पाकिस्तान को सबक सिखाना पड़ेगा

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-डॉ. सी पी राय

ऐसे नाजुक मौके पर जब भारत राष्ट्रमंडल खेल पूरी शान से कराने के संकल्प को सच साबित करने में जुटा हुआ है और यह आयोजन देश की प्रतिष्ठा से जुड़ गया है, दिल्ली में विदेशी पर्यटकों पर गोली चलाकर देश विरोधी ताकतों ने फिर से हमारी ताकत को, साहस को और सहन शक्ति को चुनौती दी है। लगता है कि वे भारत को कड़े कदम उठाने के लिए ललकार रहे हैं| ये सारी वारदातें कहाँ से संचालित होती है, कहाँ षड़यंत्र रचे जाते हैं और इन बदमाशों को कहाँ से हथियार मिलते हैं, यह सबको पता है| चंद सिक्कों के बदले मरने और मारने के लिए ये लड़ाके कौन भेजता है, यह भी किसी से छिपा नहीं है| भारत को अस्थिर बनाने की सारी योजनायें पाकिस्तान में बनती हैं और वही हमारी विश्व में बढ़ती प्रतिष्ठा से घबरा कर साजिशें रचता रहता है|

अमरीका भी इन मामलों में उसी से दोस्ती निभाता है| वह एक तरफ आतंकवाद से लड़ने की बात करता है और इसी छद्म संकल्प की आड़ में कभी इराक तों कभी अफगानिस्तान में फ़ौज उतार देता है पर दूसरी तरफ आतंकवाद की फसल उगाने और उसके लिए खाद पानी का इंतजाम करने के लिए आतंकवाद के जनक पाकिस्तान को अरबों डालर की हर साल मदद भी देता है। अमरीका कि यह दोगली नीति उसे भी खोखला कर रही है| वह भी एक बड़ा आतंकवादी हमला झेल चुका है, जिसमें उसका गर्व-स्तम्भ भरभरा कर ढह गया और उसकी सुरक्षा की सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह गयी।आतंकवादियों ने उसी का जहाज इस्तेमाल किया और उसका गरूर भी तोड़ दिया, उसकी सत्ता को प्रबल चुनौती दे डाली| खुद अमरीकी रपट बताती है कि उस वक्त किस तरह सारे हुक्मरान जमीन के नीचे बनी खंदको में छुप गए थे।पर उसे अभी भी ठीक से होश नहीं आया है| आतंकवाद पर उसका दोहरा रवैया आखिर यही तो कहता है|

जहां तक भारत के मुकाबले पाकिस्तान का प्रश्न है, वह हर बार हर युद्ध में मुंह की खा चुका है| यह सच पाकिस्तान भी जानता है और अमरीका भी अच्छी तरह जानता है| अमरीका की चिंता सिर्फ यही है की भारत बड़ी शक्ति न बन जाये, उसके सामने खड़ा न हो जाये| साथ ही साथ अमरीकी व्यापारियों का हथियार भी बिकता रहे| इसके लिए वह जरूरी समझता है कि भारत को उलझाये रखो। पड़ोसियों को लड़ाते रहो, .ठीक वैसे ही जैसे आजादी के पहले हिन्दू मुसलमानों को अंग्रेज लड़ाया करते थे| पाकिस्तान के हालात इतने ख़राब है कि वह अमरीका कि भीख पर जीने को मजबूर है ,वरना वहां भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। कभी अपनी अकर्मण्यता के कारण, कभी कट्टर कठमुल्लाओ के दबाव में होने के कारण और ज्यादातर फ़ौज का शासन होने के कारण वहां विकास की बात ही नहीं होती, जनता भी अपना दबाव नहीं बना पाती। पाकिस्तान अमरीका से मिली खैरात का इस्तेमाल केवल भारत के खिलाफ करता है ,यहाँ की तरक्की के खिलाफ करता है, विकास के खिलाफ करता है क्योकि उसका तों विकास से कुछ लेना देना नहीं है, पर वह भारत को भी आगे बढ़ते नहीं देखना चाहता।

पाकिस्तान में तो फ़ौज के बूटो के नीचे लोकतंत्र कुचला जा चुका है और फ़ौज को ताकतवर रहना है तों भारत का हौवा दिखा कर छद्म युद्ध छेड़े ही रखना होगा। वहां के राजनीतिको को भी कुछ काम करने के बजाय यही विकल्प ठीक लगता है कि इस कायराना युद्ध से फायदे ही फायदे है। बिना कुछ किये फ़ौज के साये में सत्ता का लुत्फ़ भी उठाते है और इसके खर्चो का कोई हिसाब किताब नहीं देना होता है। इसी कारण वहा के सारे नेता विदेशी बैंकों में भारी दौलत और संपत्ति जमा कर रखते है| पता नही कब फ़ौज भगा दे और देश छोड़ कर कही और शरण लेनी पड़े। कई साल पहले पाकिस्तान के एक बड़े अधिकारी से मिलने का मौका मिला। वे आजादी के बाद अलीगढ से पढ़ कर वहां गए थे। देश के एक विभाग के सबसे बड़े पद पर थे। उन्होंने कहा कि मै भारत में होता तों क्या होता ? पाकिस्तान में तो हम सभी भाइयो की अलग अलग कई एकड़ में कोठियां है ,कई एकड़ का चिलगोजे का फार्म है और बाहर भी बहुत कुछ है, क्या उतना यहाँ होता ? वे रिटायर होने के बाद सब बेंच कर उसी पश्चिमी देश चले गए, जहां अपनी सम्पति होने का उन्होंने जिक्र किया था। उस वक्त जिया राष्ट्रपति थे तथा जुनेजो प्रधान मंत्री थे। कट्टर इस्लाम कानून लागू था। उनके बच्चे की शादी हुई| हमारे एक साथी गए थे, लौट कर उन्होंने जो फोटो दिखाए तथा जो वर्णन किया, वह पाकिस्तान का असली चेहरा जानने के लिए काफी था।

