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महिला आरक्षण के विरोधियों के सारहीन कुतर्क – धाराराम यादव

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर गत 08 मार्च को संप्रग सरकार द्वारा लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाली महिला आरक्षण विधेयक को संसद के उच्च सदन राज्य सभा में विचारार्थ प्रस्तुत करने पर देश के तीन यादव नेता मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद एवं शरद यादव द्वारा अपने इस नितांत सारहीन और लचर कुतर्क के साथ वर्तमान स्वरूप में प्रस्तावित विधेयक का विरोध करने की घोषणा की गयी कि इस 33 प्रतिशत आरक्षित सीटों में पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक (मुस्लिम) एवं अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए अलग-अलग कोटा निर्धारित किया जाय। मुलायम सिंह तो अपने वोट बैंक के लोभ में यह उदाहरण देने से भी नहीं चूके कि देश के बारह राज्यों से लोकसभा में एक भी मुस्लिम सदस्य निर्वाचित नहीं किया गया। यह उनकी मूर्धन्य पंथनिरपेक्षता का ज्वलंत प्रमाण है। लोकसभा एवं विधान सभाओं में अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रत्याशियों के लिए संविधान सम्मत आरक्षण पहले से ही उपलब्ध है। उन आरक्षित सीटों पर पुरुष अथवा महिला चुनाव लड़कर माननीय होने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के लिए किसी सदन में कोई आरक्षण उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में महिला आरक्षण विधेयक में पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं का अलग कोटा निर्धारित किये जाने की मांग को कोई तर्क संगत औचित्य प्रतीत नहीं होता। उचित तो यह होता है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के संविधान सम्मत आरक्षण की तर्ज पर विधायिकाओं में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सीटें आरक्षित की तर्ज पर विधायिकाओं में अन्य पिछड़े वर्गों की सूचि में करीब दो दर्जन मुस्लिम जातियाँ भी शामिल हैं जिन्हें स्वाभाविक रुप से इसका लाभ मिल जाता। धार्मिक आधार पर किसी प्रकार के आरक्षण की संविधान में ही मनाही है। वैसे महिला आरक्षण विधेयक के विरोधी दलों के लिए यह खुली छूट है कि वे आरक्षित होने वाली सीटों पर शत प्रतिशत पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं को प्रत्याशी बनायें और अपने वोट बैंक से उन्हें जितायें। उन्हें यह पुण्य कार्य संपादित करने से कौन रोक सकता है?

कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों ने महिला आरक्षण विधेयक को वर्तमान स्वरूप में ही समर्थन देकर पारित कराने की घोषणा की है। यदि संख्या बल का कोई औचित्य एवं महत्व है, तो अब इस प्रस्तावित विधेयक को अनिवार्य रूप में अधिनियमित हो जाने में कोई संशय नहीं है।

महिला आरक्षण विधेयक के विरोधियों का उध्देश्य पिछड़े वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं का सशक्तीकरण कम करना और अपना वोट बैंक मजबूत करना कहीं ज्यादा है। घोषित विरोधियों (सपा, राजद और जदयू) को छोड़कर अन्य दलों में शामिल इन वर्गों (पिछड़े वर्ग एवं अल्प संख्यक वर्ग) के सांसदों द्वारा प्रस्तावित विधेयक का विरोध करने का स्वर कहीं से सुनने में नहीं आया। यह निष्कर्ष निकालना अनुचित नहीं हो सकता कि प्रस्तावित विधेयक का विरोध केवल विरोध के लिए किया जा रहा है।

यह आशंका जाहिर की जा रही है कि संप्रग सरकार द्वारा महँगाई के मुद्दे पर एकजूट हुए विपक्ष की एकता तोड़ने के लिए यह विधेयक लाया जा रहा है। वैसे महंगाई एवं महिला आरक्षण विधेयक दोनों अलग-अलग विषय हैं। संसद सदस्यों से इस विवेक की अपेक्षा करना अनुचित न होगा कि वे विषय की महत्ता को देखते हुए उसका विरोध या समर्थन करें। ‘पार्टी व्हिप’ अवश्य एक अनुशासन का ‘डण्डा’ है जिसका अनुपालन करना सदस्यों के लिए अनिवार्य होता है। लोकसभा सदस्य जयाप्रदा सपा से निष्कासित कर दी गयी हैं, किन्तु उनकी सदस्यता पर कोई ऑंच नहीं आयी। यह प्रश्न अनुत्तरित है कि उन्हें सपा द्वारा जारी व्हिप का अनुपालन करना आवश्यक है या नहीं।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों मेें 59 महिलाओं ने विजय श्री हासिल की है। वे किसी आरक्षण के बल पर नहीं वरन् अपनी योग्यता, क्षमता एवं पार्टी के जनाधार के कारण जीतीं। अतीत में फूलन देवी जैसी पूर्व डकैत भी सपा के टिकट पर उसके वोट बैंक के कारण लोकसभा में पहुंची थी, किसी आरक्षण के कारण नहीं।

