कविताएं-लोहा एवं चिड़ियाघर

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चुम्बक के छर्रे से खेलता बच्चा

तपाक से पूछता है –

कहाँ-कहाँ है लोहा ?

माँ कहती

हर तरफ लोहा !

चिमटा छेनी हथौड़ा संडासी

फावड़ा खुरपी कुदाली

चाकू हंसिया कुल्हाड़ी

सेफ्टी पिन साईकिल रेलगाड़ी

हर तरफ लोहा !

 

बच्चा बारी-बारी

सबपर चुम्बक लगाता

ताली पीटता

ख़ुश हो जाता |

फिर अचानक

चुम्बक उछल जा चिपका

माँ की पीठ से

माँ हड़बड़ाई

बच्चा परेशान !

 

बच्चे को नहीं पता

हर मेहनतकश

लोहा है

ठोकर खाकर जो न टूटे

लोहा !

दबी कुचली तपाई गई हर कुरुप वस्तु

लोहा !

 

 

 

 

एक रोज़ चिड़ियाघर में मचा बवाल

कुछ जानवरों ने किया हड़ताल, कहा- करो हमें स्वतंत्र

निकाल फेंका चिड़ियाघर के सभी अफसरों को

संस्थापित किया लोकतंत्र |

मतदान हुआ चिड़ियाघर में

सारे जानवरों ने प्यास बुझाई

मदमस्त होकर नाचते गाते

विजयी पार्टी सत्ता में आई |

दार्शनिक सी सूरत बना घड़ियाल बना राष्ट्रपति

गदहे के पीठ पड़ा प्रधानमंत्री का भार

रोज़गार मंत्रालय खाली छोड़कर

खड़ी हो गयी सरकार |

सूचना प्रसारण विभाग पर

चिमगादढ़ उल्टा लटका रहा

हाथी बना खाद्य मिनिस्टर

“कृषि मंत्रालय मेरा !” टिड्डे ने कहा |

गृह मंत्रालय गीदड़ के जिम्मे

इन्कम टैक्स ऊँट ने संभाला

शांति व्यवस्था का लीडर बना

गली का झबरा कुत्ता काला |

लोमड़ को क़ानून मिला

मक्खी ने संभाली साफ़ सफाई

कला एवं संस्कृति की करने लगे

बन्दर लंगूर मिलकर अगुवाई |

उल्लू को विद्युत आपूर्ति मिला

सुन उसकी आँखें घूमी गोल गोल

विदेश मंत्रालय उसका सुनकर

सूअर नाचने लगा कपड़े खोल |

चूहा करे भवन निर्माण

रेल लेकर कछुआ दौड़ा

रक्षा मंत्रालय मेरा कहकर

मुर्गी ने किया सीना चौड़ा |

गलती जानवरों की नहीं थी

गलत थी चिड़ियाघर की जनता

जो आंक न सकी

अपने एक एक वोट की क्षमता |

बच्चों तुमने स्कूल में पढ़ा होगा-

यथा राजा – तथा प्रजा

सुन लो लोकतंत्र का नया मंत्र भी आज-

” यथा प्रजा – तथा राजा ” ||

 

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