वहां आम लोगों के शराब पीने पर पाबन्दी है लेकिन शादी के मौके पर देश के दोनों बड़ो कि मौजूदगी में दुनिया की सबसे महंगी शराब बह रही थी। शादी ख़त्म होने के बाद उस अधिकारी ने मेरे मित्र को पाकिस्तान घुमाने कि व्यवस्था की और उनके विभाग के बड़े अधिकारी उसकी सेवा में लगे। रोज दिन में दो से चार बार तक वह सब परोसा गया जो इस्लाम में हराम है तथा आम आदमी को जिसके लिए कड़ी सजा दी जाती है| मेरे यह कहने का मकसद यह है की भारत में रहने वाले जिन लोगो को पाकिस्तान में ज्यादा सुख तथा अच्छाइयां दिखती हो, वे यह भी जान ले कि वहा के सबसे बड़े लोग क्या क्या करते है । जहां भारत के खिलाफ केवल कायराना युद्ध लड़ कर इतना सब हासिल हो और जनता कोई सवाल नहीं करती हो ,आतंकवाद वहा का सबसे बड़ा रोजगार बन गया है तों क्या बड़ी बात है।

जब दुनिया यह सब जानती है, अमरीका सहित दुनिया के सभी देश यह सब जानते हैं और भारत सरकार भी यह सब जानती है तों फिर यह सहा क्यों जा रहा है? अमरीका, इंग्लॅण्ड सहित वे सभी देश जो सामूहिक रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात करते है, उन्होंने चुप्पी क्यों ओढ़ रखी है। सिर्फ इसलिए कि उनके लिए आतकवाद नहीं ,मानवता नहीं बल्कि उनके हित और उनका व्यापार ज्यादा महत्वपूर्ण है। लेकिन भारत क्यों सह रहा है ? क्या भारत कमजोर हो गया है ? क्या भारत किसी दबाव में है ? क्या भारत में इच्छाशक्ति कि कमी हो गयी है या भारत के वर्तमान नेता कमजोर साबित हो रहे हैं। क्या यहाँ अब कोई इंदिरा गाँधी जैसा नही है, लाल बहादुर शास्त्री जैसा नही है। या मन का विश्वास और खून की गरमी कमजोर पड़ गयी है। 1971 में एक सबक दिया तों अगले २० साल से अधिक तक या कारगिल तक देश काफी चैन से रहा।

सवाल है कि युद्ध में हथियार खर्च होता है ,वह हो रहा है ,पैसा खर्च होता है ,वह और ज्यादा हो रहा है , लोग प्राण गवांते है ,वह भी युद्ध के मुकाबले ज्यादा लोग मर रहे है। युद्ध में तो सिपाही लड़ कर कुछ लोगो को मार कर मरता है और जनता पूरी तरह सुरक्षित रहती है। पर इस युद्ध में तों सिपाही बिना लड़े ही मर रहा है और जनता भी मारी जा रही है ,बेगुनाह जनता । जब सब कुछ युद्ध से ज्यादा हो रहा है और इन परिस्थितियों से विकास भी प्रभावित होता है और जीवन भी प्रभावित हो रहा है तों फिर एक बार अंतिम लड़ाई क्यों नही। समझाने की कोशिश बहुत हो चुकी ,वार्ताएं बहुत हो चुकी ,बस और ट्रेन चल चुकी ,भारत पाक एकता की बाते हो चुकी ,विभिन्न वर्गों का आदान प्रदान हो चुका लेकिन कुत्ते कि पूंछ इतने वर्षो बाद भी टेढ़ी की टेढ़ी है तों अब रास्ता क्या है ? सरकार को बताना तों पड़ेगा कि सब्र का पैमाना कब भरा हुआ माना जायेगा और सरकार कब फैसला लेगी। सौ करोड़ से बड़ा यह देश जवाब का इंतजार कर रहा है। सरकार हार जाये पर भारत कि जनता बहुत बहादुर है। यह चिकोटी अब बहुत बुरी लगने लगी है। क्या भारत सरकार का थप्पड़ अब चलेगा ? नहीं तो कब चलेगा ? जनता अब अंतिम इलाज चाहती है। जनता कह रही है, रे रोक युधिष्ठिर को ना अब ,लौटा दे अर्जुन वीर हमें।

( डॉ. सी पी राय आगरा विश्वविद्यालय में शिक्षक और राजनीतिक ऐक्टिविस्ट हैं, उनसे फोन नम्बर 09412254400 पर सम्पर्क किया जा सकता है)

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डॉ. सी. पी. राय
एम् ए [राजनीति शास्त्र], एल एल बी ,पी जी डिप [समूह संचार]। एम एड, पी एच डी [शिक्षा शास्त्र] पी एच डी [राजनीति शास्त्र]। संसदीय पुस्तक पुरस्कार से सम्मानित। पूर्व राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश। अध्यापक ,गाँधी अध्ययन। डॉ बी आर आंबेडकर विश्व विधालय आगरा। १- "संसद और विपक्ष " नामक मेरी प्रकाशित शोध पुस्तक को संसदीय पुस्तक पुरस्कार मिल चुका है। २-यादो के आईने में डॉ. लोहिया भी एक प्रयास था। ३-अनुसन्धान परिचय में मेरा बहुत थोडा योगदान है। ४-कविताओ कि पहली पुस्तक प्रकाशित हो रही है। ५-छात्र जीवन से ही लगातार तमाम पत्र और पत्रिकाओ में लगातार लेख और कवितायेँ प्रकाशित होती रही है। कविता के मंचो पर भी एक समय तक दखल था, जो व्यस्तता के कारण फ़िलहाल छूटा है। मेरी बात - कविताएं लिखना और सुनना तथा सुनाना और तात्कालिक विषयों पर कलम चलाना, सामाजिक विसंगतियों पर कलम और कर्म से जूझते रहना ही मेरा काम है। किसी को पत्थर कि तरह लगे या फूल कि तरह पर मै तों कलम को हथियार बना कर लड़ता ही रहूँगा और जो देश और समाज के हित में लगेगा वो सब करता रहूँगा। किसी को खुश करना ?नही मुझे नही लगता है कि यह जरूरी है कि सब आप से खुश ही रहे। हां मै गन्दगी साफ करने निकला हूँ तों मुझे अपने हाथ तों गंदे करने ही होंगे और हाथ क्या कभी कभी सफाई के दौरान गन्दगी चेहरे पर भी आ जाती है और सर पर भी। पर इससे क्या डरना। रास्ता कंटकपूर्ण है लेकिन चलना तों पड़ेगा और मै चल रहा हूँ धीरे धीरे। लोग जुड़ते जायेंगे, काफिला बनता जायेगा और एक दिन जीत सफाई चाहने वालो कि ही होगी।

