अब शाह की शह पर मध्य प्रदेश भाजपा

·         डॉअर्पण जैन ‘अविचल

उम्मीदवारों की पहली सूची जारी हो गई। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी बिगुल फूँक दिया, शंखनाद हो गया 230 विधानसभा सीट पर चुनावी प्रबंधन का। कहीं टिकट, कहीं सर्वे, कहीं रूठे सजन मनाने की तैयारी, कहीं निरंकुशों पर अंकुश, कहीं गुटबाज़ी तो कहीं पर संगठन की खामियों का दुरुस्तीकरण शुरू हो गया है।

इस समय कांग्रेस तो चुनावी मोड में कम नज़र आ रही है पर भाजपा कोई चुनावी कसरत नहीं छोड़ रही। हर योजना को चुनावी एंगल से कसा जा रहा है। चुनाव के मद्देनज़र कहीं लोक लुभावन वादे किए जा रहे हैं तो कहीं कार्यकर्ताओं में उत्साह भरा जा रहा है। भाजपा की सक्रियता के मास्टर माइंड यदि कोई हैं तो वह केन्द्रीय गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह हैं। मध्य प्रदेश के राजनैतिक हलके में एक ही नारा गूँज रहा है, वह है अबकी बार फिर भाजपा सरकार। ग़रीब कल्याण महाअभियान से लेकर जन आशीर्वाद यात्रा तक, भाजपा का सब कुछ केन्द्रीय नेतृत्व से तय हो रहा है। एक तरफ़ तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से जनता की नाराज़गी भी झलक रही है तो दूसरी तरफ़ केन्द्र में बैठा भाजपा का नेतृत्व किसी भी क़ीमत पर मध्य प्रदेश को भाजपा के हाथ से खोना नहीं चाहता। जी जान से जुटे कार्यकर्ताओं में हर समय जोश और विजय का मंत्र फूँका जा रहा है, बूथ-बूथ, पन्ना-पन्ना, वार्ड-वार्ड, मोहल्ला-मोहल्ला भाजपा के नेताओं की दस्तक शुरू हो चुकी है।

भाजपा ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों से लगभग 100 दिन पहले ही पहली सूची जारी कर दी। पहली सूची में जारी 39 उम्मीदवारों में सी और डी श्रेणी की सीटें हैं, जहाँ भाजपा 2018 में हारी और कुछ सीटें ऐसी हैं जहाँ दस साल से हार रही है। ऐसी सीटों पर घोषित उम्मीदवारों को बाद में यह कहने का भी अवसर नहीं है कि ऐन वक्त पर उम्मीदवारी घोषित हुई या चुनाव प्रचार, संपर्क आदि के लिए समय नहीं मिला। अब पूरा समय मिला है तो उम्मीदवार भी मुश्तैदी से मैदान संभाल चुके हैं।

 *कमाल की बात तो यह है कि अब तक कांग्रेसी खेमे से चुनाव की महक भी आनी शुरू नहीं हुई और भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का पसीना मध्यप्रदेश में बहने लग गया।* जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत करने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा आ रहे हैं, इसके पहले अमित शाह बीते 2 माह में ही दो-तीन बार मध्य प्रदेश आ चुके हैं। इन्दौर का कार्यकर्ता सम्मेलन, भोपाल का औचक दौरा इस बात की गवाही दे रहे हैं कि इस बार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लीडर इन एक्शन अमित शाह ही हैं।

शाह की रणनीतियाँ मध्य प्रदेश भाजपा के लिए बेहद कामगार भी हो सकती हैं पर इसी बीच भाजपा में भी दरारें नज़र आ रही हैं। भाजपा के नौ कद्दावर नेताओं ने बीजेपी को छोड़ कांग्रेस में अपनी आस्था जता दी। इन नौ नेताओं में भोपाल से पूर्व विधायक उमाशंकर गुप्ता के भांजे सहित एक वर्तमान विधायक और 7 अन्य नेता शामिल हैं। बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आए विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी ने सरकार पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं। इन नेताओं में भंवर सिंह शेखावत पूर्व विधायक बीजेपी जिला धार, चंद्रभूषण सिंह बुंदेला उर्फ़  गुड्डू राजा जिला सागर, दो बार झांसी से सांसद रहे सुजान सिंह बुंदेला के पुत्र वीरेंद्र रघुवंशी बीजेपी विधायक कोलारस जिला शिवपुरी, छेदीलाल पांडे शिवम पांडे कटनी, अरविंद धाकड़ शिवपुरी, सुश्री अंशु रघुवंशी गुना, डॉ. केशव यादव भिंड, डॉ. आशीष अग्रवाल गोलू भोपाल बीजेपी के पूर्व गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता के भांजे, महेंद्र प्रताप सिंह नर्मदापुरम शामिल हैं। इसके पहले भी भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व: कैलाश जोशी के बेटे और पूर्व मंत्री रहे दीपक जोशी भाजपा को छोड़कर कांग्रेसी हो गए हैं। असंतुष्टों और भाजपा से जाने वालों के बारे में कुछ न कहने की गाइडलाइन भी शाह खेमे से भाजपा के नेताओं को आ चुकी है पर यह कलह कहीं भाजपा के लिए भारी न पड़ जाए, इसके लिए शाह लगातार मध्य प्रदेश को टारगेट कर रहे हैं।

