तीन दिन में सिमटी राष्ट्रभक्ति

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कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

कितने जतन के बाद भारत देश में 15 अगस्त 1947 को आजादी का सूर्योदय हुआ था। देश को आजाद कराने, न जाने कितने मतवालों ने घरों घर जाकर देश प्रेम का जज्बा जगाया था। सब कुछ अब बीते जमाने की बातें होती जा रहीं हैं। आजादी के लिए जिम्मेदार देश देश के हर शहीद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की कुर्बानियां अब जिन किताबों में दर्ज हैं, वे कहीं पडी धूल खा रही हैं। विडम्बना तो देखिए आज देशप्रेम के ओतप्रोत गाने भी बलात अप्रसंगिक बना दिए गए हैं। महान विभूतियों के छायाचित्रों का स्थान सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार जैसे आईकान्स ने ले लिया है। देश प्रेम के गाने महज 15 अगस्त, 26 जनवरी और गांधी जयंती पर ही दिन भर और शहीद दिवस पर आधे दिन सुनने को मिला करते हैं।

गौरतलब होगा कि आजादी के पहले देशप्रेम के जज्बे को गानों में लिपिबध्द कर उन्हें स्वरों में पिरोया गया था। इसके लिए आज की पीढी को हिन्दी सिनेमा का आभारी होना चाहिए, पर वस्तुत: एसा है नहीं। आज की युवा पीढी इस सत्य को नहीं जानती है कि देश प्रेम की भावना को व्यक्त करने वाले फिल्मी गीतों के रचियता एसे दौर से भी गुजरे हैं जब उन्हें ब्रितानी सरकार के कोप का भाजन होना पडा था।

देखा जाए तो देशप्रेम से ओतप्रोत गानों का लेखन 1940 के आसपास ही माना जाता है। उस दौर में बंधन, सिकंदर, किस्मत जैसे दर्जनों चलचित्र बने थे, जिनमें देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले गानों को खासा स्थान दिया गया था। मशहूर निदेशक ज्ञान मुखर्जी द्वारा निर्देशित बंधन फिल्म संभवत: पहली फिल्म थी जिसमें देशप्रेम की भावना को रूपहले पर्दे पर व्यक्त किया गया हो। इस फिल्म में जाने माने गीतकार प्रदीप (रामचंद्र द्विवेदी) के द्वारा लिखे गए सारे गाने लोकप्रिय हुए थे। कवि प्रदीप का देशप्रेम के गानों में जो योगदान था, उसे भुलाया नहीं जा सकता है।

इसके एक गीत ”चल चल रे नौजवान” ने तो धूम मचा दी थी। इसके उपरांत रूपहले पर्दे पर देशप्रेम जगाने का सिलसिला आरंभ हो गया था। 1943 में बनी किस्मत फिल्म के प्रदीप के गीत ”आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है” ने देशवासियों के मानस पटल पर देशप्रेम जबर्दस्त तरीके से जगाया था। लोगों के पागलपन का यह आलम था कि लोग इस फिल्म में यह गीत बारंबार सुनने की फरमाईश किया करते थे।

आलम यह था कि यह गीत फिल्म में दो बार सुनाया जाता था। उधर प्रदीप के क्रांतिकारी विचारों से भयाक्रांत ब्रितानी सरकार ने प्रदीप के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया, जिससे प्रदीप को कुछ दिनों तक भूमिगत तक होना पडा था। पचास से साठ के दशक में आजादी के उपरांत रूपहले पर्दे पर देशप्रेम जमकर बिका। उस वक्त इस तरह के चलचित्र बनाने में किसी को पकडे जाने का डर नहीं था, सो निर्माता निर्देशकों ने इस भावनाओं का जमकर दोहन किया।

दस दौर में फणी मजूमदार, चेतन आनन्द, सोहराब मोदी, ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे नामी गिरमी निर्माता निर्देशकों ने आनन्द मठ, लीजर, सिकंदरे आजम, जागृति जैसी फिल्मों का निर्माण किया जिसमें देशप्रेम से भरे गीतों को जबर्दस्त तरीके से उडेला गया था।

