन मै कैसे सफाचट कर गयी, स्वामी सुब्रमनियम, जेठमलानी अपनी खोपड़ी खुजा कर पूछ रहे हैं की भैया अब दुबारा भ्रष्टाचार का विरोध कैसे शुरू होगा,

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