खतरों से घिरे खतरों के खिलाड़ी परवेज़ मुशर्रफ

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पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक जनरल परवेज़ मुशर्रफ अपने लगभग चार वर्ष के निर्वासन के बाद गत् 24 मार्च को एक बार फिर पाकिस्तान वापस पहुंच चुके हैं. इस बार पाकिस्तान में उनका वजूद स्वगठित राजनैतिक दल ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग के प्रमुख के रूप में है. इस दल का गठन 2010 में स्वयं उन्होंने अपने निर्वासन के दौरान किया था.गौरतलब है कि परवेज़ मुशर्रफ ने 1999 से लेकर 2008 तक पाकिस्तान की सत्ता का नेतृत्व किया. उनके सत्तासीन रहने के दौरान पाकिस्तान में कई बड़े व महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव देखे गए. इनमें सर्वप्रथम वे उस समय एक विवादित सैन्य शासक के रूप में चर्चित हुए जबकि उन्होंने भारत-पाक सीमा पर कारगिल सेक्टर में स्थित नियंत्रण रेखा को पार करने में न केवल घुसपैठियों की सहायता की बल्कि स्वयं पाक सेना भी उस समय नियंत्रण रेखा को पार कर गई. परिणास्वरूप युद्ध जैसे हालात पैदा हुए और कई भारतीय व पाकिस्तानी सैनिकों व सैन्य अधिकारियों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं. दुर्भाग्यपूर्ण है कि कश्मीर में अराजकता, अस्थिरता व अव्यवस्था का वातावरण पैदा करना पाकिस्तानी शासकों की रणनीति का एक मुख्य हिस्सा हुआ करता है.यही वजह है कि तहरीक-ए-तालिबान तथा अन्य आतंकी संगठनों द्वारा परवेज़ मुशर्रफ को पाकिस्तान वापसी पर जान से मारने की धमकी मिलने के बावजूद उन्होंने एक बार फिर ‘राग कारगिल’ पुन: यह कहते हुए अलाप दिया है कि मुझे कारगिल घटना तथा उस दौरान नियंत्रण रेखा पार करने पर गर्व है. ज़ाहिर है कोई भी निष्पक्ष सोच रखने वाला तो यही उम्मीद रखेगा कि घुसपैठ करने वाले को या गैरकानूनी तरीके से युद्ध छेडऩे की कोशिश करने वाले व्यक्ति को सज़ा मिलनी चाहिए उसे अपनी गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए. परंतु परवेज़ मुशर्रफ का कारगिल घटना पर माफी मांगने के बजाए गर्व करने जैसा बयान देना एक बार फिर इस शंका को बल देता है कि पाकिस्तान के रहबरों की राजनीति भारत विरोधी विशेष कर ‘राग कश्मीर’ अलापने से ही फलती-फूलती है. पाकिस्तान की जनता के बीच भारत विरोधी भावनाएं भडक़ा कर यह रहबरान अपनी लोकप्रियता अर्जित करना चाहते हैं तथा ‘राग कश्मीर’ अलापने का राजनैतिक लाभ उठाने की कोशिश करते हैं.
ज़ाहिर है परवेज़ मुशर्रफ ने भी पाकिस्तान में लगभग 4 वर्षों बाद अपनी वापसी के बाद अवाम में अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश के तहत यह बयान दिया है. पाकिस्तान में उनके इस वक्तव्य का कोई प्रभाव पड़ेगा भी या नहीं, पंरतु इतना ज़रूर है कि उनके इस बयान से एक बार फिर यह साबित हो गया है कि कारगिल में हुई घुसपैठ की घटना को तत्कालीन जनरल, परवेज़ मुशर्रफ का समर्थन हासिल था तथा वे घुसपैठ की रणनीति का एक अहम किरदार भी थे.बहरहाल, खतरों से खेलने के आदी परवेज़ मुशर्रफ की कहानी केवल कारगिल घुसपैठ पर ही खत्म नहीं होती बल्कि यह कहा जा सकता है कि यह खतरों से खेलने के उनके व्यक्तिगत स्वभाव की एक शुरुआत मात्र थी. 1999 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से एक शांतिपूर्ण सैन्य त$ख्ता पलट के द्वारा सत्ता हथियाने वाले जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता में आते ही पाकिस्तान की कट्टरपंथी शक्तियों के विरुद्ध ज़बरदस्त मोर्चा बंदी शुरु कर दी.
