कविता – उम्र का हिसाब

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कितने बदल चुके हैं

सिकुड़े हुए अंतरिक्ष में

मौन तिलक लगाकर

मेहराब से टूटता कोई पत्थर

कि युगों पुराना अदृश्य हाथ

पसीने से सरोबार होकर

इसी पत्थर में

मेहराब की सर्जना की थी ।

 

पहली बार मुझे लगा

अंतरिक्ष में दिशाहीन आवेश

चेहरे पर आंखें गड़ाये

टूकुर-टूकुर देख रहा है

उन गोद में बसे क्षण को

जहाँ संदिग्ध धड़कन

किसी जीने के साक्षी में

कैसे शीतल छाया में बदल जाते हैं ।

 

समय के वृक्ष में

जहाँ धरती जन रही है नयी संतानों को

और दिन-रात के धूप-छांह में

कदाचित कोई अधुरा गीत

निश्छल धरती की गति से

किसी सुरंग में बदल रहे हों

वहाँ पत्थरों के गीतों से

मेहराब की सर्जना व टूटन

कहां किस मोड़ पर

वन पाखी सा उड़ता फिरेगा

कि सारी उम्र का महुआ

तैरता रह जाए

बत्तखों सा भरे तालाब में ।

मोतीलाल

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मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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