कविता

ममता त्रिपाठी की कविता : सृष्टि

 

धन्य है तिमिर का अस्तित्व

दीपशिखा अमर कर गया ।

धन्य है करुणाकलित मन

हर हृदय में घर कर गया ।

ज्योति ज्तोतिर्मय तभी तक

जब तक तिमिर तिरोहित नहीं ।

जगति का लावण्य तब तक

जब तक नियन्ता मोहित नहीं ।

पंच कंचुक विस्तीर्ण जब तक

तब तक सृष्टि प्रपञ्च साकार ।

बालुकाभित्ति सी ढह जायेगी

जैसे होगा उसका विस्तार ।

सृष्टि संकुचन उस महाशक्ति का

प्रलय है विस्तार उसका ।

बुलबुले सी मिटेगी लीला

होगा जैसे प्रसार उसका ।

अपनी इच्छा से ही उसने

उकेरा यह सुन्दर चित्र ।

समेटेगा अपनी ही इच्छा से,

यही शाश्वत सत्य विचित्र ॥