अब कौन दहाड़ेगा मिशनरियों को ?

dilip singhअनिल द्विवेदी

‘आइ एम द किंग ऑफ रियासत बट दिस परसन इज द किंग ऑफ डेमोक्रेसी’ यानि मैं तो एक रियासत का राजा हूं लेकिन जूदेव लोकतंत्र के राजा हैं क्योंकि इन्हें जनता चुनती है. राजस्थान के महाराजा ने अपने विदेशी मेहमानों से दिलीपसिंह जूदेव का परिचय कभी इसी अंदाज में करवाया था. रौबीले चेहरे की शान बन चुकी घनी मूंछों पर ताव देते शख्स के तौर पर, मेरी तरह हिन्दुस्तानियों को भी दो ही चेहरे नजर आते हैं. एक थे देश की आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद और दूसरे जशपुर नरेश दिलीप सिंह जूदेव, जो हमारे बीच अब नहीं रहे. नईदिल्ली के मेदांता अस्पताल में कई दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करने के बाद उन्होंने अंतिम सांसें ली.
इस दु:ख भरे क्षण में ना चाहते हुए भी यह बात कहना पड़ रही है कि गुजरे कुछ समय से जशपुर राजघराने पर अपशकुनों की छाया मंडरा रही है. हम भूले नहीं हैं कि चंद महीनों पूर्व ही उन्होंने अपने बड़े बेटे शत्रुंजय प्रताप सिंह को अकाल मृत्यु के हाथों खोया था और चंद महीनों बाद ही माँ जयादेवी का हाथ भी उनके सर से उठ गया था. ढलती उम्र और छोटी-मोटी बीमारियों से जूझ रहे जूदेव को बड़े बेटे की मौत ने हिलाकर रख दिया था. दरअसल वे उनमें अपना राजनीतिक वारिस खोज रहे थे. सब कुछ ठीक-ठाक रहता तो बिलासपुर का अगला सांसद जूदेव नहीं बल्कि उनके सुपुत्र शत्रुंजय बनते. खुद जूदेव के जनाधार का आलम देखिये कि उनके नाम पर ‘जूदेव सेना’ तक बनाई गई लेकिन इसका इस्तेमाल उन्होंने अन्य राजनीतिज्ञों की तरह कभी भी पार्टी को ब्लैकमेल करने या किसी को सबक सिखाने के लिये नहीं किया.

भाजपा के लिये अपूरणीय क्षति और हिन्दुत्व रूपी राजनीति का कभी ना भरा जाने वाला शून्य. देश की सियासत से लेकर छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पाटी का जनाधार पैदा करने वालों में जिन नेताओं को खासा याद किया जायेगा, जूदेव उनमें से एक होंगे. शरीर पर फौजी वर्दी, हाथ में हिन्दुत्व का झंडा और इसाई मिशनरियों के पुराने प्रतिद्वंद्वी लेकिन हिन्दु ह्दय सम्राट के तौर पर अपनी पहचान कायम रखने वाले दिलीपसिंह जूदेव एक ऐसे नेता थे जिनके परिवार ने पहले जनसंघ और फिर भाजपा के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. यह कहते हुए सुकून होता है कि संघर्षशील जनसंघ से लेकर भाजपा के राजशाही युग तक जूदेव की तीसरी पीढ़ी पार्टी की सेवा में वफादारी के साथ लगी है. बहुत कम लोग जानते होंगे कि 1970 के दशक में-जब देश में एक ही पार्टी कांग्रेस का जलवा था-जूदेव के पिताजी ने मात्र एक रात के फैसले में जनसंघ की तरफ से सांसद का चुनाव लडऩे का फैसला स्वीकार किया बल्कि पूंजी लगाकर दूसरे अन्य प्रत्याशियों का हौंसला बढ़ाया. जूदेव पर परिवारवाद के लाख आरोप लगे हों लेकिन आईना दिखाता सच यह है कि राजाजी ने कई गरीब-गुरबों को फर्श से उठाकर अर्श तक पहुंचाया और मंत्री, विधायक व सांसद की कुर्सी दिलवाई.

एशिया का सबसे प्राचीनतम चर्च जशपुर में है तो अंदाजा लगाइये कि यहां पर चर्च की जड़ें कितनी मजबूत होंगी लेकिन जूदेव होश संभालते ही उनके लिए हमेशा अजेय चुनौती बने रहे. हिन्दु से इसाई बन गये लाखों लोगों को पुन: हिन्दु धर्म में लाने के लिये उन्होंने लम्बी-चौड़ी लड़ाईयां इतने प्रभावी ढंग से लड़ी कि 1988 के आसपास जशपुर की एक नन-मिशनरियों की महिला संत-को अदालत ने जिलाबदर कर दिया था.  आदिवासियों के पैर धोकर उन्हें पुन: घर-वापसी कराते हुए देखने पर यकीन नहीं होता था कि एक राजा के मन में हिन्दुत्व के प्रति कितनी श्रद्धा और विश्वास था. अब जबकि जूदेव नहीं हैं, संघ परिवार सहित हिन्दु समाज के समक्ष यह संकट आन पड़ा है कि घर वापसी अभियान की कमान किसके हाथों में होगी?

