सत्ता मनमानी करे, दुखी प्रजाजन रोय! तो कुर्सी भी इंद्र की, डगमग-डगमग होय।

-श्रीराम तिवारी-
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इससे पहले कि ‘हम भारत के जन-गण’- इस चुनावी जीत के आकर्षक- वोटलुभावन नारों के ३५ पेजीय पुलन्दे को ठीक से पढ़ सकें जो कि भाजपा द्वारा सम्पादित, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रचित, महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी महोदय द्वारा संसद के ‘संयुक्त अधिवेशन में’ रखा गया। उनके द्वारा अंग्रेजी में पठित तथा महामहिम उपराष्ट्रपति जनाब हामिद अंसारी साहिब द्वारा ‘अटक-अटक’ हिंदी में अनुवादित अभिभाषण से हम अभिभूत हो पाएं कि शैतानी ताकतों ने ‘हम भारत के जन-गण’ का जायका ही खराब कर दिया। मानसून की नकारात्मक भविष्यवाणी से अब चिंता क्यों? बाबा ‘जय सोमनाथ’ हैं! बाबा ‘जय विश्वनाथ’ हैं, राम-लला हैं– वे वर्तमान सरकार के कारण पूरे भारत से नाराज लगते हैं कि कमबख्त मंदिर की बात भूल गए। उल्टे ‘हर-हर मोदी-घर-घर मोदी’! कर रहे हैं। नहीं बजाना मुझे डमरू! यदि बाबा भोलेनाथ डमरू नहीं बजायेंगे तो ‘मानसून’ का क्या होगा ? फिर काहे का ‘१० सूत्र और काहे का ‘भारत निर्माण’! करते रहो संसद में अपने मुख से अपना ही गुणगान! देते रहो कोरे भाषण! करते रहो मरकट आसान! जनता में आपसे सही सवाल पूछने की क्षमता ही नहीं है! इसीलिये इस भयावह चित्रण के वावजूद भी ‘हम भारत के जन-गण’रंचमात्र विचलित नहीं हैं!

दिल्ली सहित पूरे देश में बिजली संकट, दिल्ली-यूपी समेत सम्पूर्ण भारत में हत्या बलात्कार-गैंग रेप की अनवरत घटनाएं, हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी में डूबने से २४ युवा होनहार छात्रों की मौत, पुणे में कट्टरपंथियों द्वारा एक निर्दोष अल्पसंख्यक युवक की नृशंस हत्या ने सारा उत्साह ठंडा कर दिया। खबर है कि मध्य प्रदेश में रोज १३ लड़कियां गायब हो रही हैं, बिहार, तमिलनाडु और बंगाल में बलात्कार पीड़िता को जिन्दा जलाये जाने की जघन्य घटनाएं हो रहीं हैं। इन सबके कारण भी ‘हम भारत के जन-गण’ उतने परेशान नहीं हैं कि निराशा के सागर में डूबने-उतराने लगे। इन अद्यतन अप्रिय घटनाओं को दोहराने का आशय सिर्फ ये है कि ये तो ‘आम बात है’। ये घटनाएं तो इस व्यवस्था का स्थाई भाव हैं। ये तो इस सिस्टम का ‘सार तत्व’ मात्र हैं।

