कविता

कविता / आ अब लौट चलें …….

अगम रास्ता-रात अँधेरी, आ अब लौट चलें.

सहज स्वरूप पै परत मोह कि, तृष्णा मूंग दले.

जिस पथ बाजे मन-रण-भेरी, शोषण बाण चलें.

नहीं तहां शांति समता अनुशासन ,स्वारथ गगन जले.

विपथ्गमन कर जीवन बीता, अब क्या हाथ मले.

कपटी क्रूर कुचली घेरे, मत जा सांझ ढले.

अगम रास्ता रात घनेरी आ अब लौट चलें.

कदाचित आये प्रलय तो रोकने का दम भी है.

हो रहा सत्य भी नीलाम, महफ़िल में हम भी हैं.

जख्म गैरों ने दिए तो इतराज कम भी हैं.

अपने भी हो गए बधिक जिसका रंजो गम भी है.

हो गईं राहेंभी खूंखार डूबती नैया मझधार.

मत कर हाहाकार, करुण क्रंदन चीत्कार.

सुबह का भूला न भूला गर लौटे सांझ ढले.

अगम रास्ता रात अँधेरी, आ अब लौट चलें….

– श्रीराम तिवारी