मोदी मैजिक तो मध्य प्रदेश में कितना असर करेगा ये चुनाव परिणाम ही बता सकते हैं, पर मोदी को मध्य प्रदेश की चिंता भी लगातार सता रही है इसीलिए अपने सबसे मास्टर–ब्लास्टर अमित शाह को मध्य प्रदेश की कमान सौंप रखी है।

भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार माने जाने वाले अमित शाह ने भाजपा के मिशन 2023 की नैया पार लगाने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की 82 सीटों में भगवा फहराने का संकल्प लिया है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए 47 और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 35 सीटें सुरक्षित हैं। कई बार प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों का शाह दौरा कर चुके हैं। मध्य प्रदेश में वे पहले भी आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। लगभग तीन वर्ष पहले वे राजा शंकर शाह- रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस 18 सितंबर को जबलपुर आए थे। यहाँ से उन्होंने आठ सूत्रीय वादे किए थे, इसमें *पेसा* नियम लागू करने का वादा भी था। शाह ने यहाँ स्मारक और संग्रहालय बनाने का भूमिपूजन भी किया था। दरअसल, वर्ष 2018 में भाजपा के सरकार न बनने का प्रमुख कारण अजा-अजजा वोटबैंक का भाजपा से दूर जाना रहा है। दो साल बाद भाजपा ने कांग्रेस में तोड़-फोड़कर सरकार तो बनाई लेकिन तभी से शाह ने अजा-अजजा की 82 सीटों पर वापसी के लिए सक्रियता बढ़ा दी थी। तीन वर्ष पहले शाह जबलपुर आए और अंग्रेजों को पराजित करने वाले राजा शंकर शाह- रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस में पहली बार शामिल हुए।

इसके अलावा भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा निकलने वाली है, उसमें पांचों यात्राओं को मिलाकर सभी जन आशीर्वाद यात्राएँ कुल 10643 किलोमीटर की दूरी तय करेंगी और प्रदेश की 210 विधानसभाओं से गुजरेंगी। इन यात्राओं का 998 स्थानों पर स्वागत होगा, 678 रथ सभाएँ और 211 बड़ी जनसभाएँ आयोजित की जाएँगी। इन यात्राओं में भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व, पार्टी के वरिष्ठ सब शामिल होंगे, इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि टीम अमित शाह कैसे मध्य प्रदेश में अपनी रणनीति बना रही है और कैसे काम कर रही है।

इस चुनावी मौसम में कांग्रेस अपनी आपसी खींचतान से जूझने लग गई, एक तरफ़ दिग्विजय सिंह कमलनाथ पर भी सार्वजनिक ज़ुबानी हमला बोलने से रुक नहीं रहे तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व भी मध्य प्रदेश में सक्रिय नज़र नहीं आ रहा। अभी तक कांग्रेस के चुनाव प्रभारी भी तय नहीं हो रहे, उम्मीदवारों की घोषणा तो दूर की कौड़ी है।

लगातार कांग्रेसजन सरकार को घेरने की कोशिश तो करते हैं पर अपने ही नेता के बिगड़े बोल उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। ऐसे समय में कट्टर कांग्रेसी कार्यकर्ता भी निराशा में डूब रहा है तो निश्चित रूप से कांग्रेस का पारम्परिक वोट बैंक भी चिंतित हो रहा है।

भाजपा के शंखनाद से जनता तो समझ रही है कि थिंक टैंक अमित शाह के नियंत्रण में है पर नेताओं को भी यह नियंत्रण भारी न लगने लगे।

वैसे पुराने चुनावों की तरफ़ नज़र डाली जाए तो अमित शाह का चुनावी मैनेजमेन्ट बहुत तगड़ा दिखता है, चाहे 2014 के आम चुनाव और उत्तरप्रदेश के परिणाम हों चाहे 2019 का चुनाव, जहाँ-जहाँ अमित शाह ने अपनी बिसात जमाई, शाह की शह दिखाई दी है। ऐसे में मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा की कमान अमित शाह के माध्यम से जमाकर भाजपा का मध्य प्रदेश विजय का संकल्प है। यह कितना पूरा होगा यह परिणाम तो मध्यप्रदेश चुनाव के गर्भ में पल रहा है परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मध्य प्रदेश को लेकर अनायास भय से आक्रान्तित भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बार अमित शाह की शह पर ही मध्य प्रदेश चुनावों की रणनीति तैयार कर रहा है और उसका पालन भी कर रहा है।

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