१५ सितम्बर २०१४ को डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी जी कि ७५ वीं वर्षगांठ है.उनके दीर्घ जीवन की कामना करते हुए उनका संछिप्त परिचय देना उचित होगा.
डॉ. स्वामी जी द्वारा पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार से घोटालों का भंडाफोड़ किया और उनके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में भी संघर्ष किया और भ्रष्ट तंत्र को खुली चुनौती दी.इस कारण से उन्हें ” वन मैन आर्मी” का सम्बोधन प्राप्त हुआ.
डॉ. स्वामी का जन्म १५ सितम्बर १९३९ को मायलापोर, चेन्नई में हुआ था.उनकी अधिकांश शिक्षा दिल्ली में हुई.हिन्दू कालेज दिल्ली से उन्होंने स्नातक किया.तथा भारतीय सांख्यिकी संस्थान से उन्होंने परास्नातक की उपाधि प्राप्त की.अर्थशास्त्र के सांख्यिकी और अंकगणितीय पक्ष पर उनका विशेष अध्ययन था.उन्होंने उस समय के प्रमुख सांख्यकीविद् पी.सी.महालनोबिस की कुछ अवधारणाओं से भिन्न अपने लेख लिखे.उनके लेखों से प्रभावित होकर उन्हें अमेरिका के प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आगे अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति प्रदान की गयी.उन्होंने प्रसिद्द अर्थ शास्त्री साइमन कुज़्नेत्स (जिन्हे १९७२ का अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ था)के निर्देशन में १९६४ में शोध प्रबंध लिखा और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की. वो दो वर्ष में पीएच.डी. करने वाले औरसबसे काम आयु में हार्वर्ड में अध्यापन करने वाले पहले भारतीय बने.१९७१ में अर्थशास्त्र का प्रथम नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रो.पॉल सेमुएल्सन के साथ उन्होंने चीन की अर्थव्यवस्था पर शोधपत्र प्रकाशित किये.तथा जे.आर. हिक्स और केनेथ एरो के साथ वेलफेयर इकोनोमिक्स पर शोधपत्र प्रकाशित किये.ये भी उल्लेखनीय है की इन दोनों विदेशी विद्वानों को संयुक्त रूप से १९७४ में अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार मिला.
१९६७ में तत्कालीन भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेता स्व.जगन्नाथ राव जोशी जी से डॉ.स्वामी की भेंट अमेरिका में जोशी जी के प्रवास के समय हुई. और उनके आग्रह पर डॉ.स्वामी ने भारत की आर्थिक विकास की दिशा को लेकर एक पुस्तिका लिखी ” इंडियन इकोनोमिक प्लानिंग:एन ऑल्टरनेटिव एप्रोच”.१९६९ में प्रकाशित इस पुस्तिका को भारतीय जनसंघ ने स्वीकार किया और इसे लोकसभा में भी प्रस्तुत करके नियोजित विकास के तत्समय प्रचलित मार्ग का एक सशक्त विकल्प प्रस्तुत किया गया. लेकिन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, जो उस समय कांग्रेस के विभाजन के कारण एक अल्प मतीय सरकार चला रही थी और इसके लिए कम्युनिस्टों का सहयोग लेने के कारण वामपंथी चेहरा बनाये हुए थीं, द्वारा इस योजना को सिरे से अस्वीकार कर दिया गया.इक्कीस वर्ष बाद कांग्रेस के ही एक अन्य प्रधान मंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने उनके सुझावों को स्वीकार करते हुए १९९१ में आर्थिक सुधारों का दौर प्रारम्भ किया.(जिसका श्रेय मीडिया द्वारा डॉ.मनमोहन सिंह को दिया गया).उनकी विद्वता से प्रभावित होकर आई आई टी दिल्ली द्वारा १९६८ में डॉ.स्वामी जी को ह्यूमैनिटीज विभाग का विजिटिंग प्रोफ़ेसर बना दिया गया.
आई आई टी दिल्ली में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहते हुए उन्होंने आई आई टी के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कुछ सेवा सम्बन्धी मांगों को अपना समर्थन दिया जिसके परिणाम स्वरुप उन्हें सेवा से हटा दिया गया.लेकिन न्यायालय द्वारा उनकी सेवा बहाल करदी गयी. बाद में वो इसी आई आई टी दिल्ली के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स तथा आई आई टी परिषद में भी रहे.
