पप्पु यादव की गिरफ्तारी के सियासी मायने

  • मुरली मनोहर श्रीवास्तव
    कोरोना काल हो या फिर पानी में डूबा पटना, सबके लिए एक पैर पर खड़े रहने वाले, सबको जरुरत की चीज उनके मकाम तक पहुंचाने वाले, बच्चों के लिए दूध का इंतजाम करने वाले, कोरोना महामारी में पीड़ितों के लिए, जरुरतमंदों के लिए खाना पहुंचाने वाले जननेता के रुप में उभरकर सामने आए हैं जाप नेता पप्पू यादव। जिस महामारी में कोई नेता अपने जनप्रतिनिधि होने का दायित्व नहीं निभा रहे हैं अगर उस परिस्थिति में पप्पु यादव असहायों के मसीहा बनकर आए हैं तो इससे घबराने की क्या जरुरत है। इससे तो जनप्रितिनिधियों को सबक लेनी चाहिए कि उनका जो दायित्व है वो उसका कितना निर्वहन कर रहे हैं।
    अचानक से पप्पु यादव को पुलिस बिना पास घुमने को लेकर गिरफ्तार कर लेती है। रातोरात उन्हें पटना से तड़ीपार कर सुपौल पहुंचा दिया जाता है। उनके लिए देर रात कोर्ट को खोलकर 32 साल पुराने मामले में उन पर सुनवाई करते हुए उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है। इसका बिहार की सत्तारुढ़ दल की सहयोगी दलों में भाजपा, हम और वीआईपी पार्टी ने विरोध जताया और कहा ये नहीं होना चाहिए था। फिर भी ऐसा हुआ, इस गिरफ्तारी के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है।
    भूख हड़ताल पर पप्पु
    14 दिनों के न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद सुबह होते ही पूर्व सांसद पप्पु यादव ने जेल में असुविधा होने को लेकर भूख हड़ताल शुरु कर दिया है। जाहिर सी बात है कि पप्पु यादव एक जनप्रतिनिधि हैं। भले ही इस बार वो सदन तक नहीं पहुंच पाए हों, मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि पति-पत्नी दोनों ही सदन के सदस्य रह चुके हैं। पप्पु यादव लोगों के बीच हमेशा बने रहते हैं। लेकिन इनके भूख हड़ताल करने के बाद सुविधाएं भले ही बढ़ जाएं, मगर इस गिरफ्तारी के पीछे के सच से विरोधियों की चाल उन्हीं के लिए बेड़ी बनती जा रही है।
  • विपक्ष का विरोधी स्वर
    कल तक पप्पु यादव की गिरफ्तारी को लेकर विपक्ष और पक्ष दोनों ही नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलने लगे थे। मगर नीतीश कुमार ने विऱोधियों के बयान को अनसूना कर कोरोना महामारी में लोगों की सुविधाओं पर खुद का ध्यान टिकाए हुए हैं। पर, चौंकिए मत जनाब नीतीश की चुप्पी से खफा विपक्षी दल राजद के पांव ही उखड़ गए हैं और वो सोच में पड़ गई है कि आखिर नीतीश की ये कौन सी चाल है। कल तक पप्पु के साथ होने का दावा करने वाले तेजस्वी अब नीतीश और पप्पु की मिलीभगत बता रहे हैं। अब राजनीति है इसमें कुछ भी हो सकता है। कौन क्या सोचता है, कौन क्या करता है और किसके क्या नतीजे निकलते हैं ये तो चाल चलने वाला ही जाने।
    बिहार की सियासत में पप्पु प्रकरण को भुनाने की पक्ष-विपक्ष दोनों ने अपने पक्ष में वोट को करने की कोशिश की। लेकिन चाल उल्टी पड़ गई और सत्ता की सियासत के माहिर खिलाड़ी नीतीश की चाल के क्या कहने। उनकी चाल के आगे केंद्रीय राजनेता से लेकर राज्यस्तरीय नेता भी फीके पड़ जा रहे हैं। अगर यकीन नहीं तो इसको समझिए चिराग पासवान विधानसभा चुनाव में नीतीश को मिटाने की बात करते थे। आज की तारीख में वो खुद ही मिट गए हैं, उनका एक विधायक था भी उनको छोड़कर नीतीश की नाव में सवार हो गया है। अब चलते हैं प्रखर विरोधी उपेंद्र कुशवाहा जी की ओर बहुत उड़े जनाब लेकिन ऐसा पर कतर दिया कि पार्टी को विलय कर नीतीश के राजनीतिक टूकड़ों पर पलने लगे हैं। चलते हैं राजद खेमें की ओर तो लालू के लाल ने सोचा की पिता की तरह वो भी करिश्मा दिखाएंगे और सत्ता पर काबिज हो जाएंगे। सीट तो ज्यादा लाने में कामयाब राजद और भाजपा दोनों लायीं मगर मात्र 43 सीटों के साथ नीतीश कुमार सत्तासीन हो गए। अगली कड़ी में पप्पु यादव को पहले बिहार के कोने-कोने में मामलों को उजागर करने दिया और जब सर के ऊपर से पानी बहा तो उन्हें हिरासत में लेकर यादव की राजनीति में पप्पु को चर्चा में लाकर लालू और तेजस्वी की सियासत को एक बार फिर फीका कर दिया है। इसीलिए कहा जाता है कि बिहार की राजनीति में नीतीश के शतरंजी चाल को समझने के लिए सोच समझकर कदम बढ़ाना होगा। वरना अपने समकक्ष नेताओं को धूल चटाया ही अब युवा नेताओं को भी लगातार मात दे रहे हैं। अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आखिर राजद के आरोप और पप्पु की गिरफ्तारी के क्या हैं मायने, इसको समझ पाना थोड़ा कठिन प्रतीत होता है।

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