स्वामी निगमानंद का बलिदान..याद रखेगा-हिन्दुस्तान…

श्रीराम तिवारी

“काटे मलय परशु सुन भाई!

निज गुण देहि सुगंध वसाई!!

“ताते सुर शीसन चढत,जग वल्लभ श्रीखंड!

अनल दाहि पीटत घनहिं,परशु बदन यह दंड!!

उपरोक्त चौपाई और उसके नीचे जो दोहा मानस से उद्धृत किया गया है दोनों ही बहुत सरलतम हिंदी में और प्रासंगिकता के लिए प्रस्तुत आलेख की पृष्ठभूमि के बेहतरीन प्रस्तर निरुपित हो रहे हैं.भावार्थ ये है कि जो परशु अर्थात कुल्हाड़ी चन्दन को काटती है तो चन्दन उससे नाराज न होकर उलटे अपनी सुगंध से सुवासित कर देता है परिणाम स्वरूप परशु की नियति ये होती है कि उसे लोहे की भट्टी में तपा-तपा कर घन से पीटा जाता है..चन्दन को उसके साधू स्वभाव {पर हित कारण कष्ट सहना}के कारण देवों के मस्तक पर धारण योग्य मन जाता है.

जिस तरह आम सांसारिक गृहस्थ नर-नारियों में सभी निहित स्वार्थी नहीं होते उसी तरह सन्यासियों-स्वामियों-बाबाओं में सभी बदमाश या साधू के वेश में शैतान नहीं होते.कुछ गिने चुने असली सन्यासी ,त्यागी,विश्व कल्याण चेता भी होते हैं .हाँ!यह बात जुदा है कि कोई भी धार्मिक -आध्यात्मिक -सन्यासी महज राष्ट्रवादी होता है या कि समस्त संसार के लिए बल्कि समस्त ब्रह्मांड के लिए तप करता है औरयदि उसके लिए कोई भी शत्रु नहीं होता तो वह स्वनाम धन्य हो जाता है.

ऐंसे समदर्शी और सर्वप्रिय सज्जन या साधू पुरुष के लिए श्रीमद भागवदपुराण में महात्मन वेद व्यास ने लिखा है-

कुलं पवित्रं जननी कृतार्था, वसुंधरा पुण्यवती च तेन!

अपार सम्वितु सुख्साग्रेअश्मिन,लीनमपरे ब्रह्मणिअस्य चेतः!!

अर्थात कुल धन्य हो जाते हैं, माता धन्य हो जाती है,वह धरती और देश धन्य हो जाते हैं

जहाँ त्याग और परहित मेंअपना सर्वस्व स्वाहा करने वाले महान सपूत {स्वामी निगमानंद जैसे}जन्म लेते हैं.

वह धरती बाँझ हो जाती है ,वह देश बर्बाद हो जाता है वह समाज ,कुल और सभ्यता नष्ट हो जाती हैं जहां परनिंदक और धन लोभी ढोंगी बाबा जन्म लेते हैं.