दरअसल ‘हम भारत के जन-गण’ का जायका घोषणावीरों ने बिगाड़ा है, जो विजेताओं द्वारा चुनाव के दौरान बार-बार दुहराया गया है। अब सत्ता प्राप्ति उपरान्त उसी को ‘सिद्धांत सूत्र’ मानकर -सरकारी एजंडा मानकर -मार्फ़त महामहिम संसद में देश के समक्ष रखा जा गया है। राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण का एक वाक्य में सार ये है कि “मोदी सरकार भारत की तकदीर बदलने जा रही है “खुशामदीद! लेकिन सवाल यह है कि यह कौन मंदमति नहीं चाहेगा? कोई ज़रा सी भी अक्ल रखता होगा तो ये जरूर सोचेगा कि ‘हंसना और गाल फुलाना ‘दोनों एक साथ सम्भव कैसे हो गया ?एक तरफ पूंजीपतियों, कार्पोरेटरों और देशी-विदेशी निवेशकों को उनके सुपर मुनाफों के लिए, उनके उत्पादों के दाम बढ़ाने के लिए– पिछले दरवाजे से जुगत भिड़ाई जा रही है. दूसरी ओर देश की आवाम को महंगाई कम करने के सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं। संसद में– गंगा और अन्य नदियां साफ़ करने, रेल-सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के ‘सकारात्मक’ भाषण दिए जा रहे हैं।” भृष्टतम व्यवस्था में यह कैसे सम्भव है ? विशाल लागत की धन राशि कहाँ से आएगी? हो रहा भारत निर्माण” का नारा कहीं, वास्तव में काल्पनिक ‘गुजरात वाइब्रेंट’ जैसा ही तो नहीं है ? मुंगेरीलाल के हसींन सपनों की पूर्ति के लिए पूँजीपतियों की दोस्ती कौन छोड़ने वाला है ? उनसे दोस्ती छोड़ोगे तो अगले चुनाव मेंहवाई यात्राओं के लिए ,बड़ी-बड़ी आम सभाओं के लिए – अडानी-अम्बानी पैसा नहीं देंगे। ‘बिना पैसा सब सून’. एप्स -मीडिया, कार्पोरेट नियंत्रित तमाम तकनीकी सूचना तंत्र -प्रिंट-छप्य-दृश्य और डिजिटल मीडिया -इस समय पूंजीपतियों के हाथ में है. क्या वे अपने हितों की उपेक्षा बर्दास्त कर सकेंगे ? ये काले धन वाले मोदी सरकार को अपनी अँगुलियों पर क्यों नहीं नचाएंगे ? यदि मोदी जी ने पूंजीपतियों से दोस्ती निभाई और धन के आभाव में -जनता से किये वादे पूरे नहीं किये तो यह अवश्य ही चरितार्थ होकर रहेगा कि-
सत्ता मनमानी करे, दुखी प्रजाजन रोय।
तो कुर्सी भी इंद्र की, डगमग-डगमग होय ।।
यानि वापस ‘पुनर्मूषको भव’ भी सम्भव है। २८२ की जगह ‘८२’ भी संभव है। १९८४ में तो भाजपा को मात्र २ से ही संतोष करना पड़ा था। इस दफा -कांग्रेस को ४४ में और वामपंथ को १४ में शर्माना नहीं चाहिए। जहां तक गुजरात वाइब्रेंट, सुशासन या गुड गवर्नेंस की बात है तो विगत २४ घण्टों में गुजरात में जो घटा है वो साबित करने के लिए पर्याप्त है कि वर्तमान चुनावों में ‘संघ परिवार’ द्वारा जिस झूठ को बार-बार परोसा गया वो अब सारे देश को मुंह छिड़ा रहा है। यदि कांग्रेस को विपक्ष के भूमिका निभानी नहीं आती तो चिंता की कोई बात नहीं, भाजपा को भी ‘सत्ता की भूमिका’ निभाना कहां आता है ? जनता खुद ही अपना विकल्प चुन लेगी। बहरहाल तो देश की ताजातरीन बानगी पेश है :-

घटना [१]:- नाबालिग लड़की से बलात्कार करने वाले आरोपी दुष्ट आसाराम के कुकर्मों का सबसे अहम गवाह-वैद्य अमृत प्रजापति की आज गुजरात के राजकोट में मौत हो गई। उन्हें आसाराम के गुंडों ने २३ मई को गोली मार दी थी। यह सारा घटनाक्रम ‘वाइब्रेंट गुजरात’ का है। आसाराम फीलगुड में है। वह अब भी बोलता है की जयराम जी की बोलना पड़ेगा!
घटना [२]- सूरत के पास ताप्ती नदी पर बन रहे बहुउद्देश्यीय निर्माणाधीन विशालकाय पुल का कल उसके शैशवकाल में ही ‘हे राम! हो गया’। यह बताने की जरूरत नहीं कि यह ब्रिज यदि बनकर तैयार हो जाता और कुछ दिन ठीक से चल भी जाता तो श्रेय किसे दिया जाता? ‘नमो-नमो’ का जाप ही होता न! चूंकि अब वह पुल ध्वस्त हो चुका है, इसलिए इसकी जिम्मेदारी किसी इंजीनियर पर, ओवरसियर पर या चौकीदार पर डाल दी जाएगी। बहरहाल, ‘गुजरात चमक रहा है ‘आनंदी बेन आनंद से हैं और ठेकेदार तो- न केवल गुजरात बल्कि पूरे भारत में ‘परमानन्द’ से हैं! क्या यही आदर्श लेकर ‘विकाश’ और’ गुड गवर्नेस’ किया जाएगा ?

