बंद कमरे में वक्त
भूख की आग में
जलती अतड़ियों से
जुर्म करवाता है
अपराधी को थाने
कठघरे वकील
गवाह जज दलील
सत्य उगलवाती गीता
रोती हुई पत्नी सीता
मुंशियों और बाबुओं के रास्ते
फाँसी के फंदे तक पहुंचाता है
धरती का इंसान
आकाश में लटक जाता है
सफेड पोश भगवान
दिन दहाड़े लूटता है
अपनी आंखों की धूल
दूसरे की आंखों में झोंकता है
फिर दिग्विजयी सम्राट की तरह
विश्व भ्रमण करता है
वक्त गुनाह से पूछकर
जांच आयोग बिठाता है
जांच के मुद्दे तय होते हैं
जांच का दायरा
बढ़ता जाता है
और गुनाह अपने आप को
दायरे से बाहर खड़ा पाता है|