स्वामी निगमानंद कोई आसमान से चाँद -तारे तोड़कर लाने की जिद नहीं कर रहे थे.वे तो उस तथा कथित गंगा मैया को -जो न केवल भारतीय उपमहाद्वीप की आत्मा है बल्कि हिन्दू धर्म की जननी है-उसे उन खनन माफियाओं से बचाने और गंगा की जीवन्तता के लिए सत्तारूढ़ उत्तराखंड की भाजपा सरकार से मांग कर रहे थे.वे कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा को ढाल बनाकर अनशन का ढोंग नहीं कर रहे थे.वे तो उस गंगा को जो सदियों से भारतीय वर्तमान दौर के घोर अधोगामी पूंजीवादी कार्पोरेट सिस्टम ने जिसे अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए भयानक प्रदूषण का शिकार बनाकर जिस पतित पावनी गंगा को आज गटर गंगा में तब्दील कर दिया है-उसे बचाने की जद्दोज़हद कर रहे थे.हरिद्वार के ३४ वर्षीय संत स्वामी निगमानंद बिगत १९ फरवरी से उक्त पवित्रतम ध्येय के लिए अनशन पर थे.उनकी मांग थी कि तपोवन से हरिद्वार तक गंगा को आदर्श रूप में प्रदूषण मुक्त कराया जाए तथा कुम्भ मेला क्षेत्र में जारी स्टोन क्रेशर द्वारा अवैध खनन पर रोक लगाईं जाए.अनशन के ६८ वें दिन २७ अप्रैल को उनकी सेहत बिगड़ने पर जिला प्रशाशन ने उन्हें स्थानीय अस्पताल में दाखिल करा दियाथा.यहाँ स्थिति गंभीर होने पर २ मई को उन्हें देहरादून के उसी हिमालयन अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां पर बाद में ६ जून को बाबा रामदेव भर्ती किये गए थे.इस अस्पताल में उनके साथ क्या हुआ ?उन्हें कोमा कि स्थिति में पहुँचने पर भी उस भाजपा या उत्तराखंड सरकार ने उनकी सुध क्यों नहीं ली जो इन्ही साधुओं और बाबाओं के कंधे पर चढ़कर विभिन्न राज्यों में सत्ता में पहुंची है और केंद्र की सत्ता की चिर अभीलाशनी है?जब रामदेव और निगमानंद एक ही समय में एक ही अस्पताल में और एक ही तरह की अनशनकारी भूमिका में भर्ती थे तो तब तक -जब तक स्वामी निगमानंद के प्राण पखेरू नहीं उड़ गए तब तक न केवल उत्तराखंड सरकार,न केवल रमेश पोखरियाल “निशंक”,न केवल संघ परिवार और भाजपा,न केवल मीडिया-अखवार-चेनल्स,बल्कि उस साधू समाज ने जो अपने आचरण में सम दर्शी और वीतरागी होना चाहिए वो साधू समाज -संत समाज सिर्फ बाबा रामदेव की परिचर्या और उनके कुसल मंगल की कामना में संलग्न रह कर स्वमी निगमानंद को क्यों भूल गया?

स्वामी रामदेव की स्थिति कि पल-पल खबर देने को आतुर पूँजी का भडेत मीडिया बड़ी चालाकी से स्वामी निगमानंद की शहादत को भुनाने में जुट गया है,भाजपा और उतराखंड सरकार तो फिर भी इस घटना से सहमी हुई है और इस गफलत पर शर्मिंदा भी हैं कि समय रहते हमने ऐंसा क्यों नहीं किया जैसा बाबा रामदेव के समर्थन में पूरे देश में पूरी शिद्दत से अपने हितार्थ किया था.

धीरे-धीरे स्वामी निगमानंद के बलिदान से भाजपा और उसकी उत्तराखंड सरकार का सच सामने आता जा रहा है.बाबा रामदेव को पहले दिन ही कोमा में चले जाने कीझूंठी घोषणा करने वाले “निशंक”रामदेव सेवा में चौबीसों घंटे तैनात क्यों रहे?वे अपने ही राज्य के इतने बड़े मसले को नज़र अंदाज कर न केवल भागीरथी की उपेक्षा के लिए बल्कि महान शहीद स्वामी निगमानंद की मौत के लिए भी सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं.साथ ही वे सभी साधू -संत ,स्वामी,श्री-श्री,बगुला भक्त एन आर आई योगेश्वर,और पैसे वालों की चिरोरी करने वाला मीडिया -सबके सब इस दौर में देश दुनिया को भुलाकर केवल एक व्यक्ति कि खुशामद करने वाले अपनी एतिहासिक अक्षम्य त्रुटि के लिए अभिसप्त क्यों नहीं होना चाहिए?रामदेव की मिजाजपुर्सी और तीमारदारी इसलिए की गई कि ये बाबा पैसे वाला है,सोनिया गाँधी,मनमोहनसिंह ,दिग्विजयसिंह और देश कि निर्वाचित सरकार को गाली देता है,ये बाबा आगामी चुनाव में राजनैतिक फायदे का हैजबकि स्वामी निगमानंद तो कोई काम का नहीं;उलटे खनन माफिया और उत्तराखंड सरकार की मिली भगत को उजागर करने पर आमादा है,ऐंसे स्वामी या बाबा भाजपा के किसी काम के नहीं.भारत के तमाम साधुओ सुनो!सन्यासियों सुनो!रामभक्तो-कृष्ण भक्तो सुनो!यदि तुम गंगा पुत्र स्वामी निगमानंद की राह चलोगे तो मोक्ष पाओगे!यदि तुम मिलियेनार्स बाबा रामदेव के साथ रहोगे तो इस लोक में राज्य सुख पाओगे!हे !अमृत पुत्रो!यदि संभव हो तो सन्यासियों ,योगियों,और बाबाओं के पीछे खड़े स्वार्थियों को पहचानो!!जय गंगा मैया!जय स्वामी निगमानंद!!