घटना [३]- गुजरात की नयी मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने स्वयं ही यह संज्ञान लिया है कि गुजरात में महिलाओं की स्थति बहुत खराब है। वहां कन्या भ्रूण ह्त्या जोरों पर है। लिंगानुपात चरमरा गया है। यह श्रेय किसे दिया जाना चाहिए ? क्या १२ साल के ‘मोदी शासित’ गुजरात में इस बाबत कोई ठोस उपाय या कार्यवाही की गई ? यदि नहीं तो अब सारे देश को स्त्री उत्थान का झुनझुना क्यों पकड़ाया जा रहा है। गुजरात में जब ख़ास महिलाओं की हालत ठीक नहीं तो आम की तो बात ही क्या ?

घटना [४] गुजरात के सौराष्ट्र, कच्छ, कठियाबाढ़ तथा ग्रामीण आंचलों में पानी की हाहाकार मची है, बिजली की तो लोगों ने उम्मीद भी छोड़ दी है। सुदूर देहाती गुजरात की हालत बस्तर से भी खराब है। महिलायें लाइन लगाकर गड्ढों से चुल्लू-चुल्लू पानी भरने में दिन-दिन भर खटती रहती हैं।

घटना [५] जब गुजरात में आज अमूल के कामगार भूखे-प्यासे अपनी मजदूरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो ‘मोदी सरकार के रहते शेष भारत में पूंजीपतियों के अत्याचार से मजदूरों -किसानों के हितों की रक्षा कैसे संभव है?’

घटना [६] मोदी जी ने नवाज शरीफ की मां को तोहफा भेजा, अच्छा काम किया। नवाज शरीफ ने मोदी जी की माताजी को तोहफा भेजा और अच्छा किया। किन्तु प्रधानमंत्री जी ने ट्वीट किया है की ‘नवाज ने उन की मां को साड़ी भेजी’ जबकि चर्चा है कि उन्होंने शाल भेजी है। अब सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि क्या भेजा? महत्वपूर्ण यह है कि आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र- ‘महान भारत’ के प्रधानमंत्री हैं। आप का लिखा ही अब भारत का भाग्य -लेख होगा। यदि आपको महाविजय मिली है, तो आप उसके अनुरूप आचरण कीजिये। चुनावी ढपोरशंख बहुत बजा लिया अब असली बात कीजिये। यदि आप से चूक हुई है तो मान लीजिये। उसमे सुधर कीजिये। यह भी जान लीजिये कि आप लोकतंत्र में आलोचना से परे नहीं हो सकते। देश आप से बड़ा है। आप अनजाने में या जानबूझकर देश से बड़ा होने की कोशिश मत कीजिये! इसमें न माया मिलेंगे और न राम!

3 COMMENTS

  1. श्री राम तिवारी जी ने कुछ ऐसे मुद्दे उठायें हैं,जिन पर विचार करना आवश्यक है.खासकर उनके आलेख में वर्णित छः घटनाओं में से पहले पांच..टिप्पणी कर्ताओं को निष्पक्ष होकर इन पर विचार करने की आवश्यकता है,क्योंकि इन घटनाओं का सम्बन्ध बीते हुए समय और वर्तमान से है.इनके बारे में यह कहना कि अभी नमो सरकार को समय देना चाहिए,हकीकत से आँखे बंद करना है.
    इन घटना क्रमों से विकास की बुनियाद ही हिलती नजर आ रही है,तो इमारत कैसे खड़ी होगी?

  2. देश में कहीं कुछ भी हो उसके लिए मोदी ही जिम्मेदार है , उन राज्यों की राज्य सरकारें तनिक भी नहीं चाहे वह राज्यसूची का विषय ही क्यों न हो दिल जलाओ बेशक जलाओ दिल आपका है लेकिन धीरे धीरे जलाओ सारा काम मोदी एक दिन में ही कर देगा , एक दिन ही नहीं एक घंटे में करना होगा क्योंकि हमने उन्हें पी एम बनाया है बहुत सुन्दर तिवारीजी , साठ साल जनता को बिलकुल भी तकलीफ नहीं थी और अब एक माह भी नहीं हुआ दुखी प्रजा जन रोने लग गए कौन रो रहें है यह सब जानते हैं पांच साल देख तो लीजिये एक रात में ही शादी के परिणाम की क्यों अपेक्षा करे ?

  3. Aap to aise baate kar rahe
    Ho ki jaise aaj hi shadi kare
    Aur turant kal ko baccha bhi
    Chahiye……..
    Sab kuch itni jaldi nahi hota
    Thoda dhiraj to rakho……
    Aur aapka lekh puri tarah se
    pakshpati Hai…..

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