कविता – हम कैसे बता दें

0
173

मोतीलाल

हम यह भी नहीं बता सकते

कितने कंकड़-पत्थर

हर अफरा-तफरी में

महाद्वीप में तब्दील हो जाते हैं ।

 

कब से मंच के पीछे खड़े

एक अदृश्य हाथ

समय के धागे को पकड़कर

हर उस रेत को पाटता रहा है

नदी के दोनों छोरों में

लगता है हमने इस विषय को

विस्मृत होते संस्कार के हदों में

अकेला भटकने को छोड़ दिया है ।

 

क्या वे जले हुए

जंग खाये हाथ

टार-मटोल करते सपनों को

किसी मंच पर धकेल पाएगा ।

 

वे पृष्ठ जो सिर्फ

हमें इतिहास में ले जाते हैं

हम यह भी नहीं बता सकते

कि आखिर कितने आयामों में

कोई विस्फोट मौत में बदलता है ।

 

हम कंकड़-पत्थर तो हैं नहीं

कि हमें किसी चौराहे पर गाड़ दो

किसी शहीदी प्रतिमा के शक्ल में

और हर दिन कई कुत्ते

टांग उठाता रहे ।

 

आपने चुनौतियों से भरी

जरुर लाल आकाश को देखा होगा

देखा होगा कि

कैसे आंगन का धूप

हमारे सपनों में तैर जाता है

फिर हम कैसे बता दें

कि धरती सिकुड़ गई है

और हमारी देह के परे

रेत की आंधी उमड़ी है ।

Previous articleवाह रजा बनारस !
Next articleपराकाष्ठा
मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here