अपनी ही बारूद से झुलसता पाकिस्तान

bombफैज अहमद ‘फैज’ 20वीं शताब्दी के महान शायरों में से थे। उन्होंने ‘सुबह-ए-आजादी’ नामक कविता लिखी थी। जोकि उस समय बड़ी प्रसिद्घ हुई थी। उनकी यह कविता उन लोगों की पीड़ा को भली प्रकार प्रस्तुत करती है जिन्होंने आजादी से बहुत सारी अपेक्षाएं पाली थीं। पर बाद में उन्हें ऐसा कुछ नही मिला जिसे वह ‘आजादी’ की चाशनी में डालकर अपनी थाली में खाने के लिए ले आते। उनकी स्थिति वैसी ही हो गयी थी जैसे कोई बच्चा थाली में रखे हलवा में बार-बार चम्मच घुमाता रहता है-केवल इस आशा में कि न जाने कोई किशमिश मिल जाए, फैज साहब की कविता की पंक्तियां थीं:-

‘‘ये दाग-दाग उजाला ये शब गजीदा सहर,
वो इंतजार था जिसका ये वो सहर तो नही,
सुना है हो भी चुका है फिराक-ए जुल्मत नूर
सुना है हो भी चुका है विसाले मंजिलों गम,
कहां से आयी निगार-ए सबा किधर को गयी?
अभी चिराग-ए-सर-ए-राह को कुछ खबर ही नही,
अभी गरानी-ए-शव में कमी नही आयी,
नजात-ए-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नही आयी।।’’

