चूहे की सजा

-प्रभुदयाल श्रीवास्तव-
cat and mouse

हाथीजी के न्यायालय में,
एक मुकदमा आया।
डाल हथकड़ी इक चूहे को,
कोतवाल ले आया।

बोला साहब इस चूहे ने,
दस का नोट चुराया।
किंतु रखा है कहां छुपाकर‌,
अब तक नहीं बताया।

सुबह शाम डंडे से मारा,
पंखे से लटकाया।
दिए बहुत झटके बिजली के,
मुंह ना खुलवा पाया।

चूहा बोला दया करें,
हे न्यायधीश महराजा।
कोतवाल इस‌ भालू का तो,
बजा अकल का बाजा|

नोट चुराया सच में मैंने,
हे अधिकारी आला।
किंतु समझकर कागज‌ मैंने,
कुतर-कुतर खा डाला।

न्यायधीश हाथी ने तब भी,
सजा कठोर सुनाई।
‘कर दो किसी मूढ़ बिल्ली से,
इसकी अभी सगाई।’

तब से चूहा भाग रहा है,
अपनी जान बचाने।
बिल्ली पीछे दौड़ रही है,
उससे ब्याह रचाने।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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