कविता

विचारों का अंत नहीं,अवतार प्रतिस्थापित होते अवतार से


आज भाईयों को मरने मारने की,
जो बात करे उसे भाईचारा कहते!

क्या भाई कभी भी ऐसे हो सकते,
जो भाई को मौत के मुंह ढकेलते?

जो सबके अमन में खलल डालते,
उनको अमन पसंद बिरादर कहते!

क्या कभी ऐसे जाति-बिरादर होते,
जो मासूम बच्चों में जहर घोलते?

आज विश्व के मानवीय मजहबों में,
मानवता नहीं मजहबी उन्माद होते!

काश कि समाज-सुधारक बन जाते,
अपनी संस्कृति की बुराइयां मिटाते!

मां-बहन-बेटियों के लिए मसीहा बन,
बालक-मजदूर-दलितों के लिए लड़ते!

अपने धर्म-संस्कृति की कुरीतियों को,
बुद्ध-जिन-नानक-गोविंद सा संहारते!

विडंबना है कि अपनी अच्छाइयां छोड़,
विदेशी मजहबों की बुराई अपना लेते!

अगर बालविवाह, भ्रूणहत्या, जातिवाद,
दहेज, सतीप्रथा बुराई थी तो छोड़ देते!

रक्त रिश्तेदारी निकाह, तलाक, हलाला,
फतवा,जिहाद जैसी कुरीतियां अपनाते!

चले थे भाई-भाई में भेद-भाव मिटाने,
विभेदक वेशभूषा,भाषा,चाल, ढाल पाते!

जिन आक्रांताओं ने खेत-खलिहान लूटे,
मां-बहन-बेटियों को छिनके धर्म बदले!

उनके रंग-ढंग-रीति-संस्कृति मान लेते,
वो ब्रदर-विरादर, भाई काफिर हो जाते!

पूर्व धर्म के नृत्य-गान, मूर्ति-प्रतिमा पर
फतवा देते,पर सूर-तान में अजान गाते!

नए ईश-नबी के मूर्ति-चित्र नहीं बनाते,
पर पूर्व आराध्य के नग्न चित्र उकेरते!

विदेशी धर्मगुरु देश-धर्म-आस्था के शत्रु,
ईश्वर प्रेमी नहीं, मजहबी गुलाम बनाते!

सच में कोई मजहब,ईश्वर की हद नहीं,
मजहब तो स्थानीय तौर-तरीके ही होते!

इंसान बाघ-भालू जैसा हिंसक जीव नहीं,
शाकाहारी, स्तनधारी विवेकी जन्तु होते!

जलहीन, तृणहीन व कठिन जलवायु में,
जीव जीवभक्षक,हिंसक प्राणी हो जाते!

जहां जल नहीं, वहां चुल्लूभर में जीते,
जहां हरियाली नहीं, वहां हरे झंडे होते!

जहां रज-रज, जमीं नहीं, सिर्फ सूर्यातप,
वहां जर-जोरू-जमीन-चांद-तारे पे मरते!

जहां दूर-दूर तक, गांव घर नहीं होते हैं,
वहां कबिलाई-बिरादरी में ही रिश्ते-नाते!

कहीं उमस ताप, कहीं ठंडक अभिशाप,
झुलसी चमड़ी, काले-गोरे लोग कराहते!

कोई ऊंट की पीठ, चर्म-मांस पर पलते,
कोई शाक, सब्जी कमी से सूअर खाते!

इन्हीं भौगोलिक परिस्थिति के कारण,
सब के खान-पान, रहन-सहन बदलते!

भारत है सुजलाम, सुफलाम, मलयज,
शीतलाम,शस्यश्यामलाम धरती माते!

बारह मास में, छः ऋतुएं जहां होती,
जहां मां-माटी-बहन-बेटी पूजित होती!

जहां चतुर्वेद की ऋचाएं गूंजती रहती,
जहां गो माता दूध की नदियां बहाती!

जहां सीता सी बेटी, लक्ष्मण सा भाई,
जहां हर घर में राम, कृष्ण बेटा होते!

जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है,
धर्म,शास्त्र,ईश्वर के कठपंडे दंडित होते!

इतनी अच्छी संस्कृति को छोड़ करके,
विदेशी धर्म-संस्कृति को क्यों अपनाते?

वैसे मजहबों को, जहां नए विचारों को
जगह नहीं,नई सुधार पे पाबंदी लगते!

भारतीय संस्कृति में,ज्ञानी से विज्ञानी,
आत्मा से महात्मा व परमात्मा बनते!

राम-कृष्ण-बुद्ध-जिन-नानक-गोविंद हैं
उदाहरण जो आत्मा से परमात्मा हुए!

भारत में विचारों का अंत नहीं होता,
अवतार प्रतिस्थापित होते अवतार से!

भारतीय संस्कृति में, सनातन रीति में,
‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’,जीव समझे जाते!

मानव हर्बीवोरस, नन कार्निवोरस होते,
होमोसेपियंस सेपियंस मैमेल के जैसे!

हर मानव ईश्वरीय प्रतिनिधि हैं ऐसे,
जो ईश्वर की सृष्टि की सुरक्षा करते!
—विनय कुमार विनायक