राजनीति

राजनीति को विकृत करते व्यक्तिगत आक्षेप

 सिद्धार्थ शंकर गौतम

क्या व्यक्तिगत आक्षेपों से राजनीतिक हितों की पूर्ति होती है? इस विषय पर जनता के मत में अजीब सा विरोधाभाष दिखाई देता है। कई बार नितांत व्यक्तिगत आक्षेपों के चलते मतदाता भ्रमित होकर विरोधी खेमे को खुश होना का अवसर देता है, वहीं कई बार व्यक्तिगत आक्षेपों को नकार विकास एवं सुशासन को प्राथमिकता देते हुए लोकतंत्र को सही मायनों में जिंदा रखने का जतन करता है। नबम्बर-दिसंबर में होने वाले हिमाचल व गुजरात विधानसभा चुनावों में प्रचार को देखें तो विकास, भ्रष्टाचार, सुशासन जैसे मुद्दे कहीं पीछे छूटते नजर आते हैं। उनकी जगह चरित्र हनन तथा निजी जीवन में हस्तक्षेप व आक्षेपों का बाजार गर्म है जो चुनाव की सूरत और सीरत को विकृत कर रहा है। इस राजनीतिक विकृति की शुरूआत गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की जिन्होंने हिमाचल में चुनाव प्रचार करते हुए हाल ही में मनमोहन मंत्रिमंडल में शामिल शशि थरूर पर करारा व्यंग कसते हुए उनकी पत्नी सुनंदा थरूर को ५० करोड़ की बता दिया। जवाबी हमले में शशि थरूर ने भी मोदी को प्यार और शादी करने की नसीहत दे डाली। विवाद का अंत जैसे को तैसे की कहावत के अनुसार हो सकता था किन्तु भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने भी शशि थरूर पर तंज कसते हुए उन्हें लव गुरु की उपाधि देते हुए इंटरनेशनल लव अफेयर्स मंत्रालय संभालने की नसीहत दी। अब जबकि इस विवाद का बढ़ना तय है तो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा ने मोदी को बन्दर की उपाधि से नवाज दिया। कुल मिलकर मोदी की एक आपत्तिजनक टिप्पड़ी ने चुनाव प्रचार को अमर्यादित कर दिया है। फिर चिंगारी भड़की है तो आग लगना भी तय है। और अब यही आग कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह लगाने पर आमादा हैं। उन्होंने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा है कि मोदी विवाहित हैं और उनकी कथित पत्नी जसोदा बेन अब उन्ही के खिलाफ गुजरात में प्रचार करेंगी। बकौल दिग्विजय सिंह, मोदी की शादी १९६८ में हो चुकी है किन्तु उन्होंने इसे आज तक छुपाया ही है। आम गुजरातियों के बीच भी यह चर्चा है कि मोदी की शादी बचपन में ही हो चुकी थी किन्तु गौना नहीं हुआ था और इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव के कारण मोदी ने अविवाहित रहने का फैसला किया और उनके इस फैसले में उनकी कथित धर्मपत्नी जसोदा बेन ने भी स्वीकृति की मोहर लगा दी। हालांकि दिग्विजय ने अपने कथ्य के समर्थन में जो प्रमाण प्रस्तुत किये हैं वे नाकाफी ही हैं किन्तु उन्होंने गुजरात विधानसभा चुनाव के माहौल में तो जहर खोल ही दिया है।

 

जिस स्त्री जाति को स्वयं भगवान ने पूजनीय मान उसकी पूजा की हो, हमारे राजनेता क्षणिक फायदे के लिए उसी की कीमत लगा रहे हैं या तो सरे आम उसकी अस्मिता से खिलवाड़ किया जा रहा है। आखिर किसी की शादी या पत्नी से राजनीति का क्या लेना देना? माना कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्तित्व से सुलझे हुए आचरण व उत्तम चरित्र की उम्मीद की जाती है किन्तु निजी जीवन भी अपना एक स्थान लिए होता है जिसमें ताक-झाँक करने या आक्षेप लगाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। फिर यह कहना कि जो शादी कर पत्नी नहीं संभाल सकता वह देश क्या संभालेगा तो भारतीय राजनीति में ही ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं जहां उत्तम चरित्रवान नेताओं ने शादी नहीं कि किन्तु देश की राजनीतिक विचारधारा को बदलकर रख दिया। स्व. राम मनोहर लोहिया से लेकर पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपयी तक का नाम इस फेरहिस्त में लिया जा सकता है। उन्हें तो अपनी राजनीति को कायम रखने के लिए कभी इस तरह की ओछी मानसिकता का प्रदर्शन नहीं करना पड़ा था। फिर वर्तमान राजनीति इतनी व्रिदुप कैसे हो गई कि जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों से इतर राजनेता व्यक्तिगत आक्षेपों की सीमा लांघते जा रहे हैं? चूँकि अब राजनीति में व्यक्तिगत ईमानदारी, चारित्रिक उच्चता जैसे प्रतिमानों का कोई स्थान नहीं बचा है अतः यह तो होना ही है। बस देखना यह होगा कि इन सबमें और कितनी गिरावट आती है या एक सीमा के बाद राजनीति में शुद्धता आने की संभावना है?