यही सही है कि देश की सभी महिलायें इंदिरा गाँधी, सोनिया गाँधी या सुषमा स्वराज एक दिन में नहीं बन जायेंगी, किन्तु लोकतंत्र में यह अवसर सबको सुलभ रहना चाहिए। जब आज महिलायें सभी क्षेत्रों में पुरुर्षों के साथ कंधा मिलाकर खड़ी हो रही हैं, तो राजनीति का क्षेत्र अलग कैसे रह सकता है! आखिरकार श्रीमती शीला दीक्षित तीसरी बार दिल्ली राज्य की मुख्यमंत्री बनी हैं और मायावती चौथी बार पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश जैसे सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य की मुख्यमंत्री की बागडोर सम्हाल रही हैं। आई. ए. एस., आई.पी. एस. जैसे महत्तवपूर्ण पदों पर अनेक महिलायें सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। उनकी सफलता का राज उनकी कर्मठता में छिपा है।

अब तक पुरुष प्रतिद्वन्द्वितयों को चुनाव में पराजित कर महिलायें विजयी होती रही हैं। इन विजेताओं में अल्पसंख्यक सहित सभी वर्गों की महिलायें शामिल थीं। यह धारणा नितांत निर्मूल है कि विधायिकाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण के फलस्वरूप केवल सवर्ण महिलायें ही विजयी हो पायेंगी। मुलायम सिंह यादव ने यह आशंका व्यक्त की है कि अफसर सरकार चलायेंगे एवं उनकी पत्नियां विधायिका का चुनाव लड़कर नेता बन जायेंगी। अभी तक नेता बनने में कोई रोक नहीं है। जब पूर्व डकैत फूलन देवी मुलायम सिंह की कृपा से लोकसभा की माननीय सदस्या बन सकती हैं, तो अन्य कोई महिला क्यों नहीं बन सकतीं। आखिरकार उनकी प्रबल प्रतिद्वंद्वी मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन ही गयी हैं और वह भी बिना किसी आरक्षण का लाभ उठाकर।

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को जब राज्य सभा में कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने महिला आरक्षण विधेयक विचारार्थ प्रस्तुत किया, तो सपा एवं राजद के सदस्यों ने जबरदस्त हंगाामा किया। विधेयक की प्रतियां फाड़ डालीं और उसके टुकड़े राज्य सभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति की और उछाल दिया। गत् 9 मार्च को राजद और सपा के उन सात राज्य सभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया जो 8 मार्च को विधेयक की प्रतियां फाड़ने के लिए दोषी पाये गये थे।

राज्य सभा में वर्तमान सदस्यों की संख्या 233 है जिनमें से महिला आरक्षण विधेयक के समर्थकों की संख्या 179 है। इनमें कांग्रेस के 71, भाजपा के 45, वाम मोर्चा के 20 एवं अन्य फुटकर दलों के सदस्य शामिल हैं जबकि विधेयक के विरोधियों की संख्या मुश्किल से तीन दर्जन से भी कम है। इनमें जदयू के सात सदस्यों में से अधिकांश सदस्य नीतीश कुमार के समर्थक हैं जो विधेयक के पक्ष में हैं।

अंततः ध्वनिमत से विधेयक पारित हो गया, किन्तु यह संविधान संशोधन विधेयक है अतः दो तिहाई बहुमत से पारित होना अनिवार्य है। इसी प्रकार लोकसभा में भी दो तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए और देश भर के 50 प्रतिशत से अधिक राज्यों की विधान सभाओं से भी विधेयक का समर्थन आवश्यक है। इसमें कुछ समय लगने की संभावना है। वर्तमान संप्रग सरकार महिला आरक्षण विधेयक को इसके वर्तमान स्वरूप में ही पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी रूप में ही भाजपा एवं वाममोर्चा का भी समर्थन है। अतः यह विधेयक निकट भविष्य में ही संविधान में समुचित संशोधन कर महिलाओं के लिए विधायिका में 33 प्रतिषत आरक्षण सुनिश्चित कर देगा।

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस विधेयक के पारित होने को ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी कदम निरूपित किया तथा विपक्ष के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। अंत में विधेयक पर हुए मतदान में उसके पारित होने के पक्ष में 186 माननीय सदस्यों ने मतदान किया और विरोध में एक मत पड़ा। बसपा ने मतदान का बहिष्कार किया। लालू प्रसाद यादव एवं मुलायम सिंह यादव बिल के विरोध में संप्रग सरकार से बिना मांगे दिये गये अपने समर्थन को राष्ट्रपति को एक पत्र सौंपकर वापस ले लेंगे। इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं होगा। राज्य सभा में दो तिहाई बहुमत से पारित विधेयक को अब लोकसभा में पूरी तैयारी से प्रस्तुत किया जायेगा। फिर राष्ट्रपति का अनुमोदन एवं 50 प्रतिषत से अधिक राज्य विधान सभाओं के समर्थन के बाद यह संविधान में समाहित हो जायेगा। अभी तो केवल पहली बाधा है। लोकसभा की वैतरणी पार करना किसी संचित पुण्य से ही संभव होगा। -लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार, पूर्व आयकर अधिकारी तथा समाजसेवी है।