स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। ज़रा रुककर सोचिए…। क्या हो रहा है…? इसके पीछे का मकसद क्या है…? यह क्रूरता आखिर क्या चाहती है…? इनको संरक्षण कौन दे रहा है…? इसके पीछे कौन लोग हैं…? यह फंडिग कहाँ से आ रही है…? ऐसे बहुतेरे सवाल हैं जिसका जवाब तो सरलता से नहीं मिल सकता। यह तो तय है। हाँ अगर जवाब चाहिए तो गहराईयों में उतरकर उस काली कोठरी के घुप अँधेरे में झाँककर देखना होगा। क्योंकि शायद काले कारनामों को इस प्रकार से गढ़ा गया है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि शायद इसका अंदरूनी हिस्सा कुछ और है तो बाहरी हिस्सा कुछ और। ऐसा प्रतीत होता है कि बड़ी ही चतुराई के साथ इसे ढ़कने का प्रयास किया गया है। सभी काली करतूतों पर एक ऐसा सफेद चमचमाता हुआ पर्दा डाल दिया गया है जिससे अंदर का हाल बाहर से नहीं समझा जा सकता।
जी हाँ यही सच है। क्योंकि जो पर्दा पड़ा हुआ है वह मात्र पर्दा नहीं है। क्योंकि वह पर्दा यूं ही कहीं से आकर टंग नहीं गया। बल्कि ऐसा लगता है कि बड़ी ही चतुराई के साथ इस पर्दे को योजना बद्ध रूप से काले कारनामों के ठेकेदारों ने डाल रखा है। यह एक बड़ी मजबूत गढ़ी हुई चाल के किरदार के रूप में नजर आता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस पर्दे के पीछे बहुत ही बडा खेल खेला जा रहा हो। अगर आप इस पर्दे के पीछे झाँककर देखेंगे तो हो सकता है कि आपको अंदर आश्चर्यजनक चेहरे भी नज़र आ सकते हैं। जिनके बारे में आप सोच भी नहीं सकते। शायद यही वह पर्दा है जिसके पीछे कोई आपको फंडिग करता हुआ दिखायी देगा तो कोई संरक्षण एवं छत्र-छाया बनाए हुए दिखाई देगा। यह ऐसे चेहरे होंगे जोकि खुले रूप में तो विश्व मंच से आंतक का मुकाबला करने की बात करते हैं साथ अपने आपको आतंक के धुर विरोधी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई कुछ और ही हो सकती है। क्योंकि ढ़ोंग और सत्य में बहुत ही बड़ा अंतर होता है यह तो आप खुद ही समझ सकते हैं। जबकि यह सत्य है कि अगर पूरी तीव्रता के साथ आतंक के खात्मे का संकल्प लेकर जोरदार प्रहार किया जाए तो आतंक रूपी राक्षस का अंत होना निश्चित है। क्योंकि दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान नाम मात्र का देश है। एक छोटी सी चादर में सिमटा हुआ देश पूरी दुनिया को खुला चैलेंज कैसे कर रहा है। यह बड़ी अजीब स्थिति है। जबकि पाकिस्तान पूरी तरह से कंगाल हो चुका है। अंदर से खोखला देश क्या पूरे संसार को इस तरह से खुला चैलेंज कर सकता है…? यह बड़ा सवाल है।
इसलिए इस सफेद पर्दे के पीछे काली कोठरी में झाँककर देखने जरूरत है। क्योंकि कोई भी समस्या इतने वर्षों तक नहीं चल सकती। यदि कोई भी समस्या इतने वर्षों से अनवरत चली आ रही है तो इसके उस तार को ढ़ूँढ़ना पड़ेगा जिससे इसमे करेंट आ रहा है। अतः यह तार पीछे कहाँ से जुड़ा हुआ है यह समझना बहुत ही जरूरी है। दो हिस्सों बंटा हुआ संसार जिसमें दोनों ओर दो महाशक्तियाँ अपने-अपने आधार पर खेमाबंदी किए हुए खड़ी हुई हैं। एक ओर जहाँ अमेरिका अपनी ताकत का भरपूर प्रदर्शन कर रहा है तो दूसरे खेमे में चीन अकड़कर खड़ा हुआ है। इसी रस्साकशी के बीच पूरा खेल खेला जा रहा है। जिसमें संसार की बेगुनाह जनता पूरी तरह से पिस रही है। कार्यशैली को देखिए तो समझ आ जाएगा कि अंदर खाने दोनों देश एक ही पायदान पर खड़े हुए हैं। यह एक ऐसा रूप है जैसे कि फिल्मों की स्टोरी में देखने को मिलता है कि जिस अभिनेता को जो रोल दिया जाता है वह अपना रोल अदा करता है। यदि आतंकी गतिविधियों पर गहराई के साथ दृष्टि डाली जाए तो पूरी तसवीर पटल पर उभरकर आ जाती है। क्योंकि आतंकियों की पनाहगाह बना हुआ पाकिस्तान पूरी