न्यूयार्क पर हुए 9/11 के हमले के बाद अमेरिका द्वारा छेड़े गए ‘आतंकवाद विरोधी युद्ध’ की मुहिम में परवेज़ मुशर्रफ दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में अमेरिका के एक सबसे खास सहयोगी के रूप में उभरकर सामने आए. और अफगानिस्तान में तालिबानों को सत्ता से खदेडऩे के लिए उन्होंने अमेरिका व नाटो सेना की पूरी सहायता की. यहां तक कि उन्हें पाकिस्तान से होकर अफगानिस्तान को जाने वाला राजमार्ग तथा हवाई अड्डे व सैन्य ठिकाने तक मुहैया कराए.जनरल परवेज़ मुशर्रफ की अमेरिका से इस हद तक दोस्ती, तालिबानों सहित अमेरिकी विरोध पर आश्रित रहने वाले किसी भी आतंकी संगठन को अच्छी नहीं लगी. और यही वजह थी कि सन् 2000-2003 व 2007 के दौरान उनपर पाकिस्तान में कई बड़े हमले हुए. जिनमें एक कार बम हमला व उनके विमान पर फायरिंग करने जैसा संगीन आतंकी हमला भी शामिल है. यही टकराव आगे चलकर जुलाई 2007 में उस समय खुलकर देखने को मिला जबकि परवेज़ मुशर्रफ के आदेश पर इस्लामाबाद स्थित ऐतिहासिक लाल मस्जिद में पाकिस्तान रेंजर्स ने धावा बोल दिया.पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करने तथा हथियारों के बल पर पाकिस्तान में शरिया क्रांति लाने की योजना बनाने वाले इस तथाकथित धार्मिक मदरसे में हुई मुठभेड़ के दौरान सौ से अधिक लोग मारे गए इनमें मस्जिद का एक प्रमुख इमाम अब्दुल रशीद गाज़ी भी शामिल था. यहां से भारी मात्रा में हथियार व गोला-बारूद बरामद किया गया. लाल मस्जिद का मुखिया मौलवी अजीज़ औरतों का भेष बनाकर अपनी जान बचाकर भागता हुआ पकड़ा गया.
इन सभी घटनाओं ने पाकिस्तान व अफगानिस्तान में सक्रिय कट्टरपंथी ताकतों तथा इनसे संबद्ध आतंकी संगठनों को सीधे तौर पर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कट्टरपंथियों व उनसे जुड़े आतंकी संगठनों के लिए चूंकि अमेरिका व मुशर्रफ की मंशा व भाषा एक है, इसलिए दोनों ही उनके लिए बराबर के दुश्मन हैं. इधर पाकिस्तान में भले ही वहां की ज़रदारी सरकार के लिए इस वजह से उपलब्धि भरा दौर कहा जा रहा है क्योंकि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद ज़रदारी का पहला शासन काल ऐसा बीता है जिसने अपनी सत्ता के पांच वर्ष पूरे किए हों. अन्यथा इससे पूर्व या तो सैन्य शासकों द्वारा लोकतान्त्रिक सरकार पर कब्ज़ा जमाया गया या फिर संसद भंग करनी पड़ी.
परंतु इस संवैधानिक लोकतांत्रिक उपलब्धि के साथ-साथ यह भी सत्य है कि गत् पांच वर्षों के दौरान ही पाकिस्तान में आतंकी संगठन जितनी तेज़ी से फले-फूले हैं, जितनी आतंकवादी घटनाएं, सामूहिक हत्याएं, अल्पसंख्यकों पर हमले, आत्मघाती हमले, जातिवादी वैमनस्य, भारत के विरुद्ध न$फरत का माहौल, भारत व अमेरिका विरोधी रैलियां व प्रदर्शन पिछले पांच सालों में पाकिस्तान में देखे गए उतने पहले कभी देखने को नहीं मिले. और चारों ओर आतंकवाद व आतंकवादी घटनाओं से जूझ रहे पाकिस्तान के इसी दहशतनाक वातावरण में एक बार फिर $खतरों के खिलाड़ी समझे जाने वाले परवेज़ मुशर्रफ ने पाकिस्तान में अपनी बहुप्रतीक्षित वापसी कर कई आतंकी संगठनों के रहनुमाओं की त्यौरी पर बल चढ़ा दिए हैं.
