
—–विनय कुमार विनायक
आज लड़ना है
फिर से एक महाभारत
उस मानसिकता के खिलाफ
जिसमें एक कृष्ण सिंह
दूसरे कृष्ण मंडल से
कंश जैसा व्यवहार करता है
दफ्तर में दुत्कारता है!
वही कृष्ण सिंह दुर्योधन सिंह को
दफ्तर में पुचकारता है
कृष्ण झा से मुहूर्त विचारता है
कि कब और कैसे?
कृष्ण मृगों का शिकार करना है!
ऐसे में कृष्णा दास,
कृष्णा मराण्डी क्या कर पाएगा,
किससे गुहार लगाएगा?
कि खतरे में है उसके मेमनों का
वर्तमान और भविष्य!
कि पब्लिक सर्विस कमीशन के
अध्यक्ष पद पर बैठ गया
वही कृष्ण सिंह नाम बदलकर
कृष्ण गोपाल सिंह!
फिर कृष्ण मंडल को शिष्य बनाता है
मंडल-महतो-मांझी आदि से अलगाता है!
कृष्ण सिंह यादव की नव संज्ञा देकर
मंत्री बनने का गुर सिखलाता है
मेधा महा घोटाला करवाता है!
कृष्ण गोपाल सिंह और कृष्ण मंडल का कुनबा
शिक्षक,व्याख्याता,सी०ओ०,बी०डी०ओ० बन जाता है!
कोर्ट-कचहरी क्या करेगा तारीख के सिवा,
तैंतीस साल तक तैंतीस कोटि देवता सहाय रहा
तो नीभ हीं जाएगी उन सबकी चाकरी!
—–विनय कुमार विनायक