कविता : जीवन का हिसाब

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  life मिलन सिन्हा

तुमसे बेहतर

तुम्हें जाने कौन

मुझसे बेहतर

मुझे जाने कौन

लोग कहें न कहें

मानें  न मानें

जानें न जानें

पहचानें न पहचानें

क्या फर्क पड़ेगा

जैसे हम हैं

वैसे हम हैं

जैसा आगे करेंगे

वैसा ही बनेंगे

सच है, झूठ से सच

कैसे साबित करेंगे

गलत तरीके से

जब जोड़ेंगे संपत्ति

दूर कैसे रहेगी तब

हमसे  विपत्ति

गवाह है मानव इतिहास

होता है अपने-अपने

कर्मों का यहीं हिसाब

इसी जीवन में

जीना है सबको

अपने हिस्से का स्वर्ग

अपने हिस्से का नर्क

करें क्यों तब छल-प्रपंच

और अपना ही बेड़ा गर्क !

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