कविता

कविता : परायों के घर – विजय कुमार

परायों के घर

 

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;

सपनो की आंखो से देखा तो,

तुम थी …..!!!

 

मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,

उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,

मैंने तुम्हारे लिये ;

एक उम्र भर के लिये …!

 

आज कही खो गई थी,

वक्त के धूल भरे रास्तों में ;

शायद उन्ही रास्तों में ;

जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो …….!!

 

लेकिन ;

क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;

कि,

परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते……..!!!