कविता:उस शहर का मौसम कैसे सुहाना लगे

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उस शहर का मौसम कैसे सुहाना लगे,

बारिश समय पर न हो,

उगती फसल बर्बाद होने लगे,

बढ रहे कंकरीट के जंगल वहां,

फिर मौसम क्यों न गर्माने लगे।

बदले जब मौसम तकदीर का,

आंधी आए व आए तूफान,

दीबार तब किस्मत की ढहने लगे।

उस शहर का मौसम कैसे सुहाना लगे।

औरों की तो बात क्या?

अपने भी बेगाने लगे।

जीते हैं लोग पैसे के लिए जहां,

मरने वालों के भले प्राण जाने लगे।

उस शहर का मौसम कैसे सुहाना लगे।

-पन्नालाल शर्मा

5 COMMENTS

  1. यह मानवीय सर्रोकारों को शब्दों में अभ्व्यक्त करने की ओर का आगाज है .बधाई .

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