20 COMMENTS

  1. मैं तिवारी जी के विचारों से सहमत हूँ । अब श्रीकृष्ण की भाँति शिशुपाल रूपी पाकिस्तान को अंतिम पाठ पढ़ाने का समय आ गया है ।

    जितेन्द्र माथुर

  2. (१)विद्वान मॉरगनथाउ, politics among nations नामक पाठ्य पुस्तक में केवल बडे देशों को ही “विश्व शक्ति क्षम” मानता है। इसके ८ कारण भी वह देता है।
    (२) दुनिया की संभाव्य विश्व शक्तियां ५ या ६ ही है। सारे बडे देश इस सूचिमें सम्मिलित हैं। अमरिका, रशिया, भारत, चीन, एक या दो और, स्मरण नहीं कर पा रहा हूं।यह सारे परस्पर प्रतिस्पर्धी हैं।
    (३)पाकीस्तान कितना भी उन्नति कर ले, अमरिका का प्रतिस्पर्धी नहीं होगा (भारत हो सकता है।)।
    (४) इस लिए अमरिका, भारतकी सहायता करे, (अपवाद छोड) यह संभव नहीं है। वह तभी सहायता करेगा, जब उस का अपना भी, निश्चित लाभ, उसे प्रतीत हो।
    (५) भारतके लिए पाठ:=> किसी भी देशकी विदेशी नीति “सिद्धांत आधारित नहीं होती।” =>वह उनके अपने देश हित आधारित ही होती है। उसपर विश्वशांति का या सिद्धांत का शब्दावरण दिया जाता है।
    (६) क्या हमारी नीति देश हित आधारित हैं? या वोट बॅंक आधारित हैं ? <=
    (७) हमारा आगे बढना हमारी किस नीतिका साफल्य है? या दुनिया की गतिविधियोंका या घटनाक्रम का परिणाम है? इस पर सोचना रोचक होगा। आप क्या सोचते हैं?
    धन्यवाद।

  3. टिप्पणी की शुरुआत मेने ही की थी -अब समापन करने से पूर्व जो महत्व पूर्ण हित -हमारे और पाकिस्तान के दरम्यान जुड़े हैं ,उन पर गौर करते हुए विषय को अंतिम निष्कर्ष पर ले जाएँ .—
    पकिस्तान में लगभग -१६००००००-अल्पसंख्यक {हिन्दू ] रहते हैं .
    =====*=========-२३०००००० -शिया -मुस्लिम -===८====.
    =====८========-४०००००० -गैर सुन्नी मुस्लिम -=======.
    ======*========२६०००००० -पख्तून ================.
    ======*=======१२०००००० -बलूच ==================.
    इसके अलावा पकिस्तान का मजदूर और किसान की तादाद लगभग १० करोड़ है .
    ये आंकड़े सभी लगभग में हैं -इस आबादी के मन में आज के पाकिस्तान के प्रति कोई लगाव या निष्ठां नहीं .सभी का दम घुट रहा है .ये सभी लगभग १५ करोड़ हैं और भारत से युद्ध नहीं दोस्ती चाहते हैं .वहाँ के जमींदार वर्ग ,मिलिट्री और आई एस आई में भी अब कोई एकता नहीं बची .तालिवान और आतंकवाद से भयभीत
    जनता का ध्यान बटाने के लिए भारत के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं ,कायरता के लिए मशहूर पाकिस्तानी फ़ौज और हुक्मरान भारत से क्या खाक लड़ेंगे ?सबसे बड़ा खतरा इस बात का है की पाकिस्तान की आणविक शक्ति पर आतंकवाद की पकड़ न हो जाये ,यदि ऐसा हुआ तो भारत को तो नुक्सान होगा ही किन्तु पाकिस्तान खुद बर्वाद हो जाएगा .

    • आप बिलकुल ठीक कहते हैं, साधारण पाकिस्तानी भारत से दोस्ती के हक्क में है| बहुत वर्ष पहले मेरे चचेरे भाई साहिब एक दिन का वीसा लेकर पाकिस्तान में से होते हुए रेल द्वारा काबुल के लिए रवाना हुए थे लेकिन वहाँ रेल की हड़ताल होने के कारण लाहोर में रुक कर रह गए| जैसी उनसे अपेक्षा थी वह समीप के एक पुलिस चोंकी पर वीसा की अवधी बढाने के लिए गए| वहाँ वीसा प्रार्थना पत्र पर जब उन्होंने पंजाब में अपने गाँव का पता लिखा तो पुलिस अधिकारी ने उन्हें हड़ताल के दौरान उनके घर में ठहरने का आग्रह किया| हिचकिचाते उन्होंने स्वीकार कर लिया और घर पहुँचने पर उस अधिकारी के पिताजी ने मेरे भाई साहिब का बहुत प्रेमपूर्वक सत्कार किया| अधिकारी के बजुर्ग पिताजी हमारे गाँव में मेरे तायाजी के बचपन के दोस्त थे| अभी हाल ही में मेरा मित्र पाकिस्तान स्थित लरकाना में अपने “पूर्वजों की धरती” देखने गए| वहाँ लोगों ने उनका बहुत आदर सम्मान किया| संयुक्त राष्ट्र अमरीका में जब किसी के घर संगीत गोष्टी होती है तो पाकिस्तानी गायक, बंगलादेशी तबले पर संगत देते उपस्थित हिंदू मुस्लमान मेहमानों के सामने हिंदी फिल्म से कोई गज़ल गाते देखा है| पंजाब में भारतीयों और पाकिस्तान के लोंगों ने सीधा संपर्क बढाने में कई उपक्रम किये जा चुके हैं| मेरा मानना है कि भारत में हिंदू मुसलमान के अच्छे संबंधों के कारण पाकिस्तान के लोगों में भारतीयों के लिए प्रशंसा जागी है और भारत और पाकिस्तान के लोगों में अच्छे संबंधों के फलस्वरूप भारतीय हिंदू मुसलमानों में सद्भाव और बढ़ेगा|

