कभी पाटलिपुत्र था दुनिया का सबसे सुन्दर नगर

—विनय कुमार विनायक
कभी बिहार मगध जनपद का पाटलिपुत्र
सम्प्रति पटना था दुनिया का सबसे सुन्दर नगर
भगवान बुद्ध की भविष्यवाणी के अनुसार
इस नगर को आग पानी और अंतर्कलह का डर
जो सही निकली,आज भी बाढ़ व अंतर्कलह भयंकर!

पाटलिपुत्र की स्थापना पाटलिग्राम नाम से
हर्यकवंशी मगध सम्राट अजातशत्रु ने की थी
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गंगा सोन के संगम पर
आगे चलकर पाटलिग्राम से कुसुमपुर जुड़कर
पाटलिपुत्र कहलाया जो कहलाता था कुसुमध्वज पुष्पपुर!

भौगोलिक स्थिति और सामरिक दृष्टि से
अजातशत्रु के पुत्र उदायिन ने पांचवीं सदी ईसापूर्व में
राजगृह छोड़कर पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाया!

जो हर्यकवंशी उदायिन के बाद भी हजार वर्षों तक
शिशुनाग नन्द मौर्य शुंग कण्व गुप्त राजवंशों को भाया!

चंद्रगुप्त मौर्य कालीन यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने
इण्डिका में पाटलिपुत्र को पालिबोथ्रा कहकर वर्णन किया!

चंद्रगुप्त मौर्य काल में यहां जैनाचार्य स्थूलभद्र ने
एक जैन संगीति आयोजित की जिसमें चंद्रगुप्त जैन हो गए
पुनः सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्ध संगीति आयोजित की थी!

पाटलिपुत्र नगर गंगा सोन नदियों के संगम पर स्थित
नगर के चारों ओर लकड़ी की रक्षा दीवार थी निर्मित!

दीवार के बाहर साठ फुट गहरी छ:सौ फीट चौड़ी खाई थी
नगर की लंबाई साढ़े नौ मील और डेढ़ मील चौड़ाई थी!

पांच सौ सत्तर अट्टालिकाएं और चौंसठ नगर द्वार थे
सुरक्षा हेतु लकड़कोट की खाई में सोन नदी के जल भरे होते!

परकोटा में तीर चलाने के लिए जगह-जगह छिद्र थे
पाटलिपुत्र के उत्खनन में भी काठ के अवशेष मिले
चंद्रगुप्त मौर्य का राजभवन नगर के मध्य स्थित था!

राजभवन के स्तंभों पर अंगूरलताएं थी सोने की
और चांदी के पक्षियों की आकृतियां भी बनी हुई थी!

चंद्रगुप्त मौर्य के राजभवन की शोभा फारस के
सूसा राजभवन को लज्जित करती थी!

आगे चलकर अशोक मौर्य ने एक राजप्रासाद बनवाया
जिसे फाहियान ने अलौकिक ईश्वरीय रचना बतलाया!

गुप्त कालीन नाटककार ईश्वरदत्त ने लिखा
“स्थाने खलु कुसुमपुरस्यानन्यनगरसदृशी
नगरमित्यविशेषग्राहिणी पृथिव्यां स्थिता कीर्ति:”
‘कुसुमपुर की अनुपम व अनन्य कीर्ति फैली हुई पूरी पृथ्वी पर
तभी तो केवल नगर कहने मात्र से बोध होता कुसुमपुर का’
इस नगर में देवता भी सुखपूर्वक रस सकते अपना स्वर्ग त्यागकर
“शक्यं भो नगरे सुरैरपि दिवं सन्त्यज्य लब्धुं सुखम्”
क्योंकि ‘यहां दानशील व्यक्तियों की संख्या भारी
यहां कलाओं का आदर होता, लोगों के लिए आदरणीय नारी
पुरुष समाज विद्या विनीत, धनाढ्य नहीं ईर्ष्यालु उन्मत्त
लोग बातचीत में शिष्ट और परस्पर गुणग्राही व कृतज्ञ!’

सुबन्धु कृत वासवदत्ता में भी कुसुमपुर का वर्णन ऐसा ही
अंततः बारहवीं सदी के वर्धमान ने गणरत्नमहोदधि में
पाटलिपुत्र की पतन कथा कही
ऐसी कि एक राक्षसी पुरगा ने पाटलिपुत्र को लील गई
“पुरगा नाम काचिद् राक्षसी तथा भक्षितं पाटलिपुत्रं”
तो क्या इसी पुरगा राक्षसी के कारण पटना की दुर्दशा ऐसी?
तो क्या इस पुरगा राक्षसी की प्रेतात्मा पटना के
नेता और भाग्यविधाता को समय समय पर ग्रसते रहती?

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