के बी सी से एक करोड़ की ‘राहत तसलीम’ किया जाना

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-निर्मल रानी

भारत में समय समय पर कराए जाने वाले राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण प्राय:हमें यह आंकड़े देते हैं कि हमारे देश का मुस्लिम समाज अन्य समुदायों की तुलना में अधिक अशिक्षित है। विशेषकर मुस्लिम समाज की महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में चाहते हुए भी उतनी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पातीं जितनी कि अन्य समुदायों की महिलाएं ग्रहण करती हैं। ज़ाहिर है इसका कारण यही है कि मुस्लिम समाज पर्दा जैसी उस प्राचीन प्रथा का अनुसरण करता है जिसके अंतर्गत महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने में तथा समय के अनुसार ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में कांफी दिक्क़तों का सामना करना पड़ता है। ज़ाहिर है एक अशिक्षित महिला होने का भुगतान सिंर्फ उस महिला को ही नहीं करना पड़ता बल्कि एक अशिक्षित मां होने का खमियाजा उसके बच्चों तथा उसकी आने वाली नस्लों को भी भुगतना पड़ता है।

पिछले दिनों दूरदर्शन के सोनी चैनल्स पर प्रसारित होने वाले प्रसिध्द टी.वी. शो कौन बनेगा करोड़पति में केबीसी के इतिहास में पहली बार एक साधारण व रूढ़ीवादी धार्मिक मुस्लिम परिवार की घरेलू महिला राहत तसलीम ने एक करोड़ रुपये की धनराशि जीतकर न केवल अपने व अपने पूरे परिवार के उज्‍जवल भविष्य को सुनिश्चित किया बल्कि दुनिया के समक्ष यह आदर्श भी प्रस्तुत किया कि यदि एक मुस्लिम महिला को शिक्षित होने व घर से बाहर निकलने, प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने तथा कुछ कर दिखाने का अवसर दिया जाए तथा उसे प्रोत्साहित किया जाए तो मुस्लिम समाज आज भी अपने बीच से तमाम प्रतिभाशाली महिलाओं को तैयार कर सकता है। के बी सी 4 में पहली बार किसी मुस्लिम प्रतियोगी ने हॉट सीट तक स्वयं को पहुंचाया और वह भी एक मुस्लिम महिला ने। राहत तस्लीम नामक यह महिला झारखंड राय के गिरिडीह जैसे पिछडे क्षेत्र की रहने वाली एक 37 वर्षीया गृहणी है। इसके पति केरल राय में स्थित एक खान में साधारण तन् वाह पर काम करते हैं तथा वर्ष में केवल एक बार अपने परिवार से मिलने गिरिडीह आया करते हैं। राहत तसलीम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वह अपनी ारूरतों को पूरा करने के लिए न केवल खुद सिलाई-कढ़ाई का काम करती थी बल्कि अपने पास पड़ोस की लड़कियों को भी सिलाई-कढ़ाई सिखा कर अपने बच्चों के ंखर्च का प्रबंध करती थी। उसकी इच्छा बी.एड. करने की भी थी जिसे न ही उसके मां-बाप ने पूरा किया और न ही पति या ससुराल वालों ने। राहत के मां- बाप तथा ससुराल वाले यहां तक कि उसके पति भी पुराने यालों के मुसलमान होने के नाते उसका घर से बाहर निकलना या किसी समारोह आदि में जाना या नौकरी करना वग़ैरह पसंद नहीं करते थे।