1962 में जब भारत और चीन युद्ध अपने चरम पर था, उस समय कवि प्रदीप द्वारा मेजर शैतान सिंह के अदम्य साहस, बहादुरी और बलिदान से प्रभावित हो एक गीत की रचना में व्यस्त थे, उस समय उनका लिखा गीत ”ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी . . .” जब संगीतकार ए.रामचंद्रन के निर्देशन में एक प्रोग्राम में स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने सुनाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अपने आंसू नहीं रोक सके थे।

इसी दौर में बनी हकीकत में कैफी आजमी के गानों ने कमाल कर दिया था। इसके गीत कर चले हम फिदा जाने तन साथियो को आज भी प्रोढ हो चुकी पीढी जब तब गुनगुनाती दिखती है। सत्तर से अस्सी के दशक में प्रेम पुजारी, ललकार, पुकार, देशप्रेमी, कर्मा, हिन्दुस्तान की कसम, वतन के रखवाले, फरिश्ते, प्रेम पुजारी, मेरी आवाज सुनो, क्रांति जैसी फिल्में बनीं जो देशप्रेम पर ही केंदित थीं।

वालीवुड में प्रेम धवन का नाम भी देशप्रेम को जगाने वाले गीतकारों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उनके लिखे गीत काबुली वाला के ए मेरे प्यारे वतन, शहीद का ए वतन, ए वतन तुझको मेरी कसम, मेरा रंग दे बसंती चोला, हम हिन्दुस्तानी का मशहूर गाना छोडो कल की बातें कल की बात पुरानी, महान गायक मोहम्मद रफी ने देशप्रेम के अनेक गीतों में अपना स्वर दिया है। नया दौर के ये देश है वीर जवानों का, लीडर के वतन पर जो फिदा होगा, अमर वो नौजवां होगा, अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं . . ., आखें का उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता. . ., ललकार का आज गा लो मुस्करा लो, महफिलें सजा लो, देश प्रेमी का आपस में प्रेम करो मेरे देशप्रेमियों, आदि में रफी साहब ने लोगों के मन में आजादी के सही मायने भरने का प्रयास किया था।

गुजरे जमाने के मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का नाम आते ही देशप्रेम अपने आप जेहन में आ जाता है। मनोज कुमार को भारत कुमार के नाम से ही पहचाना जाने लगा था। मनोज कुमार की कमोबेश हर फिल्म में देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत गाने हुआ करते थे। शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम, क्रांति जैसी फिल्में मनोज कुमार ने ही दी हैं।

अस्सी के दशक के उपरांत रूपहले पर्दे पर शिक्षा प्रद और देशप्रेम की भावनाओं से बनी फिल्मों का बाजार ठंडा होता गया। आज फूहडता और नग्नता प्रधान फिल्में ही वालीवुड की झोली से निकलकर आ रही हैं। आज की युवा पीढी और देशप्रेम या आजादी के मतवालों की प्रासंगिकता पर गहरा कटाक्ष कर बनी थी, लगे रहो मुन्ना भाई, इस फिल्म में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के बजाए शुष्क दिवस (इस दिन शराब बंदी होती है) के रूप में अधिक पहचाना जाता है। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद भी न देश की सरकार चेती और न ही प्रदेशों की।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत सरकार और राज्यों की सरकारें भी आजादी के सही मायनों को आम जनता के मानस पटल से विस्मृत करने के मार्ग प्रशस्त कर रहीं हैं। देशप्रेम के गाने 26 जनवरी, 15 अगस्त के साथ ही 2 अक्टूबर को आधे दिन तक ही बजा करते हैं। कुल मिलाकर आज की युवा पीढी तो यह समझने का प्रयास ही नहीं कर रही है कि आजादी के मायने क्या हैं, दुख का विषय तो यह है कि देश के नीति निर्धारक भी उन्हें याद दिलाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं।

-लिमटी खरे

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लिमटी खरे
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7 COMMENTS