  4. सबसे पहले मै दोस्तों से प्रार्थना करना चाहता हूँ की कृपया लेख को एक बार फिर से आराम से पढ़े ,पूरा पढ़े ,थोडा सोचे और फिर दुबारा टिप्पड़ी करे तो मुझ छोटे और अज्ञानी व्यक्ति पर बड़ी कृपा होगी | दोस्तों मैंने जो भी लिखा दिल से लिखा है और जज्बाती होकर लिखा है |जब आप के शहर में किसी २१ साल के जवान की शहीद होने पर लाश आती है और अकसर आती रहती है तो मुझे तो गुस्सा आता है ,जब इतने बड़े देश पर एक ऐसा देश जिसकी कोई हैसियत ही नहीं है इस तरह के हमले करता है वह चाहे बम्बई में ,अक्षरधाम में हो ,संसद में हो या कही भी हो ,मै साधारण इन्सान हूँ ,मुझे गुस्सा आता है ,मै आप में से उन साथियों में नहीं हूँ ,जो बगल में मौत होने पर भी अपना नए साल का अथवा कोई और जश्न मानना नहीं छोड़ पाते है| मुझे तकलीफ होती है |मै डॉ कपूर का आभारी हूँ की उन्होंने मेरी आँखे खोल दी और अपने परम ज्ञान से बता दिया की मै रास्त्र विरोधी हूँ |देश के गद्दारों के प्रति उनकी गहरी समझ का कायल होना भी चाहिए |मै इस बात के लिए भी आभारी हूँ कपूर साहब का की उन्होंने बताया की देश गुलाम है इसीलिए ये खेल हो रहे है ,यह गुलामी की निशानी है |निश्चित ही जब भारत क्रिकेट में जीतता होगा तो डॉ साहब अंग्रेजो के खेल के खिलाफ शोक भी मनाते होंगे और उसके खिलाफ कोई मुहीम भी निश्चित ही चला रहे होंगे |डॉ साहब ना तो अंग्रेजो का दिया पैंट और सूट पहनते होंगे और ना घर में किसी को अंग्रेजी पढ़ने देते होंगे और न कम्पूटर,अंग्रेजी दवाई ,विभिन्न अविष्कार टीवी इत्यादि का इस्तेमाल करते होंगे |डॉ साहब अंग्रेजो का बनायीं देश की हर चीज मसलन राष्ट्रपति भवन ,संसद ,सारी रेलवे लाइने, इत्यादि तोड़ डालने की कोई योजना भी जरूर बना रहे होंगे |डॉ साहब वे सारे देश स्वतंत्र ही नहीं है बल्कि भारत तो जिनका गुलाम था उनसे कही आगे खड़ा है |यह केवल खेल की दुनिया है जो जैसे भी शुरू हो गया वैसे ही चल रहा है |लोग केवल खेलते है जीतने हराने के लिए और हम अकेले नहीं तमाम देश खेलते है |जहा तक आत्म बल तोड़ने की बात है ,मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है बल्कि ये कहा है की १९७१ में जो किया था उससे बहुत दिनों तक आराम से देश को अपनी दिशा में चलने का मौका मिला |आपने तो मुझे देश द्रोही ही बता दिया |मै देशद्रोही हूँ क्यों की इस करोडो के देश में मै उस कुछ लोगो में हूँ जो हर साल शहीदों के परिवारों को शहीद स्मारक पर आमंत्रित करते है ,उनका सम्मान करते है और फिर शहीदों की याद में एक दिया जलाते है यह बताने के लिए की शहीदों हम तुम्हे भूले नहीं है और उनके परिवारों को यह बताने के लिए की आप अकले नहीं है यह देश आप के साथ है |आप यह जान कर निश्चित ही खुश होंगे की कई दिनों तक प्रचार के बाद भी लाखो जनसँख्या वाले जिले में सिर्फ सौ दो सौ लोग इसमे भाग लेते है और वे होते है हमारे अपने जुड़े हुए |मै देश से यह गद्दारी करता रहूँगा |जब मुशर्रफ और वाजपई की वार्ता हुई ,उस वक्त १९७१ के युद्ध बंदियों की रिहाई और कारगिल पर माफ़ी की मांग को लेकर भी मैंने देश द्रोह का एक कार्यक्रम बनाया |कई दिनों तक अख़बार और टीवी से बयान जरी होता रहा की अगर कुछ लोग जिन्दा हो तो इस मांग को लेकर घरो से निकले पर इस लाखो की आबादी से केवल दर्जन भर लोग निकले ,जिसे रास्ट्रीय और अंतर रास्ट्रीय मीडिया ने लाइव चलाया था |पूरी वार्ता फेल हो गयी पर मुझ जैसे गैर समझदार गद्दारों के कार्यक्रम का मुशर्रफ़ को जवाब देना पड़ा और वाद करना पड़ा की १९७१ के युद्ध बंदियों के परिवार पाकिस्तान आकर अपने परिजन को खोजे |डॉ साहब घरो में कायरो की तरह बैठना और केवल मीन मेख निकालना आसान कम है |जो जिन्दा है उसे दर्द भी होता है और गुस्सा भी आता है |चितन करने वालो का काम होना चाहिए की शासन में बैठे हुओ को अपने गुस्से का प्रतीकातमक अहसास करते रहे चिकोटी काटता रहे ताकि शासक सो ना जाये |फिर भी आपने जो मेरा ज्ञान बढाया है की खेल से हम गुलाम है और मै रास्त्र विरोधी उसके लिए मै आप का आभारी हूँ ,कृपया मेरा मार्गदर्शन करते रहे | अनुपम जी मैंने तो इस्लाम की कोई बुराई नहीं किया बल्कि ये कहा है की वहा की राजनीतिक व्यवस्था कैसे चल रही है ?वहा राज करने वाले लोग किस तरह खुद इस्लाम का मजाख उड़ा रहे है अपने कर्मो से, और जनता को उसी इस्लाम के नाम पर हांक रहे है |उसी इस्लाम के नाम पर ये आतंकवाद की खेती बो रहे है ,जबकि इसके पीछे वहा के सत्ताधारियो का असली खेल क्या है वहा के फ़ौज का क्या खेल है और क्या मानसिकता है |उम्मीद है फिर पढेंगे तो स्पस्ट हो जायेगा | तिवारी जी क्या अपने घर पर जब कोई हमला करता है तो हम पहले अपने घर की नाली साफ करने लगते है या अनाज से घुन बीनने लगते है ,तब तो सब दुश्मन का होगा घर भी ,नाली भी और घर कर अनाज भी |घर की लड़ाइयाँ तो अपनों के बीच है और अपनों की लड़ाइयाँ बहुत लम्बी चलती है |पर बाहरी दुश्मन की लड़ाई घर बचने के लिए तातकालिक और कुछ दिनों की होती है |हम शासन में नहीं है जो वहा बैठता है असली हालत का ,तैयारियों का और आवश्यकताओ का ज्ञान उसके पास होता है पर जनता में बैठे लोगो का क्या सोच है यह बताते रहना चिंतनशील लोगो का काम होता है |वह तो आप ने भी पढ़ा होगा की किसी देश को दुष्टों की दुष्टता से उतना नुकसान नहीं होता है जितना सज्जनों की तटस्थता से होता है |रास्त्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी लिखा था की ;जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी इतिहास ;| पटेल साहब आप की टिप्पड़ी के लिए आभार | प्रोफेसर मधुसुदन साहब मेरे लेख का कही मतलब नहीं है की हम कमजोर है |हम भिखारी भी नहीं बल्कि दुनिया की तीसरे नंबर की शक्ति है और बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे है |केवल भारत है जहा के लोग दुनिया के इतने देशो में राज्य कर रहे है या शासन का हिस्सा है ,मॉरीशस ,टोबैको त्र्निदाद ,फिजी ,गुयाना जैसे कई देशो में आप के लोग प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति है कही गवर्नर जर्नल ,कही मंत्री, कही मेयर पूरी दुनिया में आप के लोग छाए हुए है |खुद अमरीका के महत्वपूर्ण स्थानों पर आप बैठे है |हम ताकतवर भी है और दुनिया की प्रथम शक्ति बनने की हमारे और चीन के बीच लड़ाई चल रही है |सच है की जितना पैसा किसी युद्ध में खर्च होता है वह किसी भी देश के लिए भारी होता है ,लेकिन क्या करे जब आतंकवाद से लड़ने के लिए उससे भी ज्यादा पैसा और मानव शक्ति खर्च हो रही है |आप लोगो ने भी अमरीकी सरकार की वह रिपोर्ट निश्चित ही पढ़ा होगा ,जिसमे कहा गया है की अब अगर भारत पर कोई बम्बई जैसा बड़ा आतंकवादी हमला हुआ तो अब भारत नहीं मानेगा और वह युद्ध इतना बड़ा भी हो सकता है की परमाणु युद्ध हो जाये |यह अमरीकी इशारा ही पाकिस्तान के लिए काफी होना चाहिए |क्योकि ऐसे युद्ध में भी भारत पर जब तक वह कोई एक बम डालने का प्रयास करेगा तब तक तो वह पूरा समाप्त हो चूका होगा क्योकि भारत की शक्ति और यहाँ के जवान ,यहाँ की फ़ौज ऐसी है ,|इसलिए अगर वह नौबत आ भी जाये तो किसी भारतीय की घबराने की जरूरत नहीं है |जहा भारत का गरीब किसान हर मौसम में खेत में खड़ा होकर हमें आश्वस्त करता रहता है की चिंता मत करो भूखा नहीं मरने दूंगा यह अलग बात है की देश के जमाखोर और मुनाफाखोर उसकी मेहनत को खा जाते है और उसे भूखा रखते है |उसी तरह किसान का बेटा जवान सीमा पर खड़ा ऐलान करता रहता है की देश के लोगो तुम चाहे मेरे परिवार का अधिकार खा जाओ या अपने भ्रस्ताचार से देश खा जाओ पर मै यहाँ खड़ा हूँ जब तक- तब तक तुम पर आंच नहीं आएगी |खैर बात लम्बी हो गयी पर मै ऐसी गद्दारी पूर्ण बाते करता रहूँगा ,बस आप सब अपना आशीर्वाद बनाये रखे | आप सभी का आभारी हूँ की आप सबने मुझ जैसे साधारण
    व्यक्ति का लिखा पढ़ा और और मै धन्य हूँ की आप सबने मुझे अपनी टिप्पड़ी के योग्य समझा |आप सबका आभार |आप सभी के अच्छे जीवन की कामना करता हूँ |