परंतु ज्ञानार्जन तथा कुछ कर दिखाने की ललक रखने वाली इस अभूतपूर्व महिला ने जहां नकारात्मक आर्थिक परिस्थितियों से जूझते हुए अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सिलाई-कढ़ाई का काम किया तथा पास पड़ोस के बच्चों को यह काम सिखाया वहीं उर्दू व हिंदी भाषा के अंखबारों को प्रतिदिन पढ़कर उसने सामान्य ज्ञान अर्जित करने की अपनी इच्छा की भी पूर्ति की और आंखिरकार उसके ज्ञान हासिल करने तथा घर से बाहर पैर निकालने के उस हौसले ने उस साधारण महिला को असाधारण अर्थात् करोड़पति बना ही डाला। कल तक जो राहत तसलीम केवल इसलिए घुट-घुट कर जी रही थी कि वह पैसान होने के कारण चाहते हुए भी अपनी बुटीक(सिलाई-कढ़ाई की दुकान)नहीं खोल पा रही थी वह आज अपनी लगन, प्रतिभा तथा ज्ञान के बल पर बड़े से बड़ा और अच्छे से अच्छा बुटीक खोल पाने की स्थिति में पहुंच गई है। राहत के बी सी से पहले किसी बड़े कार्यक्रम में शरीक नहीं हुई थी। उसने न केवल जीवन में पहली बार रांची से मुंबई की विमान यात्रा की थी बल्कि उसने पहली बार अपना बैंक खाता भी खोला तथा अपना पैन नंबर भी लिया। खेल के दौरान राहत तसलीम एक संपूर्ण संतोषी, तथा खुशमिज़ाज स्वभाव की महिला नार आई। उसने खेल के दौरान अपने आत्मविश्वास का कारण अल्लाह पर भरोसा किया जाना बताया। इस महान आदर्श महिला ने अपनी जीत के बाद जहां एक करोड़ की धनराशि से अपना बेहतरीन बुटीक खोलने की तथा अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिए जाने की बात कही वहीं राहत ने यह भी कहा कि वह इन पैसों से गरीब व जरूरतमंद लोगों की मदद भी करेंगी।

लगता है राहत तसलीम के माता पिता ने उसका नाम भी बहुत सोच समझ कर राहत तसलीम रखा होगा। राहत का अर्थ जहां सुख-चैन,आनंद तथा संतोष जैसे शब्द से होता है वहीं तसलीम का अर्थ सलाम तथा स्वीकार करना होता है। अत: कहा जा सकता है कि 37 वर्ष की आयु में इस अभूतपूर्व महिला ने के बी सी के माध्यम से अल्लाह की तरफ से दी जाने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि रूपी राहत तसलीम कर अपने नाम के शाब्दिक अर्थ को भी चरितार्थ कर दिखाया। मुस्लिम समाज को राहत तसलीम जैसी महिला से सबक लेने की जरूरत है। खासतौर पर उन मुस्लिम परिवारों को जो रूढ़ियों से जकड़े हुए हैं तथा अपनी बेटियों व बहुओं को घरों से बाहर निकलने देने में आज भी अपनी तौहीन समझते हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो में बतौर वैज्ञानिक अपना काम करने वाली तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र का गौरव समझी जाने वाली चंद्रयान परियोजना में काम करने वाली उत्तर प्रदेश के अमरोहा कस्बे की खुशबु मिर्जा ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी जिम्‍मेदारी निभा कर पूरी दुनिया में अपना नाम तभी रौशन किया जबकि उसने अपने कदम घर से बाहर निकाले तथा गैर जरूरी धार्मिक रूढ़ियों को ठुकराया। इसी प्रकार यदि सानिया मिर्जा के माता-पिता ने भी उसके बारे में ऐसी ही कट्टरवादी तथा रूढ़ीवादी धारणा रखी होती तो वह भारतीय मुस्लिम महिला भी आज पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन न कर पाती। आज हमारे देश में तमाम मुस्लिम महिलाएं आई ए एस की परीक्षाएं उतीर्ण करते हुए देखी जा रही हैं। तमाम मुस्लिम महिलाएं डॉक्टर के पेशे में आकर समाज का कल्याण कर रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी तमाम महिलाएं अध्यापन का काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त कारपोरेट जगत व अन्य कार्यालयों व व्यवसायिक केंद्रों में भी मुस्लिम महिलाओं को काम करते देखा जा सकता है। परंतु निश्चित रूप से इन क्षेत्रों में अपनी धाक जमाने वाली यह वही मुस्लिम महिलाएं हैं जिनके परिजनों ने मुस्लिम समाज की रूढ़ियों की परवाह न करते हुए तथा कट्टरपंथी कठमुल्लाओं के फतवों की फिक्र न करते हुए अपनी कन्याओं को भरपूर शिक्षा प्रदान करने तथा आगे बढ़ने के पूरे अवसर उपलब्ध कराए।

