कविता/नई कोंपल

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-शालिनी मैथु


नई कोपल हूँ मैं, सब कुछ है नया-नया,

नई उमंग, नई तरंग लेकर हूँ आई.

माँ के स्पर्श से हुई पुलकित,

निर्जीव बोतल में स्नेह देखकर हुई दुखित.

चाहिय मुझे पूर्ण, उचित देखभाल,

तभी तो लूंगी अपने को सँभाल.

हूँ तो मैं नन्ही-मुन्ही ही सी,

पर देख रेख से,

बन जाउंगी वीरांगना लक्ष्मीबाई सी.

हे माँ! करती हूँ, तुम्‍हारा अभिनन्दन,

तुम्हारे आँचल में होती हूँ, आनंदित.

षोडशी बनकर कड़ी हूँ आज यहाँ,

हे माँ! देखरेख से तुम्हारे ही.

करती हूँ! शत -शत नमन…

9 COMMENTS

  1. बुलंदी

    मुश्किलों को साथ लेकर जो नहीं चल पायेगा
    इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ?

    हो बिमारी या पलायन या हो बिपदा की घडी
    कष्ट पर हो कष्ट या फिर आपदा हो आ पड़ी
    आग पर चलना पड़े या पर्वतों की श्रृंखला
    सामने हो शेर या फिर मौत हो आकर खड़ी
    वक्त आने पर नहीं जो आत्मबल दिखलाएगा
    इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||

    क्यों हमारी राह में बस फूल हीं खिलते रहें ?
    क्यों नहीं आगे बढ़ें हम शूल का स्वागत करें ?
    क्यों कभी कमजोर बन कर मांगते हैं हम दुआ?
    क्यों नहीं खुद हीं डगर पतवार भी बनते चलें ?
    राह हो दुर्गम मगर जो चलने से घबराएगा
    इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||

    सफल होना चाहते तो गरल भी स्वीकार कर
    उन्नति जो चाहते तो कष्ट अंगीकार कर
    जिंदगी जीना जो चाहो हर कदम मरते चलो
    मुश्किलों के सामने तुम शीश को नीचा न कर
    नाज जो निज कर्म पर हो राह बनता जाएगा
    हर जमाने में बुलंदी पर वही रह पायेगा ||

  2. शब्दों में या टाईपिन्ग में गलती हो सकती है किंतु आपकी कविता के भाव मर्मस्पर्शी है.प्रयास करते रहिये.

  3. षोडशी वनकर कड़ी हूँ ? spasht karen .
    sirf veerangnaa jhaansi की raani laxmi bai hi kyo ? kya marna maarnaa hi sochtee ho .jeejaabai kyo nahi की ek swabhimaani maataa ke roop men .chhatrpati ajey shiva ji की maataa ke roop men yugo yugo tk vandit ho .aapki kavita ka kathy aspasht hai .badhai .

  4. शालिनी मैथु जी
    पंक्ती
    ” निर्जीव बोतल में स्नेह देखकर हुई दुखित ”
    का आशय समझ नहीं आया.

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