स्वामीजी की राजनीतिक यात्रा तत्कालीन भारतीय जनसंघ से प्रारम्भ हुई.उन्हें उत्तर प्रदेश से १९७४ में राज्य सभा में भेजा गया.१९७५ में इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपात स्थिति लागू करने पर उनके द्वारा संसद में अपनी हाज़िरी लगाकर पॉइंट ऑफ़ आर्डर उठाकर सबको अचम्भे में डाल दिया और जब तक सुरक्षा कर्मी उन्हें गिरफ्तार कर पाते वो चकमा देकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए और अमेरिका पहुँच गए.१९७७ में लोकसभा के चुनावों की घोषणा होने पर उन्होंने नवगठित जनता पार्टी के टिकट पर मुंबई नार्थ से चुनाव लड़ा और लोक सभा में पहुंचे.कहा जाता है की जनता पार्टी के प्रधान मंत्री उन्हें वित्त राज्य मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन जनता पार्टी के जनसंघ घटक के कुछ बड़े नेताओं के कहने पर उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया.१९८० में जब आर एस एस से सम्बन्धो को मुद्दा बनाकर जनता पार्टी के समाजवादी और वाम रुझान वाले नेताओं ने जनसंघ घटक के सदस्यों पर दोहरी सदस्यता का विवाद खड़ा करके पार्टी को विभाजन की स्थिति में पहुंचा दिया तो भारतीय जनता पार्टी बनने के बावजूद डॉ. स्वामी जनता पार्टी में ही बने रहे.और १९९० में चन्द्र शेखर जी की सरकार में वाणिज्य और कानून मंत्री बने.
बाद में जनता पार्टी के कुछ और विभाजनों के बाद डॉ. स्वामी अकेले ही जनता पार्टी का बैनर थामे रहे.उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों में तमिलनाडु की जयललिता को अदालत में घसीट रखा है.श्रीलंका में लिट्टे को समर्थन के मुद्दे पर करूणानिधि और अन्य द्रविड़ दलों का भी विरोध करते रहे हैं.
अलग दल होने के बावजूद डॉ.स्वामीजी का आर एस एस के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा के कुछ प्रमुख नेताओं से निरंतर सम्बन्ध, संपर्क और सहयोग चलता रहा.रामसेतु के मामले में उन्होंने ही सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करके उसे ध्वस्त होने से बचाया है.वर्तमान में उन्होंने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और सोनिया परिवार तथा कुछ नजदीकी लोगों के विरुद्ध नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र के अंतरण में हुए ४-५ हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले में अदालत का दरवाजा खटखटाया है और सबको अदालत से नोटिस जारी कराया है.
डॉ. स्वामी चीनी भाषा के अच्छे ज्ञाता हैं और १९८१ में उनके द्वारा देंग जियाओ पिंग से आग्रह करके कैलाश मानसरोवर की यात्रा पुनः प्रारम्भ करायी गयी थी.तथा वो स्वयं प्रथम यात्री बने थे.इजराइल से भारत के सम्वन्ध प्रारम्भ कराने में भी उनका विशेष योगदान रहा है.१९८२ में इजराइल जाकर वहां के विदेश मंत्री और प्रधान मंत्री से मिलने वाले वो प्रथम भारतीय राजनेता थे.
हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर वो हमेशा सक्रीय रहे हैं.चार वर्ष पूर्व एक लेख में ये लिखने के कारण कि भारत के सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे और जो मुसलमान अपने हिन्दू पुरखों के प्रति आदर नहीं रखे उसे वोट के अधिकार से वंचित कर दिया जाये,कुछ छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों द्वारा मुहीम चलाकर हार्वर्ड विश्विद्यालय से उनका ग्रीष्म कालीन अध्यापन का अनुबंध समाप्त करा दिया गया.उस पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि” बेहतर होता कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अधिकारीयों द्वारा निर्णय लेने से पूर्व अपना पक्ष रखने का अवसर देना चाहिए था.लेकिन अब मैं अपना पूरा ही समय भ्रष्टाचारियों से लड़ने में केंद्रित कर सकूँगा.”
२०१२ में उन्होंने जनता दल का विलय भारतीय जनता पार्टी में कर दिया.और आज भी पार्टी के एक प्रमुख मार्ग दर्शक के रूप में सक्रीय हैं.
ईश्वर से यही प्रार्थना है की डॉ. स्वामी जी को दीर्घ काल तक देश/हिन्दू समाज की सेवा करते रहने के लिए भरपूर शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें.ताकि हम उनके शताब्दी कार्यक्रम पर भी उनका अभिनन्दन कर सके
उनकी पचत्तरवीं वर्षगांठ के शुभ दिवस पर अनिल गुप्ता जी द्वारा प्रस्तुत यह ज्ञानवर्धक निबंध डॉ: सुब्रमण्यम स्वामी जी के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को बाध्य करता है। स्वयं मैं उनके विचारों से प्रभावित हिन्दू राष्ट्रीयता, हिंदी भाषा, व अन्य भारतीय समस्याओं के समाधान में भारतीयों द्वारा सामूहिक प्रयास देखना चाहता हूँ। डॉ: स्वामी जी के लिए स्वस्थ व दीर्घ आयु की शुभकामनाऐं करते मैं अनिल गुप्ता जी को साधुवाद भेजता हूँ।