तहरीक-ए-तालिबान सहित कई और आतंकी संगठनों ने परवेज़ मुशर्रफ को जान से मारने की धमकी दे डाली है. तहरीक-ए-तालिबान ने तो बाकायदा दर्जनों आत्मघाती हमलावरों को साथ लेकर एक वीडियो क्लिप जारी किया है जिसमें इस संगठन के ‘ऑप्रेशन मुशर्रफ’ के मुखिया द्वारा अपनी उस क्षमता के बारे में भी बताया जा रहा है जिसके द्वारा मुशर्रफ पर जानलेवा हमला किया जाना है. पाकिस्तान के आतंकी संगठनों द्वारा बेनज़ीर भुट्टो की हत्या कर दी गई, उन्हें भी धमकी तो ज़रूर दी गई थी परंतु उस धमकी में इतनी तल्खी व गंभीरता नहीं थी जितनी कि परवेज़ मुशर्रफ को दी जाने वाली धमकी में दिखाई दे रही है.
परवेज़ मुशर्रफ द्वारा पाकिस्तान की सेना के प्रमुख बनाए गए वहां के वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ कयानी ने भी अपने पूर्व सेनाध्यक्ष को आतंकी संगठनों द्वारा दी जाने वाली धमकी को गंभीरता से लेते हुए पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय से मुशर्रफ के लिए विशेष सुरक्षा प्रबंध मुहैया कराए जाने की भी मांग की है. 24 मार्च को दुबई से पाकिस्तान वापसी के बाद उन्होंने उसी दिन शाम को अपनी राजनैतिक पार्टी ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग द्वारा आयोजित की गई एक जनसभा को भी संबोधित करना था. परंतु इन्हीं आतंकी धमकियों के चलते मुशर्रफ की सुरक्षा व्यवस्था को मद्देनज़र रखते हुए यह जनसभा स्थगित कर दी गई. और बाद में मुशर्रफ को हवाई अड्डे पर ही मौजूद अपने समर्थकों को संबोधित कर संतोष करना पड़ा.
बहरहाल, कारगिल घुसपैठ हो या 9/11 के बाद अमेरिका व नाटो सैन्य सहयोग, आप्रेशन लाल मस्जिद हो, आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई,पाकिस्तान में संविधान भंग करना हो या फिर शांतिपूर्ण सैन्य तख्ता पलट और अब आतंकवाद से बुरी तरह जूझते पाकिस्तान में चार वर्षों बाद उनकी वापसी और उन्हें जान से मारने की धमकियों के बीच अपनी राजनैतिक पार्टी के बल पर पाकिस्तान की लोकतांत्रिक राजनीति में शिरकत करने का उनका हौसला.इन बातों ने निश्चित रूप से पूरी दुनिया का ध्यान परवेज़ मुशर्रफ की ओर आकर्षित किया है. उनके राजनैतिक दल ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग को पाकिस्तान में निकट भविष्य में होने वाले चुनावों में सफलता मिलेगी अथवा नहीं इस बात से अधिक चिंता इस बात को लेकर है कि तहरीक-ए-तालिबान व अन्य संगठनों द्वारा उन्हें जान से मार देने की गंभीर धमकी के बाद पाकिस्तान की सरकार, वहां का रक्षामंत्रालय, सेना तथा उनकी पार्टी के कार्यकर्ता खतरों के इस खिलाड़ी के सिर पर मंडरा रहे खतरों से उसे बचा कर रख पाएंगे या नहीं?
तनवीर जाफरी

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