    n

    • Dr. C. P. Rai साहब मैं ने भारतको नहीं, पाकीस्तान को भिखारी कहा था।
      मेरी टिप्पणी पढेंगे तो अर्थ लग जाएगा।आप के लिखित शब्द ==>
      “हम भिखारी भी नहीं बल्कि दुनिया की तीसरे नंबर की शक्ति है और बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे है |” दुनिया की संभाव्य विश्व शक्तियां ५ या ६ ही है। सारे बडे देश इस सूचिमें सम्मिलित हैं। अमरिका, रशिया, भारत, चीन, एक या दो और, स्मरण नहीं कर पा रहा हूं।यह सारे प्रतिस्पर्धी हैं।पाकीस्तान कितना भी उन्नति कर ले, अमरिका का प्रतिस्पर्धी नहीं होगा (भारत हो सकता है।)। इस लिए अमरिका, भारतकी सहायता करे, (अपवाद छोड) यह संभव नहीं है। वह तभी सहायता करेगा, जब उसका भी निश्चित लाभ उसे प्रतीत हो।भारतके लिए पाठ:=> किसी भी देशकी विदेशी नीति “सिद्धांत आधारित नहीं होती।” =>वह उनके अपने देश हित आधारित ही होती है। उसपर विश्वशांति का सिद्धांत का शब्दावरण दिया जाता है।
      क्या हमारी नीति देश हित आधारित हैं? या वोट बॅंक आधारित हैं ? <=
      हमारा आगे बढना हमारी किस नीतिका साफल्य है? या दुनिया की गतिविधियोंका या घटनाक्रम का परिणाम है? इस पर सोचना रोचक होगा। आप क्या सोचते हैं?
      धन्यवाद।

  5. आपने अंतिम लडाई की बात कही है उससे में सहमत नहीं हूँ. क्या आप जानते हैं की लडाई क्या होती है? क्या आप्नको अंदाज़ा है की भारत और पाक अब नाभकीय अस्त्रों वाले देश हैं और लडाई बेहद खतरनाक हो सकती है. जिस विकासपर आपने पाकिस्तान से तुलना की है भारत की वाही विकास इस लडाई के बाद सदियों पीछे चला जायेगा. और क्या अंतिम लदयीओन से फायदा होगा? अमेरिका ने लड़ाईयां शुरू की तो फिर वह उनमें फंसता ही गया और नतीजा वाही ढाक के तीन पात. लड्याई से आतंकवाद ख़त्म नहीं होगा. ना ही नफरत से. अमन और प्यार की ज़रुरत है. विकास शांति का beta है.

