राजनीति

कांग्रेस का इतिहास पुराना

अजय प्रताप तिवारी चंचल

देश के इतिहास में सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपना 135 वा स्थापना दिवस मना रही हैं ।कांग्रेस का इतिहास देश के आजादी के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। इसका गठन साल 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी जिसका श्रेय एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को जाता है। वो अंग्रजी शासन की सबसे प्रतिष्ठित ‘बंगाल सिविल सेवा’ में पास होकर साल 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी बने। 1857 की गदर के वक्त वो इटावा के कलक्टर थे। लेकिन ए ओ ह्यूम ने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और 1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। 

व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। कुछ मिथक की बाते करे तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन के के निर्देशन मार्गदर्शन और और सलाह पर ही ए. ओ ह्यूम ने इस संगठन को जन्म दिया था। ताकि उस समय भारतीय जनता में पनपते बढ़ते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके । शुरुआती दौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कुछ देखा गया होगा इसी तरह लेकिन जब राजनीतिक चेतना के साथ कांग्रेस का उदय तब हुआ जब नरम दल और गरम दल नाम से इसके दो फाड़ हो गए थे। गरम दल का कहना था कि हमें अंग्रेजों से आजादी चाहिए जबकि नरम दल अंग्रेजी राज के अंतर्गत ही स्वशासन की मांग करता था। साल 1915 में जब महत्मा गांधी भारत आए तब उन्हें इसकी अध्यक्षता सौंपी गई। साल 1919 में भारत में गांधी कांग्रेस के प्रतीक पुरुष बन चुके थे। इसके बाद से कांग्रेस ने भारतीय स्वाधीनता के संग्राम में सीधे तौर पर भाग लेना शुरू कर दिया था।1928 के कलकत्ता अधिवेशन में विरोध के पश्चात गांधी जी के प्रयत्नों से भारत को “डोमिनियन स्टेटस” की मांग का प्रस्ताव पारित हो गया। लेकिन 1929 के अधिवेशन में नेहरू ने जिस पूर्ण स्वराज की घोषणा की उसका अर्थ उन्होंने डोमिनियन स्टेट के समान बतलाया था।जब कि उसी अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने पूर्ण स्वराज का अर्थ अंग्रेजों से पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद की बात की जिसे गांधी जी ने अस्वीकार कर दिया। हालांकि यह बात और है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के गठन का उद्देश्य पूरा हो चुका है, अत: इसे खत्म कर देना चाहिए स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मज़बूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी।नेहरू की अगुआई में 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई। साल 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आख़िरकार मोरारजी देसाई को दरकिनार कर नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।सन1974 में जयप्रकाश नारायण ने इन्दिरा गान्धी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया। आन्दोलन को भारी जनसमर्थन मिला। इससे निपटने के लिये इन्दिरा गान्धी ने देश में इमर्जेंसी लगा दी। सभी विरोधी नेता जेलों में ठूँस दिये गये। इसका आम जनता में जमकर विरोध हुआ। 

जनता पार्टी की स्थापना हुई और सन 1977 में काँग्रेस पार्टी बुरी तरह हारी। पुराने काँग्रेसी नेता मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी किन्तु चौधरी चरण सिंह की महत्वाकांक्षा के कारण वह सरकार अधिक दिनों तक न चल सकी। सन 1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कम्पनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी। उस समय केन्द्र में काँग्रेस की सरकार थी और उसके प्रधानमन्त्री राजीव गान्धी थे। स्वीडन रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता हैं। इस खुलासे के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मन्त्री बने। आजादी के बाद से लेकर 2014 तक 16 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत हासिल किया, जबकि 4 बार सत्तारुढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया। कांग्रेस भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक समय तक सत्ता में रही। पहले चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया था, लेकिन 16वीं लोकसभा में यही पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई।आश्चर्यजनक रूप से 16वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने की पात्रता भी कांग्रेस हासिल नहीं कर पाई। वर्तमान में कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। हालांकि एक दौर होता होता है जब जनता का मोह भंग भंग हो जाता है और विपक्षी पार्टी को मौका मिल जाता है । लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए सरकार को बदलना जनता की चालाकी होती है . कांग्रेस को अपना जनादेश बचाने होगा और जनता का विश्वास जीतना होगा ।