कविता

कविता/नई कोंपल

-शालिनी मैथु


नई कोपल हूँ मैं, सब कुछ है नया-नया,

नई उमंग, नई तरंग लेकर हूँ आई.

माँ के स्पर्श से हुई पुलकित,

निर्जीव बोतल में स्नेह देखकर हुई दुखित.

चाहिय मुझे पूर्ण, उचित देखभाल,

तभी तो लूंगी अपने को सँभाल.

हूँ तो मैं नन्ही-मुन्ही ही सी,

पर देख रेख से,

बन जाउंगी वीरांगना लक्ष्मीबाई सी.

हे माँ! करती हूँ, तुम्‍हारा अभिनन्दन,

तुम्हारे आँचल में होती हूँ, आनंदित.

षोडशी बनकर कड़ी हूँ आज यहाँ,

हे माँ! देखरेख से तुम्हारे ही.

करती हूँ! शत -शत नमन…