खेत-खलिहान

जैविक खेती, प्राकृतिक ऊर्जा और लघु उद्योगों से खुशहाल होंगे गांव

– श्री कुप्.सी.सुदर्शन, निवर्तमान सरसंघचालक, रा.स्व.संघ

खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग बंद करना समय की मांग है, क्योंकि वह भूमि एवं मनुष्य दोनों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रासायनिक खाद से उपजी चीजें खाने से साल भर में हम 100 मिलीग्राम तक रासायनिक जहर भोजन के साथ पचा जाते हैं। यही 100 मिलीग्राम जहर यदि एक साथ खा लें तो हम मर जाएं। थोड़ा-थोड़ा खाने के कारण हम तुरंत मरते तो नहीं हैं लेकिन इसके घातक प्रभाव शरीर और मन पर होकर ही रहते हैं।

आज अनेक प्रकार की बीमारियों की चपेट में गांव के मेहनतकश लोग भी आ रहे हैं, ऐसी बीमारियां जो पहले गांव में सुनने को नहीं मिलती थीं, अब शहरों के साथ हमारे गाँवों में भी दिखने लगी हैं। 30-35 साल के लोगों का कहीं रक्तचाप बढ़ रहा है, तो किसी को ह्रदय रोग हो रहा है। इसके लिए ज्यादातर को एंजियोप्लास्टी व बाईपास सर्जरी करानी पड़ रही है। इस सबका मूल कारण रोज खाया जाने वाला जहर ही है। इसलिए रासायनिक खाद का प्रयोग बंद कर जैविक खाद का प्रयोग आरंभ करना जरूरी है।

जैविक खाद बनाने के तत्काल बाद उसका प्रयोग करना ठीक नहीं होता। जो जमीन रासायनिक खाद के उपयोग से बर्बाद हुई है उसको ठीक करने में तीन साल का समय तो लगता ही है। किसान भाई पहले साल 25 प्रतिशत जैविक खाद और 75 प्रतिशत रासायनिक खाद का प्रयोग करें, दूसरे साल 50-50 और तीसरे साल 25-75 के अनुपात में और चौथे साल पूरा का पूरा जैविक खाद प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के पालन से चार साल में भूमि जहरीले रसायनों के प्रभाव से मुक्त हो जाएगी।

आजकल एक और नई पद्वति निकली है। वह है प्राकृतिक खेती। जंगलों में कोई खाद नहीं डालता। जंगलों में कोई कीटनाशक भी नहीं होता। लेकिन जंगलों में जो मिट्टी बनती है वो एक प्राकृतिक पद्वति से तैयार होती है। वहां जमीन के उपर पेड़, टहनियां, पेड़ों की छालें पशु-पक्षियों के मल-मूत्र का विसर्जन होता रहता है। उससे असंख्य जीवाणु पैदा होते है और उस सबके परिणामस्वरूप अंत में वे सब खाद में बदल जाते है। लेकिन इस प्रक्रिया में जहां जंगल में सौ-सवा सौ साल लगते हैं उसे ठीक से समझकर 100 दिन के अंदर भी निर्माण कर सकते हैं। उसकी विधि भी यही है। इस पद्वति से हमने यदि जमीन तैयार कर ली तो केवल 10,000 वर्ग फुट के क्षेत्र वाला किसान भी पांच लोगों का परिवार आसानी से पाल सकता है। अनाज, सब्जी, औषधि आदि सारी चीजें प्राप्त करते हुए 15 हजार रूपए प्रतिवर्ष कमा भी सकता है। इसमें एक बार ही मेहनत करनी है।

दूसरी बात यह है कि लकड़ी काटने से जंगल कम हो रहे हैं। हमने ऊर्जा के लिए बेतहाशा जंगल काटे हैं। अपने पास यदि केवल एक गाय और एक जोडी बैल है तो उस एक गाय और बैल की जोडी क़े गोबर से गोबर गैस संयंत्र चल सकता है। आज ऐसी विधि उपलब्ध है जिसके आधार पर गोबर गैस से घर के अंदर ईंधन की समस्या हल हो सकती है तथा छोटे सी.एफ.एल. बल्ब भी जलाए जा सकते हैं।

इसी प्रकार सौर ऊर्जा भी बहुत उपयोगी है। इस संबंध में भी बहुत दिनों से प्रयोग चल रहे हैं। सौर ऊर्जा में प्राय: देखा जाता है कि दिन में बादल छा जाएं या फिर रात हो तो ये काम नहीं करती। लेकिन अब उसके अंदर सेल तकनीकी जोड़ दी गई है। इससे अब 24 घण्टे ऊर्जा उपलब्ध रहती है। इसके प्रयोग से छोटे-बड़े घर, दुकान-प्रतिष्ठान रोशन होने लगे हैं। आवश्यकतानुसार 500 वॉट से लेकर 100 किलोवाट तक सौर ऊर्जा पैदा की जा सकती है। इसमें बिजली की आवश्यकता नहीं रहती है। खम्भे भी नहीं डालने पड़ते। इस प्रकार प्राकृतिक ऊर्जा का उपयोग भी ठीक प्रकार से हो सकता है।

लघु और कुटीर उद्योगों में भी आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियां घुस आयी हैं। उन्होंने लोगों के हाथ से रोजगार छीन लिए हैं। इसके प्रति सजगता चाहिए और इस प्रकार के उत्पादन को छोटे स्तर पर गांव में ही तैयार करना आवश्यक है।

महाराष्ट्र का लिज्जत पापड़ आज सारी दुनिया में भेजा जा रहा है। जो चीज गांव में पैदा होती है उसे गांव में ही अंतिम एवं पूर्ण रूप में तैयार करना आवश्यक है। इस दिशा में यदि प्रयास होते हैं तो गांव के लोगों को रोजगार मिलता है। फिर जो उत्पाद वे बनाते हैं उसे बेचने के लिए सहकारी समितियां बनाने की आवश्यकता है।

सहकारी समितियां बनाकर सरकारी और गैर-सरकारी माध्यमों से ग्राम में होने वाले उत्पादों का विपणन करना लाभदायक रहेगा। इससे गांव की महिलाओं और पुरूषों को भी अतिरिक्त काम मिल सकता है। इस प्रकार के अनेक छोटे-छोटे प्रयास भारत के ग्रामीण जीवन में सुखद परिवर्तन ला सकने में समर्थ हैं।