महत्वपूर्ण लेख

पाकिस्तान को करारा जबाब

-चन्द्र प्रकाश शर्मा-

ChangeIndia

ये सही है कि भारत -पाक वार्ता का रद होना दुर्भाग्यपूर्ण है। दोनों तरफ से कहा जा रहा है कि पहले भी वार्ता से पहले कश्मीरी नेताओं से पाकिस्तान लीडरान मिलते रहे हैं, पर अब क्यों आपत्ति। अगर अतीत में गलती होती रही है तो क्या ये जरूरी है कि आगे भी उसी गलती को दोहराया जाये। तो क्या बात करने की जिम्मेदारी सिर्फ भारत की ही है पाकिस्तान की नहीं। हर बार की तरह इस बार भी एक तरफ तो पाकिस्तान के नेता गले मिलते हैं, दूसरी तरफ आतंकी घटनाएं, सीमा पर फायरिंग और कश्मीरी अलगाववादी नेताओ के साथ मिलकर भारत को चिड़ाने की करवाई। क्या ये शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की करवाई का हिस्सा है ? पहली बार किसी मर्द नेता ने पाकिस्तान को कड़ा सन्देश देने की कोशिस की है। पाकिस्तान को इस तरह का कड़ा सन्देश देने की सख्त जरूरत थी कि दोस्ती और दुश्मनी की दोनों किश्तियों की सवारी हमें मंजूर नहीं। हमारी संसद पर हमला, लाल किले पर हमला, जम्मू कश्मीर विधान सभा पर हमला , हमारे शहरों, बाज़ारों, मंदिरों पर हमले हुए। कारगिल हुआ, मुंबई पर 26 /11 हमला करवाया गया इसके बावजूद भी भारत दोस्ती का प्रयास करता रहा। कारगिल के बावजूद परवेज़ मुशर्रफ को आगरा बुलाया गया। मुंबई के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके प्रधानमंत्री गिलानी से हाथ मिलाया। अगर हम शरीफ प्रतिक्रिया व्यक्त न करते तो मुंबई पर हमला न होता। भारत द्वारा कश्मीरी अलगाववादी नेताओ से बातचीत पर ऐतराज को पाक उच्चायुक्त द्वारा दरकिनार किनार करना क्या भारत का अपमान नहीं है इस पर कांग्रेसी नेताओ और अन्य दलों के नेताओं की जुबान पर क्यों ताला पड़ गया. अरे भले मानसों कभी तो देश हित में एक हो जाओ . असल में कांग्रेस को अपमान का घूंट पीने की और देश को जलील करने की आदत पड़ चुकी है। उसने देश के स्वाभिमान को गिरवी रख दिया है। तभी पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ की मोदी सरकार पिछली सरकारों की तरह ये जहर का घूँट पीने को तयार क्यों नहीं हुई। उसे मोदी सरकार से इस तरह की कठोरता की कतई उम्मीद नहीं थी।

लगता है भारत ने चीन से सबक लिया है , जो तिब्बती नेता दलाई लामा से मिलने वाले किस भी विदेशी राजनेता से इतना नराज हो जाता है कि रिश्तों पर आंच आने लगती है। चीन की आर्थिक और सैनिक ताकत से डर कर मानव अधिकार की बात करने वाली बड़ी ताकतें भी दलाई लामा को अपने से दूर रखने लगी हैं। भारत को भी भविष्य में आल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं के प्रति यही रूख अपनाना चाहिए। पाकिस्तानी धन बल बल पर पलने वाले अय्याश हुर्रियत नेता भारत में रह कर केवल पाकिस्तान का राग अलापते हैं। ऐसे नेताओं को अब तक की सरकारें इतनी अहमियत आखिर क्यों देती रही ? आखिर क्यों उन्हें अब तक पाकिस्तान जाने और विदेश में जा कर भारत के खिलाफ बोलने की इजाजत दी जाती रही? पाकिस्तानी आई एस आई की ताकत और पैसों के बल पर जीने वाले हुर्रियत नेताओं की पोल सरकार क्यों नहीं खोलती ? इस बार पहली बार मोदी सरकार ने भारत पाक के बीसवह हुर्रियत गट को एक मसला बनाकर भविष्य के के लिए अपना एक पैमाना तय कर दिया है। समझ नहीं आ रहा है कि अब तक पूर्ववर्ती सरकारें इस तीसरे पक्ष को क्यों बर्दाश्त करती आ रही थी। पाक सरकार जम्मू कश्मीर को एक मसला मानती है जबकि भारत अभी तक पूरी दुनिया को यह समझाने में नाकामयाब रहा है कि कश्मीर कोई मसला नहीं है और ये पूर्ण रूप से भारत का एक अभिन्न अंग है। हैरानी की बात है जो कांग्रेसी नेता कल तक पाकिस्तान से वार्ता के राग अलाप रही थी वही आज भाजपा सरकार पर इस बात के लिए कटाक्ष कर रही है की वह पाकिस्तान के सामने इतना नरम रुख क्यों अपना रही है।

असल में पाकिस्तान भारत की नई सरकार के दमख़म की परीक्षा लेना चाहता था कि वर्तमान सरकार भी पिछली सरकारों की तरह बोदी और पिलपली है या कुछ दमखम है परन्तु अबकी बार पासा उल्टा पड़ गया। पाकिस्तान को भारत से इस तरह की कड़ी प्रतिक्रिया की कतई उम्मीद नहीं थी। फिर भी वो इस मुद्दे पर ज्यादा घबराहट महसूस नहीं कर रहा। वो भली भांति जानता है कि मोदी सरकार के घरेलू दुश्मनों की संख्या कोई कम नहीं है जो मोदी सरकार के पाक के प्रति कठोर रव्वए से उनकी आलोचना करने में पीछे नहीं हटेंगे। वैसे भी आजकल टी वी चैनलों पर ऐसे नामर्द और नपुंसक पाक समर्थक नेता पाक समर्थन में उछलकूद करते नजर आ रहे हैं। देश के अंदर पाक समर्थक कथित उदारवादी लाबी बहुत परेशान है। इस कदम को मोदी सरकार का कूटनीतिक अनाड़ीपन कहा जा रहा है। इस लोगों से पूछा जा सकता है कि जो कूटनीतिक तौर पर बहुत सियाने थे वो कौन से आसमान से तारे तोड़ लाये ? क्या हमारे खिलाफ आतंकवाद खत्म हो गया ? क्या सीमा पर फायरिंग रुक गई ? क्या साजिशें रोक दी गई ? क्या खुला व्यापर शुरू हो गया ? अगर नहीं तो सियानी कूटनीति से क्या घंटा मिला हमें। पाकिस्तान कैसा महसूस करेगा अगर हम बलूच अलगाववादियों को अपने इस्लामाबाद दूतावास में वार्ता के लिए बुलाना शुरू कर दें ? उन गरीबों को तो वहां शायद गोलियों से उड़ा दिया जायेगा। हमें ये एक बात अपने जहन में बिठा लेनी चाहिए कि सूर्य अपना स्थान बदल सकता है, अपनी गति रोक सकता है , चन्द्रमा अपनी गति रोक सकता है , तारे आस्मां में दिखना बंद कर सकते हैं, हवाएं अपना रुख बदल सकती हैं. प्रकृति अपना चाल चलन बदल सकती है लेकिन पाकिस्तान कभी भी भारत के प्रति अपनी दुर्भावना, घृणा, हिंसा , अलगाववाद की नीति नहीं बदल सकता।