  1. pr मधुसुदन जी मुझे लिखने पर विवश ही कर दिया है. मुझको लगता है कोई भी चीज़ कितना भी महत्व का अपनी चमक खोता है. किसी से ये उम्मीद करना बेमानी होगी की वह किसी गाने को लगातार सुनता रहेगा. चाहे देशभक्ति से ही परिपूर्ण क्यों न हो. मनुष्य सदा से जिज्ञाशु और नवप्रवर्तक रहा है. सभी चीजों का विकल्प और रिप्लेसमेंट देखता है. मुझको नहीं लगता की कोई भी यत्न वापिस उनको पुराने दिनों में ला सकेगा.तथापि इससे उन देशभक्ति से परिपूर्ण गीतों की गरिमा कम न होगी. आज के समय के हिसाब से ऐसी नई गीतों की रचना करनी होगी. यह एक सतत प्रक्रिया है जो चलती रहेगी. लेकिन इस बदलाव में ठहराव नहीं लाया जा सकता.

  2. मुझे आज भी याद है छोटे होते होते यही गीत गाते थे
    दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिन्दुस्थान हमारा है
    १९४१ की चल चित्र सिकंदर सप्ताह में दो बार देखती हूँ
    यहाँ हमारे मस्जीद मंदिर ओर सिखों का गुरुद्वारा है
    कितनी एकता थी देश को स्वतंत्र करवाने की
    यदि कोई डरता तो प्रसन्न करने के लिय दूसरा गीत
    डरने की कोई बाट नहीं
    वो अंगरेजी छोरा चला गया
    वो गोरा गोरा चला गया
    फिरंगी कह कर बुलाते थे
    कहाँ हैं आज शाहीद भगत सिंहं ओर उनके साथी
    .सुबाष चंदर बोसे .खुदी राम बोस .लाला लाजपतराय
    गीत तो अवश्य बजते है पर आज की पीडी बलिदान को क्या समझेगी

    .

  3. namaskar,
    aaj apne desh bhakti ki baat chhed apne apno ki soyi hui atma ko jagane ka asdharan prayas iya hai ,akbile tarif hai,aaj to samay aisa hai rastrapati kaun hai pat nahi akshay kumar kaun hai pata hai,shayad iske peeche hum khade hai hamare sanskar hamari sikkshaye khadi hai,aise me desh ,desh geet aur mahapurush to door ki baat hai ,isse bhi badi vidambana hamare desh ki yah hai ki hum apne hi desh me apno ko bhool apne ko mahan samajhne ki bhool karte rahte hai jaisaa ki aaj ki yuve peedi bejhijhak karti a rahi hai,dukh is bat ka nahi ki wo in mahan jan ko yad kare dukh to hamari virasat aur iske sachche pujariyon ki mahan virast ko sahejne aur palne posane walo ko lwkar hai.mai to bus yahi kahunga ki aaj ki is bela me desh bhakti rastrwad ka jajba jagana nitant awashyak hai.
    jai hind

  4. आदरणीय

    जीते रहो
    यह तो बहुत ही बड़े घाव है मेरे
    पहले हम रोते थे स्वतंत्रता के लिए अब स्वाधीन के पश्चात देश हमरे लिए रोता है आज भी वो भयानक विभाजन के समय के दृश्य आँखों के सामने हैं और सभी चित्र भी चित्रमय संसार के सहेज कर रक्खे हैं मन उदास होने पर देखती हूँ गुजरा हुआ जामाना
    आशीर्वाद के साथ गुड्डो दादी चिकागो से

  5. भाई कहीं देश भक्ति की भावना प्रबल हो जाए तो सरकार की जान आफत में नहीं पड़ जाएगी?? प्रदीप ही नहीं देश के असंख्य नायको को भुलाने की साजिश र काफी समय से चल रही है. शायद आनेवाली पीढी पूछेगी कि ये प्रदीप, भगतसिंह और सावरकर किस देश के हैं??

  6. सुझाव: सारे राष्ट्रभक्तिके गीतोंका संचयन कर एक या दो, सी. डी. बने।धनी उद्योजकोंसे सहायता लेकर, गीतोंको योग्य मूल्यपर उपलब्ध कराया जाए। आज भी हमारा युवा इन गीतोंके माध्यमसे जगाया जा सकता है, ऐसा मानता हूं। अन्य पाठक क्या सोचते हैं? व्यक्त करें। हमारे गीत विजिगिषु अधिक हो, बलिदानी कम।खरे जी को इस समयोचित लेखके लिए धन्यवाद।

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