कंधमाल में चैन, दिल्ली बेचैन

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-समन्वय नंद

आगामी 22 से 24 अगस्त तक नई दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में एक कंधमाल को लेकर कार्यक्रम का आय़ोजन किया जा रहा है। इस बारे में दी गई जानकारी के अनुसार इस कार्यक्रम का नाम होगा, ‘नेशनल पीपुल्स ट्रिब्युनल आन कंधमाल ’। कार्यक्रम का आयोजन किसी नेशनल सोलिडारिटी फोरम (एनएसएफ) नामक मंच द्वारा किया जा रहा है। फोरम के बारे में बताया गया है कि इस मंच में देश भर के सामाजिक कार्यकर्ता, मीडियाकर्मी कानूनी विशेषज्ञ, फिल्म प्रस्तुतकर्ता लेखक व कलाकारों आदि लोग हैं।

कार्यक्रमों के आयोजकों के अनुसार इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश भर से लोग होंगे और कंधमाल के बारे में चर्चा करेंगे। कंधमाल की खराब स्थिति व लोगों के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी। कार्यक्रम का नाम पर नजर डालें तो पता चलता है कि कार्यक्रम में कंधमाल के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की ट्रिब्युनल आयोजित होगी।

लेकिन यह कार्यक्रम आपने आप अनेक प्रश्नों को जन्म देता है। जिनके उत्तर ढूंढे जाने की आवश्यकता है। इसका सही विश्लेषण किया जाए तो चित्र स्पष्ट हो सकती है।

इस कार्यक्रम के बारे में जो प्रश्न उभरे हैं उनमें से प्रमुख है कि कंधमाल में वर्तमान स्थिति कैसी है? क्या कंधमाल अशांत है? अगर कंधमाल शांत है तो फिर इस तरह का कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली में क्यों किया जा रहा है? इसके पीछे आय़ोजनकर्ताओं का क्या उद्देश्य है। जिन लोगों के इस कार्यक्रम में शामिल होने की बात कही जा रही है ओर निमंत्रण पत्र तक भेजे जा चुका है उनमें से कितने लोग कंधमाल को जानते हैं? उनमें से कितने लोगों ने अपने जीवन काल में एक बार भी कंधमाल का दौरा किया है? अगर इनमें से अधिकतर लोग हाल ही के दिनों में क्या अपने जीवनकाल में कभी भी कंधमाल का दौरा नहीं किया है तो फिर वे इस कार्यक्रम में कंधमाल के बारे में क्या चर्चा करेंगे? कंधमाल की सामाजिक स्थिति, उसका इतिहास, भूगोल, उसकी संस्कृति के बारे में शून्य जानकारी वाले लोग इस तरह के कार्यक्रम आयोजित क्यों कर रहे हैं? उनका उद्देश्य क्या है?यह अनेकों प्रश्न हैं जिन पर विस्तार से विचार किये जाने की आवश्यकता है।

इन प्रश्नों पर एक के बाद एक विचार करने से साफ चित्र उभरेगी। पहला प्रश्न है कि कंधमाल में वर्तमान कैसी स्थिति है। कंधमाल में स्थिति के बारे में जानकारी लेने के बाद ही इस तरह के कार्यक्रमों की बारे में विश्लेषण में सहायता मिलेगी।

कंधमाल के ग्राउंड जीरो से प्राप्त तथ्यों पर नजर डालें तो कंधमाल गत डेढ साल से भी अधिक समय से शांत है, पूरी तरह शांत है । इस कालावधि में कंधमाल में एक भी हिंसक या अप्रिय घटना के समाचार नहीं है। अगर कंधमाल शांत है तो फिर नेशनल सोलिडारिटी फोरम नामक इस अनामधेय संस्था द्वारा यह कार्यक्रम क्यों आयोजित किया जा रहा है , यह एक विचारणीय प्रश्न है।

अब प्रश्न उठता है कि यह कार्यक्रम दिल्ली में आयोजित क्यों हो रहा है? स्वाभविक है दिल्ली में इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन के पीछे कुछ विशेष उद्देश्य होगा। नई दिल्ली में कोई कार्यक्रम आयोजित करने का उद्देश्य अधिक से अधिक पब्लिसिटी लेना और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंधमाल के मुद्दे को फैलाना है। अगर कंधमाल पूरी तरह शांत है तो फिर कंधमाल के मुद्दे को राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर फैलाने के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है? इस कार्यक्रम के माध्यम से ओडिशा की जनता और विशेष तौर कंधमाल के कंध जनजाति के लोगों को विश्व दरवार में निंदित करना इसका उद्देश्य हो सकता है।

इस कार्यक्रम में जो तथाकथित बुद्धिजीवी शामिल होने वाले हैं, उनकी सूची पर नजर डालने से तस्वीर कुछ स्पष्ट होगी। इनमें से अधिकतर लोग चर्च से जुडे हुए हैं और वामपंथी रुझानों के लोग हैं। इन सभी लोगों के काम करने के तरीके पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह सभी लोग भारतीयता, भारतीय संस्कृति को गाली देने में सभी मंचों का उपयोग करते हैं। कई बार विदेशों में भी जा कर ये लोग भारत को गालियां देते हैं। एक बात और यह है कि ये तथाकथित बुद्धिजीवी वही बातें कहते हैं जो चर्च उनसे कहलवाना चाहता है यानी ऐसे तर्क जिसके प्रचारित करने के बाद उसे लोगों को मतांतरण करवाने में सहाय़ता मिले।

इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाले लोगों ने गत 2008 में स्वामी जी की हत्या के बाद क्या कहा था इस पर एक बार नजर डालते हैं। स्वामी जी की हत्या के बाद दुख जताने के स्थान पर इस गुट ने कहा कि स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जेल में ड़ाले जाने लायक थे। अगर उन्हें जेल में डाल दिया गया होता तो उनकी हत्या नहीं होती। य़ह उन्होंने लिखित में राष्ट्रपति को दिये ज्ञापन में कहा है। इस ज्ञापन को प्रदान करने वालों में प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक महेश भट्ट व अन्य लोग भी थे। राष्ट्रपति को सौंपे गये ज्ञापन में स्वामी जी के प्रति जिस भाषा का उपयोग किया गया है उससे इन तथाकथित बुद्धिजीवियों की मानसिकता स्पष्ट होती है। ये शब्द उनके घोर सांप्रदायिक व धर्मांध चरित्र को उजागर करता है।

अब प्रश्न उठता है कि इस कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है? स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद मतांतरण का सबसे बडी बाधा अब समाप्त हो चुकी है। चर्च चाहता है कि कंधमाल के प्रत्येक व्यक्ति के गले में सलीव लटकाने का पावन कार्य शीघ्र से शीघ्र कर लिया जाए। लेकिन राज्य में कुछ कायदे कानून हैं। गलत तरीके से मतांतरण को रोकने के लिए कानून भी है। मतांतरण पर जन प्रतिक्रिया भी होती है। इसलिए चर्च चाहता है कि मतांतरण को रोकने वाला कानून निष्प्रभावी बनी रहे, सामुहिक मतांतरण पर जनप्रतिक्रिया न हो। लेकिन यह कब संभव होगा? जब लोग दबाव में होंगे। इसके लिए लोगों के प्रति दबाव बनाना आवश्यक है। अगर प्रशासन व लोगों पर दबाव बनेगा तो फिर वे मतांतरण का विरोध करने पर हिचकिचाएंगे और मतांतरण का कार्य आसान हो जाएगा। इसी दिशा में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है।

चर्च के इस गहरे षडयंत्र को समझना होगा। यह कोई अकेली घटना नहीं हैं। चर्च प्रायोजित इस कार्यक्रम से पहले भी प्रशासन व लोगों पर दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय शक्तियां भी दबाव बनाने का प्रयास कर चुके हैं। य़ूरोपीय यूनियन के कूटनीतिज्ञों के दल ने कंधमाल का दौरा कर चुकी है। इस दौरे के समय यूरोपीय़ दल ने सीधे भुवनेश्वर के आर्क बिशप राफेल चिनाथ सा मिला। सिर्फ ईसाइयों से ही मिला। न्यायालय के न्यायाधीशों से मिल कर दबाव बनाने के प्रयास किया। हालांकि स्थानीय वकीलों के विरोध के कारण यह संभव नहीं हो पाया। गोरी चमडी के लोगों का यह दौरा प्रशासन व लोगों पर दबाव बनाने के लिए ही था। कंधमाल को लेकर दिल्ली में प्रस्तावित इस कार्यक्रम को भी उसी कडी में देखने की आवश्यकता है।

इससे एक संदेह और उत्पन्न होता है। वह यह है कि इस कार्यक्रम के आयोजन के पीछे जो लोग हैं वे कौन हैं? क्या इस कार्यक्रम की स्क्रिप्ट किसी और देश में लिखी गई है और यहां के तथाकथित बुद्धिजीवी विदेश में तैयार स्क्रिप्ट पर अभिनय करने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। यह संदेह को बल और अधिक मिलता है जब कंधमाल सब कुछ सामान्य होते हुए भी दिल्ली में इतने बडे पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि इस कार्यक्रम के आयोजन के बारे में ठीक से जांच हो, इसको पैसे कहां से मिल रहे है आदि, आदि। अगर ऐसा होता है तो अनेक गुप्त चीजें सामने आ सकती हैं और परदे के पीछे के ष़डयंत्रकारी बेनकाब हो सकते हैं।

8 COMMENTS

  1. swami lakshmananand ke hatya aur isse jude sajish ka jab tak pardafash nahi hota hinduon ka chain se baithna haram hoga.
    kandhmahal aaj shaanti nahi nyay mangta hai. deshwasiyon ko dhikkar hai yadi swami lakshmananand ke hatyaron aur sajishkarton ko dand na dilwa sake.

  2. कंधमाल सामान्य होते हुए भी दिल्ली में बडे पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित ?
    उत्तर है :
    Arise awake and stop not till the goal of Swami Lakshmananand Saraswati is achieved.

  3. धर्म का इस तरह दुरुपोयोग के कारन ही पृथ्वी २०१२ में विनास के कगार पर जा सकती हे. अब लोग पैसे वालो के पख्य में बोलेंगे .क्योकि सभी को जल्दे से जल्द नरक में जाने की जल्दी पड़ी हे. जाने दो इन्हें. सिर्फ दो साल बचा हे.भारत में ही अवतारी पुरुष जन्म लेते हे. यंहा के अछे लोग तो बच जायेंगे .उनका क्या होगा जो धर्म के नाम पर ब्यापार कर रहे हे.उन्हें तो दो वर्ष की जिन्दगी इस तरह आत्मा हत्या के लिए छोड़ दिया जाये.

  4. मुस्लिम धर्मान्धता की तलवार तो नज़र आती है …. पर चर्च की इस मानववादी, सेवाभावी चेहरे का देश और हमारी संस्कृति कैसे मुकाबला करेगी – ये देखने वाली बात है. अशोक दा के शब्दों में बहुत ही मुश्किल वक्त से गुजर रहे है – “हम लोग”

  5. koi kandhmaal k vishay mein vishesh rup se shamil nhi hoga sirf apne dukaan chamkane mein laga hoga………….. waise dekhte hai kaun kitni chamka paat hai …………….
    aapke is lekh k lie punah dhanyawad deti hu ……….
    -arti

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