  6. अपने सभी बातें बहुत अच्छी लिखी हैं लेकिन बीच में आप पाकिस्तान की व्यवस्था के बजाये इस्लाम के दोष गिनने लगे और वोह भी शराब एवं अन्य दूसरी गैर ज़रूरी चीज़ों के आधार पर परन्तु इन जैसी चीज़ों की भरमार तो आज सभी धर्मों में है. हमारे हिन्दू भी आज मांस मदिरा का जम कर सेवन करते हैं और वोह सब करते हैं जिसकी गीता रामायण में मनाही है तो इस्लाम की बुराई करके हम पाकिस्तान को सबक नहीं सिखा पाएंगे. हमें तो हाथी बनना होगा जो गली के कुत्तों के भौंकने की परवाह किये बिना अपनी शान बरक़रार रखता है. और फिर हमें अपनी शक्ति पाकिस्तान के खिलाफ भला क्यूँ खर्च करनी चाहिए? इच्छा शक्ति पाकिस्तान के खिलाफ ही क्यूँ भ्रष्टाचार, गरीबी, विकास के लिए भी तो इच्छाशक्ति की ज़रुरत होती है. राइ साहब आप शिक्षक हैं. और शिक्षक का बहुत बड़ा कर्त्तव्य अपने शिष्यों के प्रति होता है और मुझे आशा है की आप अपने शिष्यों को तटस्थ रूप से शिक्षा देते होंगे.

  7. ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के राजनेता तो चेतना शून्य तो हो ही चुके है किंतु उनकी देखा-देखी “यथा राजा यथा प्रजा” के अनुसार, भारत की जनता भी शासकों पर दबाब बनाने में असफल साबित हो रही है। पाकिस्तान की नींव ही भारत विरोध के आधार पर है, एक असफल राष्ट्र के रूप में वह अपने आंतरिक असंतोष को दबाने के प्रयास में भारत विरोध, कश्मीर की स्वतंत्रता का जुमला उछालता है लेकिन हर बार सीधी लड़ाई में उसे मुह की खानी पड़ी है। कमियां हर समाज में हर युग में रही है किंतु इतना चेतना शून्य समाज और शासक तो इतिहास में पहली बार देखने को मिला है। जब धर्म के आधार पर मुठ्ठी भर मुसलमानों को लार्ड माउंटबैटन के कहे अनुसार भारत का एक तिहाई हिस्सा काटकर दिया गया तो उस समय तो सारे भारत के देशभक्त एक थे फिर भी इनकी आवाज को अनसुना करके भारत माता का विभाजन किया गया। भारत की जनता की एक विदेशी या शत्रु या प्रतिकार करना होता है तो जनता अपने स्वार्थो को तिलांजलि देकर मात्र भारतीय होने के नाते अपने देश और मातृभूमि के लिए अपना बलदिान देने की परंपरा भारतीयों की रही है, अगर हमारे घर में कुछ कमियां है तो उसे हमें आपस में विचार करके ठीक करना है ना कि इस बात के लिए इंतजार करना है कि जब तक हमारी कमियां ठीक नहीं होगी तब तक हम अपने देश को लावारिस छोड़ देगें चाहे कोई भी यहां आकर कब्जा कर ले। जिस पाकिस्तान में जनता को रावलपिण्डी व लाहौर में राशन का आटा तक लाईन में लगकर लेना पड़ता है और हथियार गाजर-मूली की भांति रेहड़ियों पर सरेआम बिकते है, जहां जनता को समन्वय और पड़ोसियों से मधुर सम्बंधों के स्थान पर हथियार उठाने की शिक्षा जन्मघुट्टी के साथ मिलती है उससे आप और क्या उम्मीद कर सकते है? सांप को कितना भी दूध पिलाया जाये वो उसके हलक में जाकर केवल और केवल जहर ही बनता है ऐसे में पाकिस्तान की दुम कभी सीधी होगी इसकी कोई संभावना नहीं है। अमेरिका एक व्यापारिक देश है जो अपने व्यापारिक और सामरिक हितों के लिए जो भी पलड़ा भारी दिखेगा उसका पक्ष करेगा किंतु आने वाले समय में भारत के बढ़ते वर्चस्व से भयभीत होकर वो कभी भी खुलकर भारत का पक्ष नहीं करेगा। रोज-रोज पाकिस्तान को कोसने से अच्छा है कि भारत सरकार एक बार निर्णय कर ले कि पाकिस्तान नाम की इस नामुराद बीमारी का हमेशा के लिए ईलाज करना है फिर कोई ऐसी बात नहीं है कि भारत इजराइल की भांति कार्यवाही नहीं कर सकता, आखिर भारत जैसे सौ करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश के कर्णधारों में इच्छाशक्ति तो होनी ही चाहिए और जिस दिन भारत भगवान श्रीकृष्ण की कथा के अनुसार, जिसमें वे शिशुपाल की 99 गालिया माफ करते है और 100 वीं गाली निकलते ही उसका सर धड़ से अलग कर देते है, के अनुसार, आचरण नहीं करेगा तब तक पाकिस्तान तो क्या कोई भी सिरफिरा देश भारत को चुनौती देता रहेगा।

    • आपने अपने पहले वाक्य में जो लिखा है उसे देख मैं आप की टिपण्णी को एक सांस में पढ़ गया| लेकिन ऊंट जिस करवट बैठा देख मैं तुरंत ठिठक गया| यथा राजा यथा प्रजा से आप क्या अपेक्षा करते हैं? किस प्रजा के बलिदान देने की बात करते हैं? सब बलिदान दे मर मिटेंगे तो राजा स्वयं स्विसबैंक में पड़े धन के बल पर किसी पश्चिमी देश में अपने नये जीवन का सबक सीख रहा होगा| देश के छोटे बड़े गाँव या शहर में किसी चौराहे पर फैले कूड़े पर भद्र लोगों को और कूड़ा फैंकते तो देखा है लेकिन कोई सिर फिरा होगा जो वास्तुशिल्पीय दृष्टि से परिभाषित सुन्दर चौराहों पर कूड़ा फैंकने का दुस्साहस करेगा| मैंने देखा सुना है कि पाकिस्तानी बुद्धिजीवी भारत में हिंदू और मुसलमानों को शांतिपूर्वक मिल जुल रह्ते देख वहाँ के मीडिया में आश्चर्य व प्रशंसनीय ढंग से वृतान्त देते हैं| आप इन पन्नों पर डा: राजेश कपूर की तरह अधीर न होयें| लगभग पिछले बासठ वर्षों से सबक सीखते पाकिस्तान कहीं भागा नहीं जा रहा| अत: क्यों न हम शीघ्र अपनी बुराईयों को सुधारें और संगठन और सुव्यवस्था द्वारा भारत को प्रतिभाशाली बना उन उचाईयों पर ले जाएँ जहां विश्व में हमारा देश सम्मानित हो| और भारत की संपन्न, स्वस्थ, और सुखी प्रजा को समाज में बिना किसी भेद भाव स्वाभिमान नागरिक की भांति जीवन यापन कर देख पाकिस्तान को एक अंतिम और अच्छा सबक मिल जायगा|