अपनी काश्मीर भी देश के अन्य हिस्सों की भांति उस समय (1947 में) वैसे ही खुशियों और उम्मीदों के समन्दर में डूबी हुई थी जैसे आसाम, गुजरात या तमिलनाडु डूबे हुए थे। पर फिर भी इस प्रदेश की स्थितियां कुछ दूसरी थीं। इसे साम्प्रदायिक आधार पर देश से अलग करने की एक पूरी षडय़ंत्रकारी योजना देश के विभाजन से पूर्व ही षडय़ंत्रकारियों ने बनानी आरंभ कर दी थी। भला हो महाराज हरिसिंह का और सरदार पटेल का कि उन दोनों के सम्मिलित प्रयास से हमें कश्मीर का एक बड़ा भाग मिल गया। यह हमारी पंथनिरपेक्ष शासन प्रणाली की ही देन है कि आज जो काश्मीर भारत के पास है उसमें विकास और समृद्घि की हवा बह रही है। जबकि पाक अधिकृत कश्मीर का युवा बेरोजगारी और आर्थिक विपन्नता की लपटों में झुलस रहा है। मजहबी आधार पर पाकिस्तान ने काश्मीर के लोगों का मानसिक शोषण चाहे भले ही किया हो पर वह अपनी काश्मीर को समृद्घिशाली नही बना पाया। उसने वहां आर्थिक समृद्घि के लिए किसी प्रकार की भी योजनाएं लागू नही की हैं। जिससे पाक अधिकृत कश्मीर के युवा की अब आंखें खुलने लगी हैं और उसे पता चलने लगा है कि ‘मजहब’ सचमुच व्यक्ति का निजी मामला है, यह भोजन वस्त्र और आवास नही दे सकता। मूलभूत आवश्यकताओं की पूत्र्ति के लिए भी हमें आधुनिक विज्ञान और तकनीकी शिक्षा संस्थाओं की ओर ही जाना पड़ेगा और उन्हीं से अपनी समस्याओं का समाधान मांगना पड़ेगा। कश्मीरी युवा समझ गया है कि पाकिस्तान ने मजहब के नाम पर पाक अधिकृत कश्मीर के युवाओं का मानसिक शोषण ही किया है और उनके हाथ में जीवन की रचनात्मक इबारत लिखने के लिए कलम न देकर अपने ही हाथों को जलाने के लिए और युवा हाथों को लुंज-पुंज कर देने के लिए बारूद थमा दिया है, या एके 47 दे दी है। ऐसी परिस्थितियों में पाक अधिकृत कश्मीर में युवाओं में लंबे काल से विद्रोह का लावा उमड़ता और उबलता रहा है। गुलाम कश्मीर में 50 प्रतिशत से अधिक युवाओं के पास अपनी आजीविका का कोई साधन नही है। उनके पास अपना सर छुपाने तक के लिए घोंसले नही हैं। यही कारण है कि अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का युवा 21वीं शदी के आते ही अपनी सरकारों और मजहबी शक्तियों के विरूद्घ लामबंद होता जा रहा है। वह अपने हाथों में आये बारूद को आत्मघात के लिए प्रयोग होकर के पहले उनके विरूद्घ प्रयोग न करके चाहता है जिन्होंने पिछले 70 वर्ष से उनका मजहब के नाम पर शोषण किया है। जो लोग भारत में रहकर कश्मीर के अलगाववादियों के समर्थन में या पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हैं उन्हें भी यह बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए कि मजहब किसी भी मूल्य पर गरीबी, भुखमरी, अत्याचार, अशिक्षा और अभाव को दूर करने का एकमात्र उपाय नही हो सकता है। यदि ऐसा होता तो पाकिस्तान आज विश्व की एक आर्थिक शक्ति होता। पर हम देख रहे हैं कि वहां भारत के गरीब से गरीब राज्य से भी बुरी स्थिति में लोग जी रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि भारत के गरीब से गरीब राज्य में भी शांति है और जीवन में प्रेमरस है जिनके सहारे भारत के गरीब को टीवी आदि मनोरंजन के लिए खरीदने नही पड़ते। क्योंकि जिनके जीवन में भीतरी संतोष होता है या शांति होती है वे सर्वदा आनंद में रहते हैं मौज और मजे का वास्तविक जीवन जीते हैं।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 5 अक्टूबर 2015 को कश्मीरियों पर अत्याचार के विरोध में बड़ी रैली हुई थी। उसमें पाकिस्तान के विरूद्घ नारेबाजी के साथ-साथ आजादी का भी नारा गूंजा था। भारत के समर्थन में जमकर नारे लगे थे। पाकिस्तान को अपनी धरती पर बारूद के कारखानों में से भारत के विनाश के नारों के स्थान पर भारत के विकास के नारे लगते देखकर तब बड़ा कष्ट हुआ था और उसने अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपनी शाख बचाने और खीझ मिटाने के लिए तब इस कार्यक्रम की टीवी कवरेज को भी झूठा कहा था। पर अब पाक अधिकृत कश्मीर के युवाओं ने एक बार फिर पाकिस्तान से अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने की ठानी है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि जब भारतवर्ष अपने नायक भीमराव अंबेडकरजी को उनकी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ को पढक़र उनकी 125वीं जयंती मनाकर श्रद्घांजलि दे रहा था तब पाकिस्तान की कश्मीर के युवा भी पाकिस्तान नाम की किताब के एक-एक पन्ने को फाडक़र हवा में उड़ाते हुए भारत के साथ डा. बी.आर. अंबेडकर को श्रद्घांजलि दे रहे थे। वे पाकिस्तान के साथ अपना विरोध व्यक्त कर रहे थे और उससे आजादी की बात कर रहे थे। उनका कहना था कि भारत की कश्मीर का तेजी से विकास हो रहा है जबकिपी.ओ.के. के युवाओं के लिए कोई रोजगार नही है। इन युवाओं का कहना था कि ‘‘हम कश्मीर बचाने निकले हैं-आओ हमारे साथ चलो।’’ इस नारे से पाकिस्तानी शासकों को पता चल जाना चाहिए कि अब वे कश्मीर का राग अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अलापना छोड़ दें, जो उनके पास है वे उसे भी नही बचा पाये हैं। अत: भारतीय कश्मीर तो उन्हें क्या मिलेगा? फैज साहब की उपरोक्त पंक्तियां निश्चय ही आज प्रासंगिक हैं जिनमें उस समय (1947) के लोगों की आंखों में तैरते सपने की तस्वीर खींची गयी है पर वह सपना आज के पाकिस्तानी कश्मीर के युवाओं की आंखों से ओझल हो गया है। सर्वत्र वीरानगी है और आक्रोश है। जब जीवन उजड़ रहा हो तो यौवन सत्ता उजाडऩे के लिए आंदोलित हो उठता है। पाक के नापाक सैनिक शासकों ने जीवन उजाडऩे के लिए व्यापार करना आरंभ किया था पर आज उसके अपने ही बारूद के ढेर में आग लग रही है-मानो पाकिस्तान के शासक आज भी ‘शेरशाह सूरी’ के वंशज हैं जो कालिंजर दुर्ग में अपने ही बारूद के ढेर में आग लग जाने से मर गया था। बारूद का धर्म नाश करना ही है और धर्म कभी बदलता नही है-मजहब बदल सकता है बारूद का धर्म 1545 ई. में भी विनाश करना ही था और आज भी विनाश करना ही है हमने शेरशाह का भारतीकरण करके उसकी बारूद को केसर में बदल लिया है जबकि पाकिस्तान ने शेरशाह को विनाश के रूप में अपनाकर उसकी बारूद को आग के पास रखने की भूल की है। परिणाम सबके सामने हैं।

Previous article22 अप्रैल कैसे बना पृथ्वी दिवस ??
Next articleचैत्र पूर्णिमा ही है हनुमान जयन्ती
राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress