राजनीतिक पारदर्शिता के हिमायती थे जयपाल रेड्डी

विकलांगता के बावजूद राजनीति में सदैव सक्रिय रहे रेड्डी

  • योगेश कुमार गोयल

पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री एस
जयपाल रेड्डी ने हैदराबाद में अंतिम सांस ली। वे कई दिनों से बुखार और निमोनिया जैसी
स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे थे और गत शनिवार को तबीयत ज्यादा बिगड़ जाने पर हैदराबाद
के एआईजी अस्पताल में 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। 16 जनवरी 1942 को
हैदराबाद के महबूबनगर जिले के मदगुल (वर्तमान में तेलंगाना का हिस्सा) में जन्मे सुदीनी
जयपाल रेड्डी एक जुझारू व संघर्षशील नेता थे, जो 1969 से 1984 के बीच आंध्र प्रदेश के
कलवाकुर्ती से चार बार विधायक रहे, पांच बार सांसद चुने गए और दो बार राज्यसभा सदस्य भी
रहे। उन्होंने 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल के मंत्रिमंडल में केन्द्रीय सूचना
और प्रसारण मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला तथा 15वीं लोकसभा में यूपीए सरकार के
मंत्रिमंडल में भी केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री रहे। इसके अलावा अर्थ साइंस मंत्रालय
का प्रभार भी उन्हीं के पास था। 2009 के लोकसभा चुनाव में वे चेवेल्ला लोकसभा सीट से
चुनकर संसद पहुंचे थे। गुजराल सरकार में केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री रहते रेड्डी ने ही
दूरदर्शन और आकाशवाणी को प्रसार भारती बोर्ड के अधीन लाकर इसे एक स्वायत्तशासी निकाय
का दर्जा दिया था। तेलंगाना राज्य के गठन में भी उनकी अहम भूमिका रही।
तेलुगू राजनीति में दिग्गज नेता माने जाते जयपाल रेड्डी ने सक्रिय राजनीति की शुरूआत
कांग्रेस पार्टी के साथ की थी किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को जब
देश में आपातकाल लागू किया था, तब जयपाल रेड्डी उन वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में शामिल थे,
जिन्होंने आपातकाल लागू करने के इंदिरा गांधी के फैसले का पुरजोर विरोध किया था। अंततः