  8. सबक सीखाने के लिए शासनमें निर्णय लेने की जो मानसिकता चाहिए वह नहीं है। जब मानसिकता एक व्यवसायी( professional politicians) राजनीतिज्ञकी होगी, तो सबक सीखाने की बातसे तो वह डरेंगे। साथमें शायद वोट बॅंककी गुलामी भी ऐसा निर्णय लेनेमें बाधा है।{बाढ के लिए सहायता हम ही घोषित करें, और भीखारी पाकिस्तान भीख में भी शर्त लगाता है।Beggars are not choosers}
    लगता है, कुछ “देशभक्त” राजनेता ही ऐसा निर्णय निर्लिप्त होकर, कर सकते हैं। सरदार पटेल, और शास्त्रीजी दोनो वैयक्तिक स्वार्थसे उपर उठे हुए थे, जिससे ऐसा निर्णय लेना उनके लिए संभव था।
    इंदिरा जी दूसरे वर्गमें थीं।उन्हे मैं हुकुमशाही वर्गमें समझता हूं। इस वर्गमें अपनी मन-मानी करने वाला किसी बडी चिंता बिना, व्यवहार्यता का हिसाब करते हुए सफलता को सुनिश्चित कर निर्णय लेता है।
    ==जब कठपुतलि यां, और जेब-भरु व्यवसायी राजनीतिज्ञ राज कर रहे हो, वे किसी भी खतरे की आशंका वाला निर्णय लेनेसे डरते हैं। अपनी जेब में और स्विस बॅंक को पैसा जाता है। कैसे भी टिके रहो, जेब भरते रहो,देशका कुछ नुकसान हो,तो होने दो।==देशपर प्राण देने की मानसिकता, या तानाशाही मानसिकता ऐसे निर्णय लेनेकी क्षमता रखती हैं।==कठपुतली और उसकी डोर दोनोमें यह सिंह जैसा निर्णय लेना बडा असंभव प्रतीत होता है।==

  9. आदरणीय डॉ. राय साहब बिलकुल सही मान कर रहे है. वाकई अब इन्तहा हो गई है. पाकिस्तान को असली सबक सिखाना चहिये.

    हमारे देश का राजनैतिक स्वाभिमान ख़त्म हो चूका है. पाकिस्तान सियार की तरह जगह जगह से नोच कर चला जाता है किन्तु हाथी को कुछ फर्क नहीं पड़ता है. किन्तु kab tak फर्क नहीं padega. कभी तो प्रतिरोध करना पड़ेगा.
    कारगिल युद्ध में हमारे देश का ४० से ५० हजार करोड़ kharch हुआ. किसी भी नेता, किसी भी बुद्धिजीवी ने एक bar भी kaha की hame यह kharch पाकिस्तान से लेना चहिये. पाकिस्तान न तो दे सकता है और नाहीं उस राशी से हमारा कुछ बढ़ जायेगा. किन्तु बात युद्ध उसूलो की है, बात स्वाभिमान और इज्जत की है की कोई देश कैसे भारत जैसे विशाल देश पर आक्रमण कर सकता है.

    कामन वेल्थ गेम परतंत्रता की निशानी है. केवल दो (स्वाभिमानी) छोटे से राष्ट्रों को छोड़कर सभी ब्रिटेन के एक समय के गुलाम देश इस संस्था के सदस्य है जिसका मूल उदेश्य ब्रिटेन की महारानी के प्रति आज भी निष्ठा दिखानी है. हर हिन्दुस्तानी जिसमे अंग्रजो की गुलामी का वायरस नहीं है उसे इसका विरोध करना चाइये.

    श्री तिवारी जी ने कहा की पहले हमें हमारे देश में भ्रष्टाचार से मुकाबला करना है. बिलकुल ठीक, हम कर रहे है. अपनी ईमानदारी की कमाई का एक पैसा भी हम भ्रष्टाचार में न देंगे और नाही लेंगे. भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का सामाजिक बहिस्कार किया जाना चाइये. अपने अपने स्तर पर सभी को अपने सामाजिक कर्त्तव्य का पालन करना चहिये. राष्ट्रीय कर्त्तव्य के लिए जरुरी है की देश के समस्या पर चिंतित हुआ जाय.
    जिस देश में उसका सच्चा इतिहास नहीं बताया जाएगा वहाँ के लोगो के खून में कहाँ से उबल आएगा. कहते है दूध का जला………….. आशा है विद्वान गन अपने सच्चे लेख के द्वारा देश के लोगो को उनके अधिकार और कर्त्तव्य के बारे में बताते रहेंगे.

