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बाल पत्रिका देवपुत्र पर बवाल

प्रमोद भार्गव

धार्मिक और राजनीतिक पूर्वग्रहों के चलते खासतौर से विधार्थियों में एक विशेष सोच विकसित करने की कोशिशें देश प्रदेश की सरकारें करती रही हैं। इसी क्रम में मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार भी खड़ी है। दरअसल शिवराज सरकार ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ दारा पोषित पल्लवित देवपुत्र पात्रिका का मध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विधालयों में खरीदा जाना अनिवार्य कर दिया है। इस मकसद पूर्ति के लिए बड़ी चतुरार्इ से सरकार ने पत्रिका की प्रकाशक संस्था सरस्वती बाल कल्याण न्यास के नाम सवा तेरह करोड़ रूपये की एफडी करा दी है। यह धन राशि सर्व शिक्षा अभियान के उस मद से ली गर्इ है जिसके तहत पूरे प्रदेश में पंचायत स्तर पर ग्रामीण पुस्तकालय स्थापित करने थे। पात्रिका के लिए धन की कमी न आए इस कारण एनसीर्इआरटी द्वारा पाठशालाओं में बरखा श्रृंखला के अंतर्गत जो ज्ञान विज्ञान की दृषिट से महत्वपूर्ण पुस्तकें भेजी जाती है उनकी सदस्यता खारिज कर दी गर्इ हैं। अब तक यह पात्रिका 10 रूपये में उपलब्ध थी लेकिन सरकार द्वारा आजीवन सदस्यता से ठीक पहले इसकी कीमत दस से बढ़ाकर 12 रूपये कर दी गर्इ हैं।

अपनी राजनीतिक विचारधारा के प्रति वैचरिक प्रतिबद्धता के चलते पाठयक्रमों को बदलना अथवा अपनी विचारधारा के अनुरूप साहित्य को विधार्थियों पर थोपना कोर्इ नर्इ बात नहीं है। जो काम मध्यप्रदेश में शिवराज कर रहे है वही काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने करने का बीड़ा उठाया है। उन्होनें उच्च स्तर माध्यमिक स्तर पर शालाओं में पढ़ार्इ जाने वाली पाठय-पुस्तकों से माक्र्स, एंगलिस और वोल्शेविक की जगह शीतयुद्ध के बाद हुए लोकतांत्रिक आंदोलनों को किताबों में शामिल करने का निर्णय लिया है । देशभर के मदरसों में इस्लामी शिक्षा के बहाने मुस्लिम कटटरता का पाठ बेखौफ पढ़ाया जा रहा है। यहां गौरतलब यह हैं कि सरकारी अनुदान से चलने वाले मदरसों के पाठयक्रम पर न तो आप अंगुली उठा सकते हैं और न दखल दे सकते हैं ? नए प्रवाधनों के अंतर्गत तो इन मदरसों से सूचना के अधिकार कानून के तहत भी कोर्इ जानकारी नहीं मांगी जा सकती ? कि्रशिचयन स्कूलों की बुनियाद तो र्इसार्इ धर्म के विस्तार और धर्म परिर्वतन के लिए ही रखी गर्इ थी। अब ऐसे में आरएसएम की कठपुतली मुख्यमंत्री शिवराज संध के निर्देश की अवहेलना का जोखिम उठांए भी तो किस बिना पर ?

