कविता

चाँद तारे

बीनु भटनागरlove

चाँद ने थोड़ी सी रौशनी,

सूरज से उधार लेकर,

हर रात को थोड़ी थोड़ी  बाँट दी।

अमावस की रात तारों ने,

चाँद के इंतज़ार मे,

जाग कर गुजार दी।

अगले दिन चाँद निकला,

थका सा पतला सा,

तारों ने चाँद की,

आरती उतार ली।

‘’महीने मे एक बार लुप्त होना,

मजबूरी है मेरी,

घटना फिर बढ़ना भी,

मजबूरी है मेरी,

मै तो जी रहा हूँ,

उधार पर

उधार की रौशनी बाँटता  हूँ रात भर,

तारों तुम छोटे छोटे हो,

पर हमेशा चमकते हो,

कभी नहीं थकते हो,

मै आकार मे बड़ा  हूँ तो क्या,

तुम पूरे आसमान को ढ़कते हो।‘’