सड़कों पर नमाज पढ़ना सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक 

गौतम चौधरी 

अभी हाल ही में सड़क पर नमाज पढ़ने को लेकर प्रशासन ने दिशा निर्देश जारी किया है। दरअसल, मेरठ पुलिस ने चेतावनी दी है कि सड़क पर नमाज पढ़ने वालों का पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस कैंसिल किया जा सकता है। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि लोग मस्जिद या फिर ईदगाह में नमाज पढ़ें। सड़क पर नमाज नहीं पढ़ी जानी चाहिए। 

उत्तर प्रदेश की मेरठ पुलिस ने ईद से पहले सड़क पर नमाज पढ़ने वालों को चेतावनी दी और सड़क पर नमाज पढ़ने को गैरवाजिब बताया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि अगर कोई सड़क पर नमाज पढ़ते हुए पाया जाएगा तो उसका पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस दोनों जब्त कर लिए जाएंगे। मेरठ के पुलिस अधीक्षक आयुष विक्रम सिंह ने कहा कि ईद की नमाज मस्जिदों या फिर ईदगाहों में अदा की जानी चाहिए। किसी को भी सड़कों पर नमाज नहीं पढ़नी चाहिए। 

मेरठ पुलिस ने सड़कों पर नमाज को प्रतिबंधित कर एक नयी बहस छेड़ दी है। यदि इसे इस्लामिक चश्में से देखा जाए तो भी यह जायज नहीं है। एक बार लखनउ स्थित उत्तर प्रदेश विधानसभा की सामने वाली सड़क के बीचोबीच एक युवक ने नमाज पढ़ना प्रारंभ कर दिया था। उन दिनों इस मामले को लेकर बड़ी बहस हुई थी। इसी बहस के दौरान देवबंदी उलेमाओं ने भी इस प्रकार की नमाज का विरोध किया था। देवबंद के तत्कालीन मुफ्ती अहमद ने बाकायदा बयान जारी कर कहा था कि इस प्रकार की नमाज को किसी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता है। 

कई इस्लामिक पवित्र ग्रंथों में सड़कों पर बैठने, आपस में बात करने और सड़कों को अवरुद्ध करने को नाजायज बताया गया है। यहां तक कि एक स्थान पर तो यह भी लिखा है कि सड़कों पर पड़े किसी प्रकार के अवरोधकों, जैसे-पत्थर आदि को हटाना धर्म के अनुकूल कार्य है। यहां तक कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति सड़क पर बैठता है तो उसे अपनी नजर नीची करके रखनी चाहिए। ऐसे में सड़क को बाधित कर नमाज पढ़ना इस्लामिक कृत्य कैसे हो सकता है। 

इसका एक पक्ष यह भी है कि इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है। भारत इस्लामिक देश नहीं है। न ही यहां शरिया को कानून का दर्जा प्राप्त है। भारत बहुसांस्कृतिक एवं बहुपांथिक देश है। यहां मुसलमानों के अलावा और कई समुदाय के लोग रहते हैं। यदि मुसलमान सड़कों पर नमाज पढ़ने लगेंगे और उन्हें छूट दे दी जाएगी तो ऐसे ही हिन्दू भी अपने धार्मिक कार्य सड़कों पर करने की कोशिश करेंगे। यहां बड़ी संख्या में ईसाई भी रहते हैं। वे भी ऐसा करने की सोचेंगे। जैन, बौद्ध, सिख आदि भी ऐसा ही कुछ करना चाहेंगे. तब उस सड़क का क्या होगा? फिर कहीं एक ही साथ सब सड़क पर उतर आए तो आपसी गतिरोध स्वाभाविक रूप से होगा। यह गतिरोध संघर्ष में भी बदल सकता है। 

सड़कों को आम लोगों के लिए बनाया गया है। सड़कें यातायात के लिए है, इबादत   के लिए नहीं है। इबादत के लिए इबादतगाह है। इबादत वहीं होनी चाहिए जहां उसका स्थान है। यदि ऐसा नहीं होता है तो इबादत की व्यवस्था खंडित होती है। दुनिया के किसी भी धर्म में सड़कों पर इबादत करने का कोई विधान नहीं है। दूसरी बात यह है कि यह भारतीय कानून के अनुसार गैर कानूनी भी है। इसलिए मुसलमानों को इस मामले में संयम बरतने की जरूरत है। साथ ही मुस्लिम संगठनों को चाहिए कि इस विषय पर वह अपना संदेश प्रसारित करे। यदि ऐसा नहीं करता है तो इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी और सामाजिक सौहार्द कमजोर होगा। 

गौतम चौधरी

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