कविता : चलो अरुंधती राय बन जाएँ

-शिखा वार्ष्‍णेय

भूखे नंगों का देश है भारत, खोखली महाशक्ति है , कश्मीर से अलग हो जाना चाहिए उसे .और भी ना जाने क्या क्या विष वमन…पर क्या ये विष वमन अपने ही नागरिक द्वारा भारत के अलावा कोई और देश बर्दाश्त करता ? क्या भारत जैसे लोकतंत्र को गाली देने वाले कहीं भी किसी भी और लोकतंत्र में रहकर उसी को गालियाँ दे पाते?.वाह क्या खूब उपयोग किया जा रहा है अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों का……

हाँ हम काबिल हैं कितने

कुछ इस तरह दिखायें

उसी लोकतंत्र का ले सहारा

गाली उसी को दिए जायें

ले औजार भूखे नंगों का

अंग-अंग देश के चलो काटें

बैठ आलीशान कमरों में

सुलगता मुद्दा कोई उठाएं

अपनी ही व्यवस्था को कर नंगा

पुरस्कार कई फिर पा जायें

हो क्यों ना जाये टुकड़े देश के

अपनी झोली तो हम भर पाएं

उठा सोने की कलम हाथ में

चलो हम अरुंधती राय बन जायें

15 COMMENTS

  1. दो कौड़ी की बनावटी सोंच है आपकी, मतलब आप बडे अव्वल समझदार लोग हैं और मैन बुकर पुरस्कार जो अरुंधति राय को प्रदान किये हैं वो सब ऐंवी बेवकूफ लोग हैं। गजब पागल लोग हैं या भारत में। भारत हमेशा से अनेकता में एकता वाला देश रहा है ये हम सब को पता है, इसका मतलब ये कत्तई नहीं कि आप लोगो के बारे में न सोंच कर उनके जमीनी मुद्दों पर परदा डालकर बखान करते रहे। फिर संविधान हर एक नागरिक को ये हक देता है कि वो अपनी बात रख सके लोगों के मध्य। इससे देश की छवि खराब नहीं बल्कि जो कमियाँ बची रह गई हैं उन्हें दूर करके सच्ची और अच्छी छवि बनाई जा सके।

    • अरुंधती राय का नवीनतम अतिक्रमण, Crime against humanity: Arundhati Roy slams Modi govt’s handling of COVID in India आपको अपनी टिप्पणी पर पुनः विचार कर पाने का अवसर प्रदान करता है | With the Devine intervention, Modi is a political phenomenon long overdue in a region exploited for centuries by foreign and domestic raiders, thieves, and thugs that was never allowed to be a country even after the so-called independence in 1947 for majority of natives to live as one people one nation. I shudder at the thought of the region without him. He is the savior and the only choice they have. They must help him help themselves. Or else they go into oblivion as the South Asians for rest of the world. आज देश को आपकी भर्त्सना नहीं, आपका सहयोग चाहिए |

  2. भारत में ऐसे लोगों की कमी नही है जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। ऐसे लोगों को सङक पर खङा कर गोली मार दी जाए तो भी कम है। इन लोगो को आईना दिखाने के लिए यह कविता अच्छा प्रयास है।

  3. चलो तिवारी जी ने माना तो सही कि अरुंधति का लक्ष्य चमन (देश) बर्बाद करना है।

  4. एक अरुंधती काफी नहीं है …बर्बाद चमन करने के लिए ….
    दस वीस भी होजाएं तो ….सिर्फ चुहुलबाजी के लिए ..
    भारत एक अजर अमर राष्ट्र है उसे कोई फ़ना नहीं कर सकता …
    जो स्वयम्भू देशभक्ति का ढोंग करें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता …

  5. कविता तो भाव पूर्ण है ही, और, हरपाल जी, और अनिल जी की पंक्तियां भी मुझे बहुत अर्थोचित प्रतीत हुयी। शिखा जी ऐसे ही आप योग दान करती रहें,लिखती रहें। आपके हृदयमें भारत बसा हुआ है, बसा ही रहे।

  6. बोलने की आजादी पर प्रतिबन्ध के बारे में संविधान के अनुच्छेद १९ के उपबंधों को लागू करने के लिए यदि केंद्र सरकार प्रतिबद्ध नहीं दिखती तो कोर्ट में जाया जा सकता है. विशेषकर साधन संपन्न संगठन एवं देशभक्त लोग ऐसा कर सकते है. कम से कम कोर्ट से तुष्टीकरण की कम ही सम्भावना है! संविधान का अनुच्छेद १९ प्रस्तुत है :-

    19. वाक्‌-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण–(1) सभी नागरिकों को–
    (क) वाक्‌-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
    (ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
    (ग) संगम या संघ बनाने का,
    (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,

    1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ”पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के या उसके क्षेत्र में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन उस राज्य के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
    2 संविधान (सतहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
    3 संविधान (पचासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995) से कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
    4 संविधान (इक्यासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतःस्थापित।

    (ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, 1[और
    2 * * * *

    (छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।

    3[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है, वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
    (3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है, वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
    (4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
    (5) उक्त खंड के ५ [उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
    (6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया 6[उक्त उपखंड की कोई बात–
    (i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
    (ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
    जहाँ तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास), ०१४१- २२२२२२५, मो. ०९८२८५-०२६६६

  7. शिखा जी अच्छी कविता लिखी है, सत्य लिखते समय निश्चय ही अनेक लोग आपको विचलित करने का प्रयत्न करेंगे, विशेष तौर पर वे लोग जो समस्त सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं और अभाव ग्रस्त लोगो के लिए झूठी संवेदना का प्रदर्शन करते हैं, यह लोग ही वो लोग हैं जो अपने अपने विचारधारा की बात रखने हेतु पाँच सितारा होटल मे सम्मेलन करते हैं और गरीब की गरीबी पर आँसू बहाते हैं।

    मेरे विचार से भौंकने वाले कुत्ते तो इन पाखण्डियों को कहना अधिक उपयुक्त रहेगा।

  8. kharo se malee man ko bahalaane lage hai, gulshan ke saare fool ab murjhane lage, karn to pashtarhaa hai bhagya par kyonki sikhandi kurukshetra me jane lage hai

  9. भावनाओं के सहारे सिर्फ एक अप्रिय और कटु पर ज्वलंत सत्य का जवाब नहीं दिया जा सकता.

  10. कविता : चलो अरुंधती राय बन जाएँ – by – शिखा वार्ष्‍णेय

    कुते भोंकते रहें
    उन्हें काटने मत दोड़ो

    गीत गायो ऐसा
    कि वतन एक हो जाये

    – अनिल सहगल –

  11. देश किसी की जागीर नहीं होता. देश अरुन्धंती राइ का भी है. संवाद का जबाब संवाद में होना चाहिए एक नए विवाद में नहीं .

  12. प्रिय शिखा, शोभनम. अच्छी चोट है अरुंधती जैसों पर. सतत लेखन हेतु शुभकामनाएं !

  13. बिलकुल सटीक रचना ….हम भारतवासी स्वयं ही अपने देश के प्रति कुछ भी कह देते हैं ….अच्छा व्यंग है ..

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