रामायण की मूल कथा पर आधरित प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय का यह नाटक आज की प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों का ऐसा बखिया उधेड़ता है कि स्तब्ध हुए दर्शक यह सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि वास्तव में यदि आज के युग की ही तरह त्रेता में भगवान राम को अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता हरण का मामला पंचवटी के थाने में दर्ज करवाने के लिए जाना पड़ता तो क्या होता। समाज के खोखलेपन को दर्शाने वाले इस नाटक की प्रस्तुति पहली बार हैदराबाद की रंगमंच संस्था सूत्राधर द्वारा, बिडला सांइस सेंटर के भास्कर ऑडिटोरियम में, उसके संस्थापक विनय वर्मा के कुशल निर्देशन में की गई। ‘हिंदू’, ‘डेकन क्रोनिकल’, ‘दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदी मिलाप’ आदि समाचार पत्रों ने इस नाटक की प्रशंसात्मक समीक्षाएं प्रकाशित की हैं। 21,22 और 23 अगस्त को इसका पुनः सफल मंचन हुआ। दर्शक पागलपन की हद तक दीवाने दिखे।
नाटक में समाज की समकालीन परिस्थितियों की वास्तविकता का परिचय देते हुए नाटककार ने उसे आईना दिखाया है। तीखे व्यंग्य एवं चुटीले हास्य के माध्यम से वर्तमान पुलिस व्यवस्था का चित्रण किया गया है। थानेदार की भूमिका में विनय वर्मा अपनी पत्नी संजोगिता मिश्रा के साथ एक स्थानीय बाहुबली से लूट का माल वसूल करके अपने घर लाते हैं तो थानेदारनी उसमें से देवताओं को उनका भाग सौंप कर उन्हें प्रसन्न करने की बात करती है। यहां पर थानेदारनी की भौतिक सोच और स्थानीय नेता विशाल सक्सेना के साथ मिल कर हर स्थिति में माल लूट कर मौज मनाने की मनोवृत्ति का अच्छा चित्राण किया गया है। हवलदार के रूप में मोहित भी उनका साथ देता है।
थानेदार भी अपने पद के मद में चूर नशे में धुत होकर भगवान राम को इस बात के लिए दोषी ठहराता है कि उन्हें पुलिस पर तनिक भी विश्वास नहीं था। थानेदार कहता है कि राम ने बेकार ही सीता की खोज में जंगलों की खाक छानी और दर दर भटकते रहे। यदि वह थाने में रिपोर्ट लिखवा देते तो पुलिस तुरन्त सीता को बरामद कर लाती।
नाटक में सपने के माध्यम से यह कल्पना की गई है कि यदि सीता के अपहरण के बाद राम-लक्ष्मण अच्छे नागरिकों की भांति पंचवटी के थाने में सीता के गुम होने की रिपार्ट दर्ज करवाने आते तो थानेदार उनके साथ कैसा भद्दा व्यवहार करता। यही स्थिति नाटक की धुरी है। आज की व्यवस्था होती तो उस समय थाने में पहुंचने पर सबसे पहले तो राम के उपर मरीच की हत्या का आरोप लगाया जाता और बात बात में यह कह कर धमकाया जाता कि अंदर बंद कर दूंगा। इस प्रकार पुलिस व्यवस्था की विसंगतियों को बहुत कुशलता से उभारा गया है। वर्तमान पुलिस व्यवस्था, राजनीति और पुलिस की परस्पर सांठ-गांठ का अच्छा प्रस्तुतिकरण किया गया है। नाटक में सबसे अच्छी बात यह है कि लेखक और निर्देशक ने नाटक को आदर्शवादिता के ठप्पे से बचा कर रखा है। नाटक हमारी अत्यधिक भ्रष्ट होती व्यवस्था एवं धर्म के व्यावसायिक प्रयोग की विसंगतियों को सामने लता है।
संयोगिता मिश्रा ने थानेदारनी की भूमिका में दर्शकों को प्रभावित किया तो हवलदार बने किशन सिंह, पुरोहित की भूमिका में रवि कुमार कुलकर्णी, आदि .ने भी अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। गौरव अग्रवाल, रविराज इत्यादि कई कलाकार तो पहली बार अभिनय करते हुए भी रंगमंच पर अपना प्रभाव छोड़ने में सपफल रहे।
नाटक का निर्देशन विनय वर्मा ने, श्री भास्कर के परामर्श से बहुत कुशलता के साथ किया है।
-मनोहर पुरी
प्रेम जी का यह नाटक मैंने पढ़ा है इसमे जबरदस्त संभावना है. इस नाटक का तीन-तीन बार मंचन होना और हाऊसफुल जैसी स्थिति से यह पता चलता है कि अच्छे नाटक आज भी पसंद किये जाते है. बशर्ते लेखक प्रेम जनमेजय जैसा ही दमदार हो. प्रेम जी को बधाई.
व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय का यह नाटक
यदि भगवान राम को लक्ष्मण के साथ सीता हरण का मामला थाने में दर्ज करवाने जाना पड़ता तो क्या होता ?
—– व्यंग्य एवं हास्य से पुलिस व्यवस्था का चित्रण —–
– लूट का माल अपने घर लाने पर थानेदारनी देवताओं को भाग सौंप कर उन्हें प्रसन्न करने की बात करना
– थाने पहुंचने पर राम के उपर मरीच की हत्या का आरोप
– यह कह कर धमकाना कि अंदर बंद कर दूंगा।
(मनोहर पुरी द्वारा नाटक चर्चा : आधुनिक युग में सीता अपहरण)
achchh naatak hai kahin avhineethua ya manchan ki vyvastha hui to hm bhi dekhenge .is sawal ko mazaak men haasiye par nahin dhakela ja skta ki ye to aastha ka sawaal hai ?