कविता

कविता ; प्रेम जहाँ बसते दिन-रात – श्यामल सुमन

मेहनत जो करते दिन-रात

वो दुख में रहते दिन-रात

 

सुख देते सबको निज-श्रम से

तिल-तिल कर मरते दिन-रात

 

मिले पथिक को छाया हरदम

पेड़, धूप सहते दिन-रात

 

बाहर से भी अधिक शोर क्यों

भीतर में सुनते दिन-रात

 

दूजे की चर्चा में अक्सर

अपनी ही कहते दिन-रात

 

हृदय वही परिभाषित होता

प्रेम जहाँ बसते दिन-रात

 

मगर चमन का हाल तो देखो

सुमन यहाँ जलते दिन-रात