3 COMMENTS

  1. “मसखरे लफ़फाज़ ओर ढोंगी बाबाओं से ज़न-क्रांति की उम्मीद करने वालो सावधान”
    इस लेख में तिवारीजी ने बाबा को बदनाम करने के लिए साधू संत की परिभासा बदल दी थी और इस लेख में एक साधू के पक्ष में खड़े है क्यों
    क्योंकि बाबा रामदेव को बदनाम करने के लिए इन्हें तो कोई मोहरा चाहिए इनकी बाते कभी विस्वास योग्य नहीं हो सकती
    तिवारीजी के अनुसार साधू संत को केवल जप ध्यान भजन करना चाहिए संसार से उन्हें क्या लेना देना ज्यादा पवित्रता और शुद्धता चाहिए तो हिमालय चले जाओ फिर स्वामी निग्मानान्दजी के पक्ष में क्यों खड़े है क्योंकि ये अंग्रेजो के मानस पुत्र है और उन्ही की निति “फुट डालो राज करो ” अपना रहे है एक तीर से दो शिकार करने की सोच रहे है

  2. सर आप ने अच्छा लिखा है पर स्वामी रामदेव और स्वामी निगमानंद को आप एक तराजू मैं क्यों तोल रहे हो भाई , स्वामी रामदेव के मुद्दे क्या गलत है ,मुझे अभी तक समज नहीं आया की मूख्य मुद्दों को भुलाकर इन दोनों संतो को आपस मैं क्यों लड़ाया जा रहा है मुद्दों से भटकाया जा रहा है , मीडिया सरकार की खरीदी हुई है उनका कम है मुद्दों से भटकना वो उन्होंने कर दिखाया है , रही भा. ज. पा. सरकार की तो उत्खनन का कम सायद केंद्र सरकार की देख रेख मैं होता है स्वामी निगमानंद की मृत्यु का कारन केंद्र सरकार की गलत नीतियों के वजह से हुई है सायद उनका कोइ छिपा अगेंडा होंगा स्वामी रामदेव को बदनाम करने का रही बात स्वामी निगमानंद की शहादत की उनको कोटि कोटि प्रणाम , पर भाई आत्महत्या और आत्मार्पण मैं फर्क होता है , अगर वो जीवित रहते तो उनका कम आज अधुरा नहीं रहता लोगो का पता नहीं पर ये आत्महत्या है

  3. भाई अभिषेक पुरोहित जी आप की हमें बहुत याद आ रही थी.दरसल आप भले ही हमें गाली देते रहते हैं किन्तु हम आपके मुरीद हैं.आप जैसे भी किन्तु आपका मन निर्मल है,वास्तव में आपको ओर अध्यन और चिंतन की जरुरत है,तभी आप किसी विषय पर अनुरूप या समालोचनात्मक टिप्पणी के काबिल बन सकेंगें.मैं आपकी टिप्पणियों को इस तरह लेता हूँ-
    जो बालक कह तोततली बाता!
    सुनहिं मात-पितु मन हर्षाता!!
    आप आलेख के तथ्यों पर भी प्रकाश डाला कीजियेगा.सिर्फ मेरी वैचारिक प्रतिवद्धता का ढिंढोरा पीटने से क्या होगा?आप आईने को क्यों कोसते रहते हैं?

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