कांग्रेस से त्यागपत्र देकर पार्टी छोड़कर वह 1977 में जनता पार्टी में शामिल हो गए थे और
इंदिरा गांधी के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया था। 1980 में उन्होंने आंध्र प्रदेश की मेडक
लोकसभा क्षेत्र से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा किन्तु जीतने में सफल नहीं हुए लेकिन
उसके बाद भी लंबे अरसे तक उन्होंने कांग्रेस से दूरी बनाई रखी। 1985 से 1987 तक वह जनता
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने रहे। 1990 से 1996 और 1997 से 1998 तक दो बार जनता दल
की ओर से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए तथा 1991 से 1992 तक राज्यसभा में नेता विपक्ष
के पद पर भी विराजमान रहे। 1999 तथा 2004 में वह कांग्रेस के ही टिकट पर सांसद चुने गए
और उससे अगले चुनाव में 2009 में आंध्र प्रदेश के चेवेल्ला संसदीय क्षेत्र से 15वीं लोकसभा में
पहुंचे। अपने बहुत लंबे राजनीतिक जीवन में रेड्डी कई वर्ष तक जनता पार्टी, जनता दल और
कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे।
कांग्रेस से अलग होने के करीब 21 साल बाद 1999 में उनकी कांग्रेस में वापसी हुई और
उसके बाद सत्तासीन हुई यूपीए सरकार के दोनों कार्यकालों में उनके पास महत्वपूर्ण मंत्रालयों का
प्रभार रहा। यूपीए सरकार के पहले कार्यकल में 24 मई 2004 को मनमोहन सरकार में उन्होंने
शहरी विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। इसके अलावा उन्हें कला एवं संस्कृति मंत्रालय का
अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया। 2009 में पुनः सत्तासीन हुई यूपीए के ही अगले कार्यकाल में
उनके पास शहरी विकास मंत्रालय के साथ-साथ पैट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय का भी
अतिरिक्त प्रभार रहा किन्तु 2012 में पैट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री रहते रिलायंस कम्पनी के
साथ उनका विवाद हो गया था, जिसके बाद पैट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय के बजाय उन्हें
विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। दरअसल देश के सबसे बड़े
उद्योगपति मुकेश अम्बानी की कम्पनी रिलायंस इंडस्ट्रीज पर उन्होंने 7000 करोड़ रुपये का
जुर्माना लगाते हुए रिलायंस के शुभचिंतक रहे मंत्रालय के कई अधिकारियों का भी तबादला कर
दिया था। रिलायंस पर की गई इस कड़ी कार्रवाई का कारण था कि रिलायंस द्वारा कृष्णा-
गोदावरी बेसिन में निर्धारित लक्ष्य से कम मात्रा में गैस का उत्पादन किया गया था, जिससे
सरकार को 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। उनके द्वारा की गई इस कड़ी कार्रवाई
के बाद अम्बानी के दबाव में सोनिया गांधी द्वारा उनका मंत्रालय बदल दिया गया और 29
अक्तूबर 2012 से 18 मई 2014 तक वे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी
मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री रहे।
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री रहते उन्होंने वर्ष 2008 में देशभर में मैट्रो परियोजनाओं के
लिए ‘स्टैंडर्ड गेज’ के उपयोग की अनुमति दिलाने में केन्द्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने राज्य सरकारों को मैट्रो परियोजनाओं के क्रियान्वयन में आवश्यक स्वतंत्रता देने की भी
हिमायत की थी तथा हैदराबाद मैट्रो रेल परियोजना का भी उस वक्त पुरजोर समर्थन किया था,
जब परियोजना के खिलाफ विभिन्न समूहों द्वारा कई विवादास्पद मुद्दे उठाए गए थे। मैट्रो रेल
नीति पर बने मंत्री समूह (जीओएम) के सदस्य के रूप में जयपाल रेड्डी ने 2008 में भारतीय
रेलवे की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए मैट्रो रेल परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए
राज्य सरकारों को आवश्यक स्वतंत्रता दिलाने की खातिर हैदराबाद मैट्रो रेल परियोजना तर्कों को
स्वीकार करते हुए उनका समर्थन किया था।
आंध्र प्रदेश की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से एमए तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् उनका
विवाह 7 मई 1960 को सक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हुआ था, जिनसे उनके एक बेटी और दो बेटे
हैं। सक्रिय राजनीति में शामिल होने के पश्चात् जयपाल रेड्डी ने पहला विधानसभा चुनाव 1969
में आंध्र प्रदेश की कलवांकुर्ती विधानसभा सीट से जीता। उनकी क्षेत्र की राजनीति पर मजबूत
पकड़ और लोकप्रियता अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसी सीट से वे चार बार
विधायक चुने गए। 1984 तथा 1998 के लोकसभा चुनाव में वह महबूबनगर संसदीय क्षेत्र से
निर्वाचित हुए। 1997 से 1998 तक वो प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल की सरकार में सूचना एवम्
प्रसारण मंत्री रहे। 2004 का चुनाव उन्होंने मिर्यलागुदा संसदीय क्षेत्र से और 2009 का चुनाव
चेवेल्ला संसदीय क्षेत्र से जीता। 2014 का चुनाव महबूबनगर संसदीय क्षेत्र से लड़ा किन्तु हार गए
थे और इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था।
जयपाल रेड्डी जब 18 माह के थे, तभी उनका पैर पोलियो से ग्रस्त हो गया था, जिस
वजह से उन्हें बैसाखी के सहारे चलना पड़ता था लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने जीवन में
अपनी इस विकलांगता को कभी आड़े नहीं आने दिया। शारीरिक विकलांगता के बावजूद उनकी
राजनीतिक सक्रियता में कभी कमी देखने को नहीं मिली। वाकपटुता के लिए जाने जाते रहे
जयपाल रेड्डी ने संसद और विधानसभा में अपना अलग मुकाम बनाया था। राजनीतिक
पारदर्शिता के हिमायती रहने के चलते ही जयपाल रेड्डी न कभी सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों
में शामिल रहे और न ही मनमोहन सिंह के। हालांकि विरोधी दलों के नेता भी एक विचारशील
नेता और उत्कृष्ट सांसद के रूप में सदा उनका सम्मान करते थे। देश की अनेक राजनीतिक
हस्तियों ने रेड्डी के निधन पर दुख जताते हुए कहा है कि जयपाल रेड्डी को एक केन्द्रीय मंत्री
तथा सांसद के रूप में उनकी सेवाओं के लिए सदैव याद किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि जयपाल रेड्डी का स्पष्टवादी वक्ता और
प्रभावी प्रशासक के रूप में सम्मान किया जाता था। राजनीति में सक्रिय भूमिका और उनके

बेहतरीन कार्यों के लिए ही उन्हें 1998 में संसद द्वारा श्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से सम्मानित भी
किया गया था।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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