राजनीति

ओबामा का सुपर हिट ड्रामा : वाह उस्ताद वाह

आंधी की तरह आये और तूफान की तरह गये अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा का ड्रामा सचमुच धुआंधार रहा। हनुमान, गांधी, विवेकानन्द और अम्बेडकर के प्रभावशाली जिक्र से ओबामा ने भारत के हर बर्ग और तबके में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करवा दी है। रायसीना रोड के मुगल गार्डन से लेकर उटकमण्डलम के बॉटनीकल गार्डन तक ओमाबा परफ्यूम की महक से सारा देश गार्डनगार्डन हो रहा है। इस मदहोशी में हम अपनी जेब कहां और कब कटवा चुके है इसका हमें होश ही नहीं है। अपने यहां देहात में एक कहावत कही जाती है. चाल में डगमग मतलब में चौकस’ कुछ ऐसा ही अंदाज रहा अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा का। मौके बेमौके भारत की तारीफ के पुल बांध कर, स्कूली बच्चों के साथ नृत्य करके भारतीयों का दिल जीत कर अपना मतलब सीधा कर ले गये बराक हुसैन ओबामा। दरअसल अमेरिका भारतीय जनमानस की हिम्मत का आंकलन पिछले कई अवसरों पर कर चुका है। जब बाजपेयी सरकार ने पोखरण में परमाणु बम बिस्फोट किये थे तो अमेरिका ने यह सोच कर कि यही सही अवसर है जब भारत को सीटीबीटी के लिये राजीकुराजी तैयार किया जा सकता है और भारत पर तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये थे। पर गजब की जिजीविशा के धनी भारत ने इन प्रतिबन्धों पर बिना किसी प्रतिकि्रया के ही पार पा लिया था। दूसरा अवसर अभीअभी तब आया जब विश्वव्यापी ऐतिहासिक मंदी के भंवर में अमेरिका सहित कई देशों की नामीगिरामी कम्पनियां और बैंकें ही डूब गयी और भारत फिर भी जैसे का तैसा खड़ा रहा। ओबामा और अमेरिकी प्रशासन इस रहस्य को जानता है कि इसमें न तो बाजपेयी सरकार और न ही मनमोहन सरकार की कोई करामात थी यह तो भारतीय जनता की गजब की सहन शीलता है जो भूखे रह कर उंकडू होकर सोना जानती है। भारत में गरीब से गरीब आदमी के पास सुदूर गॉव में ही सही जमीन का थोडा सा टुकडा तो कमोवेश होता ही है। गरीब से गरीब भारतीय महिला के पास नाक में लौंग ही सही थोड़ा सा सौना तो होता ही है। यानि भारत मे आम आदमी आज भी जमीन से जुडा हुआ है और यही कारण है कि भारत में चार्वाक कभी भी समाज का आदर्श नहीं हो सका है। वहीं अमेरिकी अर्थ व्यवस्था और नागरिक दौनों ही शोषण पर आधारित जीवन के आदी रहे हैं। दुनिया की श्रेष्ठ बस्तुऐं अमेरिका को चाहिये। फिर चाहे दुनिया भाड़ में जाये। पहले युद्धों का कृतिम और बास्तविक बाजार तैयार करके अमेरिका चौधरी बना हुआ था। सारी दुनिया में अब परिवर्तन आ रहा है। हर देश का युवा समझ रहा है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। जनता की खुशहाली शान्ति और स्थिरता से ही आ सकती है ऐसे में एक अरब से ज्यादा की आबादी के बाजार को कोई व्यापारी कैसे नजरअंदाज कर सकता है अब तोप नहीं बिके तो क्या साबुन और शीतल पेय ही सही । इसलिये इस बाजार को खुश करने के लिये अंकल ओबामा ‘जयहिन्द’ और ‘बहुत धन्यवाद’ जैसे नारों से रिझाना चाहते है तो मिशेल आण्टी मुम्बई के होलीनेम स्कूल में दीपावली के अवसर पर बच्चों के साथ ठुमक कर इस बाजार को अपनी उंगलियों पर थिरकने के लिये तैयार कर रहीं है।

आज अमेरिका को भारत की सख्त जरुरत है और इसीलिये ओबामा का यह दौरा हुआ है मंदी की मार झेल रहे अमेरिका के ‘कारपोरेट जगत’ को ‘भारतीय कारपोरेट’ जगत का धंधा दिलाने के लिये अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को महाशक्ति का दर्जा दे दिया तथा सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट की बकालत भी कर दी है। इसका प्रमुख कारण यही है कि अमेरिका अपने नागरिकों के हित के लिये कोई भी कदम उठा सकता है।

ओबामा ने भारत दौरे में बारबार गांधी और अंहिसा का जिक्र किया परन्तु पाकिस्तान की बात आते ही बातचीत का रुख बदलने की कोशिश की क्यों ? क्यों कि अमेरिका आज भी अपने खानदानी व्यापार यानि हथियारों के व्यापार की भविष्य की संभावनायें खारिज नहीं करना चाहता इसलिये दक्षिण एशिया में वह अपने प्यारें पशु पाकिस्तान को पालपोस कर भारत पर गुर्राने के लिये बनाये रखना चाहता है। यही कारण है कि भारत यात्रा पर निकलने के पूर्व ओबामा पाकिस्तान को सहायता का चैक काट कर ही भारत के लिये निकले थे। हमें यह समझना चाहिये कि जिस प्रकार हम पाकिस्तान से किसी भी प्रकार की बातचीत के पूर्व आतंकबाद के खात्मे की शर्त रखते हैं ठीक उसी प्रकार हमें अमेरिका को व्यापार देने से पूर्व पाकिस्तान और आंतकबाद पर उनका स्पष्ट दृष्टिकोण रखने की शर्त रखनी चाहिये थी क्यों यह विदेशनीति की मांग है। इस समय अमेरिका और ओबामा अपने सर्वाधिक संकट के काल से गुजर रहें हैं। जब लोहा गरम हो तभी उस पर चोट करनी चाहिये। मनमोहन सिंह स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर ओबामा के आश्वासन से ही अभिभूत होकर अपनी विदेशनीति की सफलता का आंकलन कर रहे है जबकि यह आश्वासन तब तक कोई मायने नही रखता जब तक पांचों अर्न्तराष्ट्रीय पंच इस मुद्दे पर एकराय नहीं होते हैं। ऐसा आश्वासन तो अमेरिका जर्मनी और जापान को एक दशक पहले ही दे चुका है और अब तो उस सूची में ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के नाम भी लिख गये है। इस दृष्टि से हमारे लिये यह कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं हैं।

ओबामा के लिये अभी अमेरिका में हालात प्रतिकूल हैं तथा बिगत दो बर्षों में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बहुत नीचे गिरा है। मंदी की मार से बेरोजगारी दस फीसदी की दर को पकड़ चुकी है। अमेरिकी राष्ट्रपति अपने इस दौरे से अमेरिकी बेरोजगारों के लिये पचास हजार नौकरियां और भारतीय उद्योगपतियों से 500 अरब रुपये की निवेश जुगाड़ ले गये। अमेरिकी दृष्टिकोण से यह उनकी सफल यात्रा कही जा सकती है परन्तु भारत को क्या मिला कोरी कोरी वाह उस्ताद वाह।