हालांकि इस मुददे पर पात्रिका की विषय वस्तु की अपेक्षा उस धनराशि के आंकडे को उछाला जा रहा है जो पत्रिका को दिया जाना है। इस दृषिट से जो प्रमुख बात है वह कि देवपुत्र के खाते में पैसा सीधा नहीं पहुंचा है। बलिक तीन नामों से इलाहाबाद बैंक भोपाल में एक एफडी बनवार्इ गर्इ है। इन संयुक्त खातेदारों में सर्व शिक्षा अभियान, सरस्वती बाल कल्याण न्यास और खुद इलाहाबाद बैंक है। सर्वशिक्षा अभियान और न्यास के बीच हुए अनुबंध के मुताबिक बैंक पात्रिका के खाते में धन राशि तब वितरित करेगा जब उसे सर्वशिक्षा अभियान से पूरे एक साल पत्रिका वितरित किए जाने का अनापति प्रमाण पत्र हासिल हो जाएगा। मसलन एक – एक साल के क्रम में भुगतान किया जाना तय है। शर्तों का पालन नहीं होने पर भुगतन रोक दिया जाएगा। देवपुत्र के साथ यह भी बाध्यकारी शर्तें जुड़ी है कि जिस अजीवन सदस्यता के तहत 15 साल पात्रिका वितरित की जानी है उस दौरान कागज, मुदृण और वितरण खर्च में कितना भी इजाफा हो पात्रिका निर्धारित मूल्य पर ही वितरित की जाती रहेगी। इस तथ्य से जाहिर होता है कि धन राशि न तो बतौर पेशगी पात्रिका के खाते में जमा की गर्इ है और न ही पात्रिका की आजीवन सदस्यता के क्रम में फिलहाल कोर्इ धोटाला सम्भव है ?

देवपुत्र पत्रिका की खरीद में अनियमितता के विरूद्ध विधानसभा में सवाल उठाने वाले कंग्रेस विधायक रामनिवास रावत का कहना है, उन्होंने इस बाबत सवाल पूछे थे। लेकिन सरकार की तरफ से संतोषजनक उत्तर नहीं मिले। हालांकि उन्होंने क्या प्रमुख सवाल पूछा और क्या उत्तर मिला यह उन्हें ख्याल नहीं है। हालांकि वह इतना जरूर कह रहे है कि पत्रिका के लिए पूरा चंदा पेशगी देना बडे धपले की ओर इशारा करता हैं। किंतु उनके इस कथन को जरूर एक हद तक बाजिब कहा जा सकता है कि भारत सरकार सर्वशिक्षा अभियान को धनराशि छात्रों के कौशल विकास के लिए देता है, संघ की विचारधारा से जुड़ी इस पत्रिका के पढ़ने से बच्चों में कौन-सा रचनात्मक विकास होगा यह सोचनीय पहलू है।

दुसरी तरफ पत्रिका के संपादक विकास दवे का दावा है कि शालेय शिक्षा मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस के मार्फत कांग्रेस के सभी विधयकों को अनुबंध से पहले देवपुत्र के एक साल के अंक भेजे गए थे। उनसे यह अपेक्षा की गर्इ थी कि वे इन अंको से ऐसी साम्रगी निकालें जो छात्रों और उनके बच्चों के चरित्र निर्माण की दृष्टि से अनुपयोगी है। लेकिन समय सीमा बीत जाने के बावजूद कांग्रेस के एक भी विधायक ने कोर्इ आपति नहीं जतार्इ। दवे आगे कहते है देवपुत्र को किसी वैचरिक चश्मे से परखने की जरूरत नहीं है। हम इसमें गांधी, नेहरू, शास्त्री, सुभाष और अब्दुल कलाम को छापते हैं। स्वंतत्रता संग्राम की प्रेरक और बलिदानी कहांनियां छापते है। हिंदु मिथकों और अवधारणाओं की वैज्ञानिकता सिद्ध करते हैं। अब इसमें एकपक्षीयता अथवा धर्मिक कटटरता कहां है ?

बहारहाल हकीकत कुछ भी हो फिलहाल देवपुत्र ने बाल पात्रिका के रूप में सार्वधिक वितरित होने वाली पत्रिका को गौरव हासिल कर लिया है। अप्र्रेल 2012 के अंक से देवपुत्र की प्रसार संख्या ने 3,71,438 का चमत्कारी आकड़ा छू लिया है। इस लिहाज से नंदन, चंपक, लोटपोट और बाल भारती जैसी पत्रिकाएं बहुत पीछे छूट गर्इ हैं। प्रदेश सरकार की भरपूर आर्थिक मदद मिल जाने अब से शीघ्र ही इसका डिजीडल संस्करण जारी होगा। नतीजन 16 देशों के गा्रहक मुफत में पात्रिका अपलोड करके इसे पढ़ने का लाभ उठा सकेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने देवपुत्र के जरिए संघ को तो खुश किया ही, वे भारतीय सनातन मूल्यों और नायकों की थाती को भी छात्रों तक पहुंचाने में सफल होने जा रहे हैं।