दुनिया के लिए सिर दर्द बना हुआ है। पाकिस्तान की आतंकी खेती की उपजी हुई फसल पूरे संसार को रक्तरंजित कर रही है। जिस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। अंकुश न लग पाने का कारण क्या है…? भुखमरी की कगार पर खड़ा हुआ पाकिस्तान दूसरे देशों के टुकड़ों के सहारे अपनी जिन्दगी गुजार रहा है। सच्चायी यह है पाकिस्तान की जनता पूरी तरह से तंगहाली में गुजर-बसर कर रही है। पाकिस्तान में मंहगाई ने चरम सीमा को भी लाँघ दिया है। तो फिर यह खुली चुनौती क्यों…? जर-जर कमजोर पाकिस्तान के अंदर यह आतंकी फैक्ट्री कैसे संचालित हो रही है यह बड़ा सवाल है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई मजबूत देश अंदर खाने आतंक की खेती को सींचकर तैयार कर रहा हो…? यह समझने की जरूरत है। क्योंकि दूसरों के टुकड़ो पर पलने वाले पाकिस्तान को दो जून की रोटी के लिए ही कठिन संघर्ष करना पड़ रहा है। तो फिर सवाल यह उठता है कि अथाह धन कहाँ आ रहा है जिसका गलत उपयोग हो रहा है। यदि अतीत से लेकर वर्तमान तक के पन्नों को पलटकर देखें तो स्थिति काफी हद तक साफ हो जाती है। क्योंकि विश्व के दो धुर विरोधी देशों का रवैया पाकिस्तान के प्रति एक समान है। जबकि ऐसा कदापि संभव ही नहीं है। कि दो धुर विरोधी देश किसी एक देश पर एक मत हों। क्या यह अटूट विश्वास इस बात का संकेत नहीं दे रहा है कि जो कुछ बाहर से दिख रहा है ऐसा पर्दे के पीछे कदापि नहीं है। क्योंकि चीन जहाँ पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर रहा है वहीं अमेरिका कि ट्रंप सरकार भारत से मित्रता के कारण पाकिस्तान का खुलकर समर्थन न करते हुए ट्रंप सरकार प्रिंस सलमान के सहारे परोक्ष रूप से पाकिस्तान की पूरी तरह से मदद कर रही है। क्योंकि अमेरिका कि इच्छा एवं भावनाओं के विपरीत जाकर क्या प्रिंस सलमान पाकिस्तान की खुलकर मदद कर सकते हैं…? नहीं ऐसा कदापि संभव नहीं। क्योंकि अभी हाल ही में ट्रंप के दबाव के कारण प्रिंस सलमान ने इज़राईल को मान्यता देते हुए सार्वजनिक मंच पर इज़राईल के साथ हाथ मिला लिया।
इसलिए इस विषय को बल प्राप्त हो जाता है कि क्या ऐसा तो नहीं कि पाकिस्तान के अंदर पनपता हुआ आतंकवाद किसी बड़े देश की परोक्षरूप से साज़िश तो नहीं। अगर यह साज़िश नहीं है तो पाकिस्तान पर खुलकर सैन्य कार्यवाही क्यों नहीं की जाती…? यह बड़ा सवाल है। क्योंकि आतंक का सफाया होना स्वच्छ समाज के लिए बहुत ही जरूरी है। जबतक आतंक का सफाया नहीं होगा तबतक संसार के अंदर शांति व्यवस्था के सामने लगातार चैलेंज आता रहेगा। जिससे आम आदमी का जनजीवन पूरी तरह से प्रभावित होता रहेगा। आतंक की पराकाष्ठा अब तो यहाँ तक पहुँच गई की मजदूरों को भी नहीं बख्शा जा रहा। यह बहुत ही चिंता का विषय है। दो जून की रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत करने वाले मजदूर आज आतंकियों की गोलियों का निशाना बन रहे हैं। जोकि बहुत ही चिंताजनक है। आतंकियों के द्वारा मजदूरों को निशाना बनाया जाना अपने आपमें बहुत ही दुखद है। यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि आतंकवादियों की मानसिकता कितनी घटिया एवं थकी हुई है। क्योंकि हाड़तोड़ मेहनत करके दो जून की रोटी कमाने वाले मजदूर भला किसी को क्या राजनीतिक एवं सामाजिक वर्चस्व की चुनौती देगें। मजदूर भला क्या राजनीति करेगें वह तो बेचारे हाड़तोड़ मेहनत करके दो जून की रोटी पर ही अपनी पूरी जिन्दगी गुजारे दे रहे हैं। मजदूरों की गई हत्या आतंकियों के मानसिक दिवालिए पन का अडिग प्रमाण है।
