स्‍वास्‍थ्‍य-योग

कैंसर के इलाज का झूठ

कैंसर के कारण और इलाज ढूंढने के दावे करने वाले समाचार बार-बार अनेक दशकों से छपते आ रहे हैं। पर कैंसर से मरने वालों की संख्या हर देश में हर साल बढ़ती ही जा रही है। विकासशील देशों की बात छोड़कर विकसित देशों को लें तो पुराने प्राप्त आंकड़े बतलाते हैं कि केवल इग्लैंड में पिछले 50 साल से कैंसर से मरने वालों की संख्या साढ़े चार गुणा बढ़ी थी। संयुक्त राज्य में कैंसर की मृत्यु दर 50 हजार प्रतिवर्ष से भी अधिक हो गई हैं। आज भी यह संख्या लगातार बढ़ रही है। एक अन्य आंकलन कर्ता ने यह संख्या 50 के स्थान पर 75 हजार बताई है।

ऐलोपैथी की दवाओं और ऑपरेशन द्वारा कैंसर के इलाज की बात भी सही सिद्ध नहीं हो रही है। प्राप्त आंकड़ों और एलोपैथी के मूर्धान्य चिकित्सकों के अनुसार ऑपरेशन कैंसर का इलाज नहीं हो सकता। इन दवाओं से कैंसर का इलाज असम्भव है। लदंन के एक प्रसिद्ध चिकित्सक ‘जेम्स वुड’ ने हजारों ऑपरेशन करने के बाद अपने अनुभव के बारे में लिखा कि उन हजारों में से 6 को छोड़कर सबको फिर से कैंसर हो गया। वे 6 रोगी साधारण टयूमर के थे-कैंसर के नहीं। उसी काल के प्रसिद्ध चिकित्सक ‘डॉ वाश’ ने कहा कि नश्तर यानी ऑपरेशन से कैंसर रोग को ठीक नहीं किया जा सकता और न ही रोगी का जीवन लम्बा किया जा सकता है। अनेक आधुनिक पर ईमानदार चिकित्सक मानते हैं कि ऑपरेशन से कैंसर और भी भयानक रूप ग्रहण कर लेता है। यहां तक कि बयोप्सी में भी रोग अधिक तेजी से फैलने लगता है। मंहगी आधुनिक दवाएं भी रोग से अधिक रोगी को मारती है। अर्थात् ऐलोपैथिक इलाज से आर्थिक और शारीरिक दोनों स्तर पर हानि ही हानि।

कैंसर के अनेक रोगियों का सफल इलाज होम्योपैथी से करने वाले और अनेक रोगियों की जीवन रक्षा करने वाले ऐलोपैथिक अमेरीकी ‘डाक्टर जी. जेम्स’ ने अनेक साथी ऐलोपैथिक चिकित्सकों के सन्दर्भ से प्रमाणित किया कि एलोपैथिक इलाज और ऑपरेशन रोगी को जल्दी मार देते हैं और रोग तेजी से बढ़ता है। ये इलाज रोगी के कष्ट को बढ़ाने और मृत्यु को और निकट लाने वाले हैं। सर्जरी के विश्व प्रसिद्ध ‘डॉ बेंजामिन’ ने 500 स्तन कैंसर की रोगिणियों के ऑपरेशन यह कह कर किए थे कि इससे उनकी आयु लम्बी नहीं होगी।

ऐलोपैथिक की दवाओं और शोध के नाम पर अरबो डालर की राशि खर्च करने की लूट की पोल खोलते हुए बम्बई के दो एलोपैथिक चिकित्सकों ने एक खोजपूर्ण पुस्तक लिखी जो इंग्लैंड में छपी तथा भारत में केवल गुजराती में उपलब्ध है। कैंसर-मिथ एण्ड रियलटीज एबाऊट कॉज एण्ड क्यूर नामक इस पुस्तक में अपने निष्कर्ष देते हुए वे लिखते हैं कि ऐलोपैथी का इलाज करवाने वाला रोगी कम समय तक जीता है और उसकी मृत्यु बड़ी कष्टप्रद होती है। जो ऐलोपैथिक इलाज नहीं करवाते वे अधिक समय तक जीते हैं और उनकी मृत्यु बिना कष्ट के होती है।

