मनोज कुमार
प्रतिभावान नाट्य निर्देशक आलोक चटर्जी के मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की कमान सौपने के बाद गैरों पे करम, अपनों पे सितम के भाव से मुक्ति मिली है. आलोक के चयन से मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय को नया आकार और स्वरूप मिलेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है. आलोक को कमान सौंपने का राज्य सरकार का फैसला सौफीसदी मध्यप्रदेश के हक में है और इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के फैसले की सरहाना की जानी चाहिए. अब तक मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की कमान संजय उपाध्याय के हाथों में थी.
संजय उपाध्याय सशक्त रंग निर्देशक हैं और उनके नाटक बिदेसिया से उनकी लोकप्रियता अपार है. उन्होंने अपने कार्यकाल में मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय को संवारने की कोशिश की लेकिन वह मुकम्मल चेहरा नहीं दे पाए जो मध्यप्रदेश की जरूरत थी. इस नाट्य विद्यालय की स्थापना ही इस नसीहत के साथ की गई थी कि प्रदेश के रंगकर्मियों को बड़ा केनवास मिले. उनकी प्रतिभा का समुचित उपयोग हो सके लेकिन मध्यप्रदेश की तासीर समझना हर किसी के वश की बात नहीं है सो कहीं कुछ कमी रह गई थी. मध्यप्रदेश का रंगमंच संजयजी के अवदान और सहयोग के लिए हमेशा आभारी रहेगा और उन्हें अपना हिस्सा भी बनाकर रखेगा, इसमें भी कोई दो राय नहीं है. यह बात इसलिए भी मौजूं है क्योंकि मध्यप्रदेश की इस जरूरत को नहीं समझा जाता तो पहले से ही भारत भवन में रंगमंडल प्रभाग काम कर रहा है और इसे दुहराने के लिए मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की स्थापना नहीं की गई थी. देर से ही सही, एक बड़ा और हितकारी फैसला शिवराजजी ने लेकर रंगजगत में उत्साह भर दिया है.

आलोक चटर्जी उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं जो कबीर की परम्परा के हैं. वे नेशनल ड्रामा ऑफ स्कूल से गोल्ड मेडिलिस्ट हैं और संभवत: ओमपुरी के बाद उनका नाम लिया जाता है. रंग कर्म के उनके सामथ्र्य को लेकर कोई सवाल उठाया नहीं जा सकता है और एक निर्देशक के रूप में वे हमेशा कामयाब रहे. आलोक का अपने प्रदेश के प्रति एक निष्ठा का भाव रहा. वे लगन से जुते और जूटे रहे. अपने बाद की पीढिय़ों को रंग-कर्म की बारीकियां सिखाते रहे. वे चाहते तो आज मध्यप्रदेश के बाहर उनकी बड़ी दुनिया होती. मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर में उन्हें हाथों-हाथ लिया जाता लेकिन उन्होंने स्वयं को इससे परे रखा. उनकी रंग यात्रा भारत भवन से शुरू होती है और मध्यप्रदेश के साथ उनका कमीटमेंट है जिसे वे पूरा करते दिखते हैं. आज जब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की कमान सौंपी तो यह बात साफ हो गई कि लगन का परिणाम देर से मिलता है लेकिन जब मिलता है तो सुख ही हिस्से में आता है.
आलोक दा के नाम से अपने लोगों के बीच मशहूर आलोक प्रयोगधर्मी नाट्य निर्देशक हैं. वे परम्परा पर उतना ही भरोसा करते हैं तो नए प्रयोग भी करने से पीछे नहीं हटते. बाबा कारंत, हबीब तनवीर, अलखनंदनजी और इन्हीं के समकालीन रंग निर्देशकों के साथ आलोक की लम्बी रंगयात्रा रही. जिस दौर में भारत भवन लोगों के रश्क की वजह हुआ करती थी, उस दौर में आलोक के साथ आज के नामचीन सेटडिजाइनर जयंत देशमुख और छत्तीसगढ़ में इप्टा से संबद्ध राजकमल नायक की जोड़ी थी. आलोक की जीवनसंगिनी शोभाजी भी मंझी हुई रंगकर्मी हैं. करीब तीस वर्षों से आलोक से कभी लगातार तो कभी लंबे अंतराल के बाद मिलना होता है लेकिन इतने सहज और सरल कि लगता नहीं कि जिस शख्स से मैं मिल रहा हूं, वह राष्ट्रीय स्तर से कहीं आगे का रंग निर्देशक है. उनकी यही सहजता, मिलनसारिता और बेबाकी उन्हें कामयाब बनाती है. वे ठेठ रंगकर्मी हैं. उन्हें सुविधा नहीं, सुख चाहिए. मंच पर उठते-गिरते पर्दे का सुख. अभी कुछ सालों से माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अतिथियों की तरह हमारा मिलना होता रहा है. वे भी अतिथि के तौर पर बच्चों के बीच आते रहे हैं और मैं भी. यदा-कदा मुलाकात होती है. क्लास रूम में विद्यार्थियों के बीच उनका तेवर और तासीर वैसा ही बना रहता है, जैसा कि किसी नाटक की तैयारी के पहले. सबकुछ रूटीन का. एकदम सहज और सरल.
मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के मुखिया बन जाने से समूचे रंग जगत में हर्ष है. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि वे हमारे अपने हैं. वे हमें समझते हैं और हम उन्हें. यह कहना है कि अनेक कलाकारों का और उनका भी जो अपनी अपनी रेपेट्री चला रहे हैं. वे यह भी मानते हैं कि मध्यप्रदेश का गठन भौगोलिक रूप से जटिल है लेकिन यहां की विविधता हमेशा लोगों को मोहती है. झाबुआ से मंडला तक रंगकर्म को वही समझ सकता है जिसने मध्यप्रदेश को जिया हो. नाटकों में जब तक लोक नहीं होगा, उसका लोकव्यापीकरण नहीं हो सकता है. कुछ इसी तरह की कमी रंगमंडल में खल रही थी. शायद इसके कारण ही मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की स्थापना की गई. अब रंग आंदोलन को एक बिल्डिंग से बाहर निकाल कर मध्यप्रदेश के चप्पे-चप्पे में पहुंचाने की जरूरत है. आंचलिक रंगकर्मियों को भोपाल में जुटाने के बजाय उन तक मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय को पहुंचने की जरूरत है. और इस बात पर विमर्श किया जा सकता है कि मध्यप्रदेश का रंगकर्म अब आलौकित होता रहेगा क्योंकि मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की कमान अब आलोक चटर्जी के हाथों में है.