दुनिया के मानचित्र पर जिसे पाकिस्तान कहते हैं वह कहीं दूर-दूर पाकिस्तान नहीं रह गया अपितु वह पूर्ण रूप से पापिस्तान में परिवर्तित हो चुका। आतंकवादियों ने अपना क्रूर रूप दिखाते हुए गरीब मजदूरों का एक बार फिर नरसंहार किया है। जिसमें 11 लोगों को बन्दूकों से निशाना बनाया गया है। यह सभी के सभी खनन मजदूर थे। जोकि खान में मजदूरी करके अपनी जीविका चला रहे थे। जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। खबरों के अनुसार बंदूकधारियों ने मजदूरों को उस समय अगवा कर लिया जब मजदूर काम पर खदान में जा रहे थे। इस दौरान सभी को पास की एक पहाड़ी पर ले जाया गया जहां उन्हें आतंकियों ने गोली मार दी। जानकारी के मुताबिक पहले आतंकियों ने मजदूरों को अगवा किया उसके बाद आतंकियों ने जातीय आधार पर सभी मजदूरों की पहचान की। इनमें से 11 मजदूर हजारा समुदाय के निकले उन्हें अलग ले जाकर एक पहाड़ी पर बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस प्रकार के आतंकी कृत्य से एक बात फिर से स्पष्ट रूप से निकल आई वह यह कि यह घटना जातीय आधार पर कारित की गई। जिसमें योजनाबद्ध रूप से एक समुदाय को निशाना बनाया गया।
पाकिस्तान के अंदर यह घटना एक बार फिर से तालिबानी आतंकवादियों के कुकृत्यों को दोहराती है। क्योंकि पिछले कुछ समय पहले अफगानिस्तान में भी भारी संख्या में हज़ारा समुदाय को निशाना बनाया गया जिसमें औरतों के साथ बलात्कार किया गया साथ ही बच्चों को अगवा कर लिया गया। जिसमें तालिबानी आतंकियों के द्वारा पुरुष हजारा समुदाय की हत्या करने बाद मृतकों के परिवारों को गुलाम बना लिया गया था। अफगानिस्तान में हामिद करजई की सत्ता तो आई थी लेकिन उनके 10 साल तक राष्ट्रपति रहने के बाद भी हालात नहीं बदले थे। हामिद करजई ने अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए कभी भी चरमपंथियों पर नकेल नहीं कसी थी। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए कि सत्ता के लोभ में करजई सरकार ने कभी भी आतंकियों पर करारा वार नहीं किया था जिससे आतंकियों के हौसले बढ़ते चले गए। हजारा समुदाय के ऊपर किस प्रकार से बरबरता हो रही है इसका आंकलन एक खौफनाक घटना से लगाया जा सकता है कि अफगानिस्तान के मैदान शहर के पश्चिम में 40 किलोमीटर लम्बा एक राजमार्ग जिसको आज मौत की सड़क के तौर पर जाना जाता है। इस सड़क के बारे में बताया जाता है कि कट्टरपंथियों ने हज़ारा समुदाय के लोगों को गाजर मूली की तरह काट दिया था। जानकारी के अनुसार इस सड़क को आतंकियों ने हजारा समुदाय की हत्या करके लाशों से पूरी तरह से पाट दिया गया था।
पाकिस्तान में हजारा समुदाय को प्रतिदिन निशाना बनाया जाता है। फरवरी 2013 में पाकिस्तान के क्वेटा में हज़ारा लोगों पर बड़ा हमला हुआ था जिसमें 80 लोगों को मार दिया गया था। जिसमें 70 लोग हजारा समुदाय के थे। हजारा को जब निशाना बनाया गया था तो उसमें 10 अन्य लोगों की भी जाने चली गईं थीं। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि 2010 से 2014 के बीच हज़ारा क़ौम के लोगों को पाकिस्तान में खास तौर पर निशाना बनाया गया जिसमें 450 लोग को 2012 में मारा गया। उसके बाद 2013 में 400 लोगों की हत्या कर दी गई मरने वाले सभी लोग हजारा समुदाय से थे। एक बार फिर पाकिस्तान में हजारा समुदाय को निशाना बनाया गया है। जिसमें अब सभी गरीब मजदूरों को आतंकियों ने अपनी बंदूकों का निशाना बनाया। अतः अगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हकीकत में आतंक का सफाया चाहता है तो पाकिस्तान के एक बार फिर से दो टुकड़े करने पड़ेगें जिसमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग राष्ट्र करना पड़ेगा। जिसके बाद पाकिस्तान पूरी तरह से कमजोर हो जाएगा। साथ ही आंतक का सफाया भी हो जाएगा। जिसमें बलूचिस्तान की जनता काफी दिनों से संघर्षरत है।
सज्जाद हैदर