जशपुर नरेश जूदेव ताउम्र राजा की तरह जिए, राजा की तरह दहाड़े और उनकी विदाई भी राजा की तरह हुई. राजनैतिक नुमाइंदे भूले ना होंगे कि अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत में उन्होंने पहला चुनाव अर्जुनसिंह के खिलाफ दमदारी से लड़ा था और उनके ‘चेले-चपाटों’ से अब तक लड़ते रहे. यह कतई छुपा नहीं है कि जोगी और जूदेव परंपरागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बनकर एक-दूसरे को पछाड़ते रहे लेकिन राजनीतिक कड़ुवाहट के लिये जूदेव के मन और जुबान में कोई भेद ना था. पिछले लोकसभा चुनाव में जब उन्होंने डॉ. रेणु जोगी को हराया तो भावनाओं के प्रगटीकरण में वे मुझसे यह कहना नहीं भूले कि ‘यदि मैं हार भी जाता तो रेणु जोगी जैसी महिला से हारने का संतोष होता.‘

जूदेवजी दिल से राजा थे. सडक़ से लेकर संसद तक, आम से लेकर खास तक से खुद आगे बढक़र हाथ मिलाने की उनकी अदा लोगों का दिल जीतती थी. उनकी राजनीतिक पहुंच का असर देखिये कि एनडीए सरकार जाने के बाद जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तो छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ भाजपा सांसद का सामान बंगले से उठाकर बाहर फेंकवा दिया गया मगर जूदेव ताउम्र रकाबगंज स्थित अपने उसी बंगले में रहे जो उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री रहते हुए आबंटित हुआ था!  दोस्ती निभाने में या मेहनमानवाजी करने में उनका कोई मुकाबला नहीं था. जिस स्टिंग ऑपरेशन ने उनके राजनैतिक कैरियर पर काला धब्बा लगा दिया, उस साजिश के तथाकथित दोषी नटवर रतेरिया को-परिवार और मित्रों के लाख विरोध के बावजूद-अपने से कभी जुदा नहीं होने दिया. हालांकि इस बड़ी चूक ने उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया. सिद्धांतों और पार्टी की इज्जत के लिये जूदेव ‘सिंह’ की तरह लड़े. सन् 2003 में जोगी सरकार के खिलाफ ताल ठोंकने की बारी आई तो उन्होंने अपनी मूंछें दांव पर लगाकर पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिलवाई.

अपने हमसफरों के लिये वे किसी भी स्तर की लड़ाई लड़ लेते थे. राज्य में भाजपा की सरकार दस सालों से चल रही है और मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक से उनके कई मतभेद थे मगर पार्टी की इज्जत की खातिर दिलीप ंिसह जूदेव ने सार्वजनिक तौर पर कभी खुलकर कुछ नहीं कहा. मगर पिछले साल ही उनके बिलासपुर के एक समर्थक पर जब पुलिसिया अत्याचार हुआ और सरकार ने उनकी बातों पर कान नहीं धरे तो जूदेव प्रशासनिक आतंकवाद के खिलाफ जमकर दहाड़े. हमारे अजीज जूदेवजी तो चले गये लेकिन युद्धवीर सिंह के लिये एक निर्मम सच्चाई यह है कि वे एक ऐसे कुरूक्षेत्र में खड़े हैं जहां परिवार से लेकर क्षेत्र की जनता के लिए, अपने राजनैतिक कैरियर और पिता के सपनों को पूरा करने के लिए हर मोर्चे पर लडऩा-जीतना होगा. उम्मीद की छतरी हमने भी तानी है कि अपने नाम के मुताबिक युद्धवीर, इस महासमर में विजयी होकर निकलेंगे. गम और संकट की इस घड़ी में फिलहाल एक ही वादा : हम आपके साथ है!

2 COMMENTS

  1. महान विभूति के प्रयाण पर उन्हें शत-शत नमन. विश्वास है कि वे अपने अधूरे काम को पूरा करने के लिये पुनः भारत भूमि पर ही जन्म लेंगे. जैसी उनकी प्रखर देश्भक्ति थी, उससे तो लगता है कि वे भारत की किसी वीरांगना की कोख में अब तक आ चुके होंगे. क्युंकि अन्तिम समय कें जिन भावों के साथ व्यक्ति प्राण त्याग करता है, उसे उसी के अनुसार जन्म मिल जाता है; यह हम सब का विश्श्वास है और अनुभव भी.

  2. जिस महान व्यक्ति को उसके जाने के बाद भी करोड़ों लोगों का प्यार और श्रद्धा अपने से अलग न कर पाए वो कभी मर नहीं सकता.केवल भौतिक र्रोप से हमसे अलग हो सकता है लेकिन अम्मोर्ट रूप से हमेशा हमारे बीच ही रहता है.रजा दलीप सिंह जूदेव भी हमारे ही बीच मौजूद हैं और हमसे अपेक्षा कर रहे हैं की हम उनके अधूरे काम को आगे बढ़ाएं.और इस बात की पूरी आशा है की इश्वर उन्हें शीघ्र ही इसी भारत भूमि पर अपने मिशन को आगे बढ़ने के लिए वापिस भेजेंगे.तब तक ये काम हम सब को संभालना है.

Leave a Reply to डा.रजेश कपूर Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here