-ललित गिरी
जब मैनें इस जीवन में किया प्रवेश
पाया तेरे ऑंचल का प्यारा-सा परिवेश
मेरे मृदुल कंठ से निकला पहला स्वर माँ!
पूस की कॅंपी-कॅपी रात में, तूने मुझे बचाया।
भीगे कम्बल में स्वयं सोकर, सूखे में मुझे सुलाया॥
तब भी नहीं निकली तेरी कंठ से, एक भी आह।
क्योंकि तुम्हें थी मेरे चेहरे पर, प्यारी हँसी की चाह॥
तुम ही थी माँ, जिसने चलना सिखाया।
मुझ अबोध बालक को, अक्षर ज्ञान कराया॥
तेरे ही दम पर, भले-बुरे को परखना सीखा।
जीवन में आई विषम परिस्थितियों से, लड़ना सीखा॥
मेरे हदय की हर धड़कन, जुड़ी है तुझसे।
इसीलिए मॉ मेरा, कुछ भी नही छुपा है तुझसे॥
जब भी होता हूँ सुख-दुख में, तुम मुझे याद आती हो।
जब होता हूं उलझन में, तुम ही राह दिखाती हो।
ऐसा लगता है मानो, मेरे सिर पर तुम्हारा ह्यथ है॥
हर घड़ी हर समय हर पल, तुम्हारा ही साथ है।
सागर की गहराई सा, गगन की ऊंचाई सा, तेरा प्यार।
जीवन भर मुझे मिलता रहे, यही है तमन्ना बार-बार॥
प्यारी जीवन दायिनी माँ !
कविता में माँ की ममता भर दी |अति सुंदर रचना में गागर में नदी भर दी|
bahut achhi kavita hai
माँ is my heart.
आपकी की कविता दिल को छु जाती है सच माँ बहुत होती है मै भी अपनी माँ और पापा को बहुत प्यार करता हु इ लव यू मम्मी और पापा जी ……
BAHUT HI KHUBSURAT TARIQE SE MAA KO BAYAN KIYA….LAJAWAB KAWITA HAI…
रेअल्ली अ हाट touching poem
apki ye dil se likhi hui kavita bahoot pyaari hai
aap ne bahat pyara kawita likha hai