वे बायोप्सी के बारे में लिखते है कि यह समझदारी नहीं। इससे कैंसर शरीर के अन्य भागों में तेजी से फैलता है। पिछले 50 सालों में कैंसर के इलाज पर अरबों डॉलर खर्च करने पर एक इंच की प्रगति नहीं हुई फिर भी लम्बे चौड़े दावे छपते रहते हैं। दोनों सुप्रसिद्ध चिकित्सकों का कहना है कि यह आर्थिक स्वार्थों को साधने का षड्यन्त्र है। आज तक उक्त पुस्तक के दावों का खण्डन करेन का साहस किसी एलोपैथिक चिकित्सक का नहीं हुआ है।

प्राप्त प्रमाणों से सन्देह होता है कि विश्व की व्यापारी शक्तियाँ कैंसर के नाम पर अरबों-खरबों रूपयों की लूट कर रही हैं। मानव कल्याण के नाम पर काम करने वाले वैश्विक संगठन भी उनके षड़यन्त्र में शामिल नजर आते हैं। आधुनिक ऐलोपैथिक चिकित्सा कैंसर के इलाज में असफल सिद्ध हो जाने के बाद भी उसे बढ़ावा देना कैंसर का प्रमाणिक इलाज करने वाली चिकित्सा पद्धतियों तथा व्यक्तियों की उपेक्षा, ये सब बातें दवा निर्माता कम्पनियों और वैश्विक संगठनों तथा सरकारों की मिलीभगत के सन्देह को और भी गहराती हैं। आयुर्वेद और पारम्परिक चिकित्सकों के दावों पर कभी कोई धयान नहीं दिया जा रहा। ऐलोपैथिक को 93 प्रतिशत और आर्युवेद आदि पद्धतियों को केवल 7 प्रतिशत बजट केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाना उनके पक्षपात पूर्ण व्यवहार का स्पष्ट उदाहरण है।

राजगढ़ (म.प्र.) के एक बनवासी द्वारा हजारों रोगियों का इलाज किए जाने के समाचार वर्षों तक पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। स्वमूत्र चिकित्सा ने अनगिनत रोगियों की जीवन रक्षा की है। बम्बई के लोगों ने तो इस पर एक अभियान ही छेड़ दिया और एक फाऊंडेशन की स्थापना कर डाली।

तुसली-दहीं के प्रयोग से ठीक होते अनेक रोगियों को देखा गया। गेहूँ के ज्वारों और योग-प्राणायाम से कैंसर ठीक होने के विवरण विश्व भर से वर्षों से प्राप्त हो रहे हैं। खमीर के प्रयोग, फलाहार आदि से ठीक होने वाले रोगियों की लम्बी सूची है। पर सरकार और वैश्विक तथाकथित समाज सेवी संगठन केवल ऐलौपैथिक को बढ़ावा देते हैं। ऐसे में नियत पर सन्देह होना स्वाभाविक है। नहीं लगता कि इन संगठनों और इनकी उंगलियों पर नाचने वाली सरकारें कैंसर तथा अन्य समस्याओं को समाधान चाहती हैं। वे सब केवल धन कमाने के काम में जुटे हुए हैं, मानव कल्याण से उनका कोई वास्ता नहीं।

अत: अपने हित के लिए समाज के समझदार और जिम्मेवारी समझने वालों को स्वयं सब समझना और समाधान निकालना होगा। वैश्विक शक्तियों की कथनी करनी के निहितार्थ को समझे बिना भारत और मानवता का कल्याण सम्भव नहीं। कैंसर के इलाज और बाकी सब समस्याओं के समाधान की सामर्थ्य हम में है, बस निर्भरता और इन शक्तियों पर विश्वास छोड़कर स्वयं प्रयास करने की दिशा में कार्य करना होगा।

-डॉ. राजेश कपूर