  10. हमारे विद्वान टिप्पणीकार के भावों को समझे तो जब तक अपने देश में फ़ैली बुराईयों को समाप्त न कर लें तब तक देश के दुश्मनों के विरुद्ध कोई पग नहीं उठाया जाना चाहिए. अर्थात पाकिस्तान, अमेरिका, इटली, चीन आदि के राष्ट्रघाती प्रयासों का प्रतिकार करने की नासमखी हमको नहीं करनी चाहिए. देश के दुश्मनों के प्रयासों का प्रतिकार करने से पहले तबतक इंतज़ार करें जब तक हम स्वयं सुधर नहीं जाते. चाहे इस इंतज़ार में हम समाप्त ही क्यों न होजाएं ?
    – इन महानुभाव के पोस्ट पढ़ कर कई बार लगा की वे प्रत्यक्ष रूप में तो भारत के पक्ष में लगते हैं पर परोक्ष में भारत के नैतिक बल को तोड़ने का काम करते हैं. यह वे जानबूझ कर करते हैं या उनका स्वभाव ही ऐसा है, यह समझने का काम हर पाठक को अपने-अपने ढंग व समझ के अनुसार करना चाहिए.
    **इस सन्दर्भ में पते की बात यह है कि राष्ट्रीय आपदाओं के समय संघर्ष में जूझने से अनेकों पतित, भ्रष्ट लोग भी अपने दुर्गुणों में सुधार कर लेते हैं. बड़े-बड़े बलिदान कर डालते हैं अतः आवश्यक है कि देश के सामने खडी चुनौतियों का स्मरण सबको बार-बार करवाया जाए. और उन्हें संघर्ष में उतरने के कार्यक्रम सुझाए जाएँ.
    * समाज के आत्म बल को तोड़ने के प्रयास करने वाले, बार-बार दुर्गुणों का स्मरण करवाने वाले हमारे देश के मित्र नहीं शत्रु हैं. फिर चाहेजान बूझकर हों या अनजाने में. वैसे ऐसे विदेशी एजेंटों की पहचान आसान है. उनकी मंजी भाषा और एक विशेष दिशा में बार-बार एक जैसे निरुत्साहित करने वाले सन्देश, यह उनकी पक्की पहचान है.

    • श्रीराम तिवारी जी की टिपण्णी को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से उन पर कटाक्ष और उनका परिहास केवल आपकी व्याकुलता का प्रतीक है| आप भले ही उनके दृष्टिकोण से सहमत न हों, इसमें कोई आपत्ति नहीं लेकिन उनके विचारों के आधार पर उन्हें देश का शत्रु कहना आपके संकीर्ण मन और अहंकार को प्रामाणित करता है| मेरा सुझाव है कि आप अपनी पोस्ट को बार बार पढ़िए और यदि आप को फिर भी उसमें कोई अनैतिकता और अनावश्यक दोषारोपण दिखाई नहीं देता तो मैं मान लूंगा कि आपने अपने स्वभावानुरूप ही ऐसा लिखा है| अन्यथा किसी विश्वसनीय व्यक्ति को पढ़ने को कहिये, संभवत: आपको अपनी गलती सुधारने का अवसर अवश्य मिल जाएगा|

  11. पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात तो ठीक है पर यह काम अंग्रेजों के गुलाम कभी नहीं कर सकते. ये ( हमारे शासक) अमेरिका की अनुमति के बिना तो सांस भी नहीं लेते होंगे. यदि ऐसा नहीं तो ‘रानी का डंडा’ लेने हमारे देश की सर्वोच्च सत्ता ब्रिटेन की रानी के दरबार में हाज़री न भरती. देश का इतना बड़ा अपमान ?
    -किसकी बुद्धी का दिवाला निकला है जो कामन वैल्थ खेलों को देश के मान-सम्मान से जोड़ कर देख रहा है ? अरे लिखने से पहले इतना तो जान लेते कि ये कॉमन वैल्थ गेम्स गुलामी का प्रतीक हैं. जो देश ब्रिटेन के गुलाम रहे और नैतिक रूप से आज भी ब्रिटेन की अधीनता स्वीकारते हैं, केवल वे ही पतित,स्वाभिमान रहित मानसिकता के देश इन कॉमन वैल्थ खेलों की ‘क्वीन बैटन’ को अपने देश में घुमा रहे हैं.
    – हमारी राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना को गुलामी के प्रतीकों का शिकार बनाने के प्रयासों को पहचानिए और उनसे बचिए.
    * डा. सी.पी राय जी से मेरा विनम्र निवेदन है कि कामन वैल्थ खेलों को राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़ कर देखने की अपनी भूल को सुधारें जिससे उनके प्रती आशंका समाप्त हो. आशा करता हूँ कि ये भूल अनजाने में तथ्यों की जानकारी के अभाव में हुई है जिसे आप सुधारेंगे.
    धन्यवाद सहित, सादर आपका, – डा. राजेश कपूर

  12. जरुर सिखायेंगे ,न केवल पाकिस्तान बल्कि दुनिया की हर उस ताकत को जो भारत के खिलाफ सर उठाएगी -हम सब मिलकर सबक सिखायेंगे .इसके तुरंत पेश्तर यह जरुरी है की हम अपना घर थोडा ठीक कर लें .कस्टम बाले रिश्वत लेकर आतंकियों को मुंबई बंगलोर अहमदाबाद सहित देश की संसद पर हमला करवाते हैं -आप चुप रहते हैं .भारतीय खाद्य निगम वाले रिश्वत खाकर पांच सितारा होटलों में एयासी करते हैं .लाखों क्विंटल गेहूं वारिश में ,खुले में सड़गया देश भर में निर्धन बच्चे भूंख से मर रहे -आप चुप हैं .रेलवे बाले दारु पीकर नशे में धुत और रोज रेलें टकराकर मौतें हो रही -आप चुप हैं .नरेगा का पैसा ठेकेदार डकार गए मजूर भूखे मर रहे ,एम् पी में तो राज्य के कर्मचारियों और विधायकों को देने के लिए सरकारी खजाने में पैसा नहीं ,सुना है की किसी मंत्री के पास नोट गिनने की मशीन है -आप चुप हैं .पूरा भारत मक्कारी ,bhrushtachaar ,anyaay ,loot ,hatya .balatkaar ,or dharm -jaat ki rajneet karne wale pakhandiyon se bajbaja raha hai -ab aap jaldi se yh sb theek karo or fie chalo pakistan ko sbk sikhayen .

    • ye sab ghar ki baat hai jo hum theek kar hi lenge. apke ghar main bhi ladai hoti hogi, lekin jab koi bahar wala hamla kare to, pehle aap usse niptenge ya…gharwalon ko peetenge?

      atankwad vikas main ek bahut bada roda hai.

      soch samajhkar likha karo.

      • आप ठीक कहते हैं| आंतकवाद विकास में सचमुच एक बहुत बड़ा रोड़ा है| लेकिन यह भी ठीक है कि भारत की सशस्त्र सेनाएँ और आरक्षक दल दिन रात अपने मनोबल को बनाए इस आंतकवादी नासूर को मिटाने में लगे हुए हैं| आश्चर्यजनक बात तो यह है कि आप जैसे लोग पूर्णतय “विकास” में लगने और “विकास” द्वारा उपलब्ध प्रसुविधा को घरवालों को पंहुचाने के बजाय उन्हें फिर भी पीटे जा रहे हैं|

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