कविता

कविता ; छटपटाता आईना – श्यामल सुमन

सच यही कि हर किसी को सच दिखाता आईना

ये भी सच कि सच किसी को कह न पाता आईना

 

रू-ब-रू हो आईने से बात पूछे गर कोई

कौन सुन पाता इसे बस बुदबुदाता आईना

 

जाने अनजाने बुराई आ ही जाती सोच में

आँख तब मिलते तो सचमुच मुँह चिढ़ाता आईना

 

कौन ऐसा आजकल जो अपने भीतर झाँक ले

आईना कमजोर हो तो छटपटाता आईना

 

आईना बनकर सुमन तू आईने को देख ले

सच अगर न कह सका तो टूट जाता आईना