परंतु अफसोस इस बात का है कि समय के साथ चलने वाले तथा आधुनिक सोच रखने वाले व अपनी महिलाओं को पुरुषों की ही तरह आत्मनिर्भर बनाने की फिक्र करने वाले मुस्लिम परिवारों की संख्‍या अभी भी कम है। और इसमें कोई दो राय नहीं कि मुस्लिम समाज में ऐसी सोच का अभाव ही मुस्लिम समाज की पसमांदगी अथवा कमजोरी का मुख्‍य कारण है। जाहिर है यदि मुस्लिम समाज को इस पसमांदगी तथा कमजोरी से उबरना है तो उसे सर्वप्रथम अपनी महिलाओं,कन्याओं तथा बालाओं को शिक्षित करना होगा। यदि मां शिक्षित होगी तो इस बात की संभावना बहुत प्रबल हो जाती है कि उसका बच्चा भी शिक्षित हो। और यदि एक परिवार शिक्षित है तो इस बात की संभावना प्रबल होती है कि वह कम से कम आर्थिक संकट का उतना सामना नहीं करेगा जितना कि एक अशिक्षित परिवार को करना पड़ता है। महिलाओं को लेकर रूढ़ीवादी सोच का बाजार केवल मुस्लिम समाज में ही गर्म नहीं है बल्कि हिंदू समाज में भी महिलाओं को लगभग उसी प्राचीन नारिए से देखा जाता है। परंतु चूंकि हिंदू समाज कठमुल्लाओं के फतवे जैसी निरर्थक बंदिशों से मुक्त है लिहाजा यदि हिंदू समाज का कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी या बहु को पढ़ाता अथवा नौकरी कराता या किसी समारोह आदि में शरीक होने की छूट देता है तो उसे न किसी कठमुल्ला के फतवे का डर होता है न ही कोई शरिया की पाबंदी। इस प्रकार हिंदू समाज की लड़कियां अपनी सुविधानुसार पढ़-लिख जाती हैं तथा अपनी योग्यता व बुद्धि के अनुरूप अपने भविष्य की मंजिलें भी तय करती हैं।

परंतु देश के संपूर्ण विकास के लिए यह बेहद जरूरी है कि पूरे देश का प्रत्येक समाज समान रूप से प्रगति करे तथा संपन्न हो। आर्थिक व शैक्षिक संपन्नता किसी भी समाज की तरक्क़ी की सबसे अहम जरूरत होती है। अत: भारत के लगभग 17 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिम समाज की महिलाओं का शिक्षित होना मुस्लिम समाज सहित देश की भी शैक्षिक व आर्थिक संपन्नता की दिशा में उठाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम होगा। राहत तसलीम के करोड़पति बनने के बाद अब एक बार फिर यह वक्त आ गया है कि मुस्लिम समाज राहत तसलीम से सबंक लेते हुए अपनी बच्चियों को भी उच्च शिक्षा दिलाए, सामान्य ज्ञान की ओर उनकी रुचि बढ़ाए। घर में अंखबार पढ़ने व टीवी की खबरें सुनने का वातावरण बने। ताकि परिवार के बच्चे व बच्चियां सामान्य ज्ञान तथा सामयिक विषयों की पूरी जानकारी रखें। और इन कन्याओं को अपने घरों से बाहर निकलने तथा स्कूल, कॉलेज व प्रशिक्षण केंद्रों तक जाने और यदि कमजोर आर्थिक स्थिति का तक़ाजा हो तो नौकरी करने की भी छूट दें। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि मुस्लिम समाज की महिलाएं राहत तसलीम की ही तरह शिक्षित, आत्मविश्वासी, संतोषी, दृढ़ संकल्प रखने वाली तथा अल्लाह पर पूरा भरोसा रखने वाली महिलाओं के रूप में स्वयं को स्थापित कर सकेंगी, तो केवल मुस्लिम समाज ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष का भी भला होगा तथा हमारा देश और भी तेजी से आगे बढ़ सकेगा।

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  1. ईस्लाम के प्रचार के प्राम्भिक काल मे धर्मांध हमलावर गैर मुस्लिम पुरुषो की हत्या कर उनकी औरतो को आपस मे बांट लेते थे । औरते बगावत करने की जुर्रत ना करे इस खातिर उन्हे पर्दे मे रखा जाता था और अमानवीय ढंग से चाहरदिवारी के अन्दर रखा जाता था। लेकिन अब समय बदल चुका है। हम लोग पुरानी बातो को भुल चुंके है। मुस्लीमो के उस समय के लोग के कृत्य के लिए आज के लोग के प्रति अब मन मे कोई शिकवा रखना ठीक नही है । तो अब मुस्लीम भाईयो को चाहिए की वह अपनी औरतो को आधुनिक बनाए। जब तक मुस्लीम औरते तरक्की नही करेगी उनका समाज सही अर्थो मे उन्नत नही हो सकता है। जब तक मुसलमान भई उन्नती नही करेगे तब तक देश आगे नही बढ सकता। सब का मंगल हो। सब का कल्याण हो। प्राणियो मे सद्भाव हो।

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