वेलेन्टाइन डे का राजनीतिकरण : संस्कृति का अपमान

दोस्तों…………….सही रुढ़िवादी होने के नाते मै वेलेन्टाइन डे को प्यार के किसी ख़ास दिन के रूप में न तो जानता था और नाही जानने की कोई ख्वाहिस रखता हूँ। मेरे मतानुसार “प्यार” शब्द किसी एक पर्व या तारीख का मोहताज़ नहीं है। प्यार के महत्त्व को दिन और तारीख के दायरे में समेटना सूरज को दीपक दिखाने जैसा ही प्रतीत होता है। जहां तक मेरे ज्ञानचक्षु जाते हैं वहां तक मै यही पाता हूँ कि “हमारी भारतीय संस्कृति में जितने भी दिवस मनाये जातें हैं, वो सभी प्यार की अनोखी मिसाल ही प्रस्तुत करतें है और प्यार मुहब्बत से सराबोर ही होतें हैं।

शायद इसी वज़ह से मेरे लिए यह नया या यूँ कहें तो आधुनिक पर्व कोई मायने नहीं रखता। खैर इसका मतलब यह भी नहीं कि मै उन लोगों का विरोध करता हूँ जो इस दिवस को सालों साल अपने जेहन में रखते हैं और इसे खुशियों के एक ख़ास दिन में तब्दील करतें हैं। पिछले कुछ सालों से मेरा ध्यान इसलिए वेलेन्टाइन डे की तरफ आकर्षित रहा है क्योंकि इसका इंतज़ार जिस बेसब्री के साथ इसके अनुयायियों को होता है उससे कहीं ज्यादा बेसब्री उन लोगों में होती है जो इसके धुर विरोधी हैं। शायद आप समझ गए होंगे मै किनकी बात कर रहा हूँ …………..! वेलेन्टाइन डे के समर्थकों की इसमे दिलचस्पी तो स्वाभाविक है परन्तु उन समाज सुधारकों कि दिलचस्पी गले नहीं उतरती जो हर साल संस्कृति एवं परम्परा के नाम पर वेलेन्टाइन डे के खिलाफ तरह तरह के फरमान सुनाते रहतें हैं एवं इसके विरोध के गैरकानूनी एवं असामाजिक तौर-तरीके अपनाते रहे हैं। मै पिछले कई सालों से यह देखता आ रहा हूँ कि वेलेन्टाइन डे आते ही कुछ संगठन इसके विरोध में कुछ इस तरह खड़े हो जातें है जैसे समाज एवं संस्कृति को दिग्भ्रमित होने से बचाने का सारा दायित्व उन्ही के कन्धों पर है और उन्हें इस कार्य को करने कि पूर्ण स्वच्छंदता प्राप्त हो गयी है। इस दिवस को राजनीतिक रंग देकर अपनी निम्न स्तर की राजनीति चमकाने कि कोशिशें उन तमाम संगठनो द्वारा की जाती रही है जिनका खुद का चरित्र ही गाहे-बगाहे सवालों के घेरे में नज़र आता रहा है! मै यह विश्लेषण नहीं करना चाहता कि यह पश्चिमी देशों या पश्चिमी सभ्यता से आया नया दिवस, हमारी संस्कृति एवं सभ्यता पर कैसा प्रभाव डाल रहा है, क्योंकि यह प्रश्न अभी उतना बड़ा नहीं है जितना कि ओछी राजनीति करने वाले वेलेन्टाइन डे इन विरोधियों की कार्य प्रणाली एवं विरोध के तौर तरीके हैं। मेरे मत में प्यार करना या एक साथ पार्कों में घूमना कोई अपराधिक प्रवृति नहीं और अगर है भी उतना बड़ा अपराध नहीं जितना कि क़ानून को हाथ में लेकर गैर-कानूनी हथकंडे अख्तियार करना। अगर इतिहास के पन्नों के खंगालने कि कोशिश करें तो प्यार, मुहब्बत के सबसे ज्यादा उदाहरण एवं तथ्य इसी संस्कृति में देखने को मिलेंगे, जिसकी सुरक्षा की चिंता उन संस्कृति के ठेकेदारों को है जो क़ानून को ताक पर रख कर पता नहीं किस कर्तव्य का निर्वहन कर रहें हैं।

मेरा मतलब किसी का पक्ष लेना या किसी का विरोध करना नहीं है। मेरा मुख्य उद्देश्य वेलेन्टाइन डे के हो रहे राजनीतिकरण को बताना है। बड़ा आश्चर्य होता है यह देख कर कि आज ऐसा समय भी आ गया कि प्यार, मुहब्बत, खुशी जैसी व्यक्तिगत एवं सामाजिक शब्दों का भी इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में किया जाने लगा है। जो लोग सांस्कृतिक सुरक्षा कि गारंटी ले रखे हैं उनसे मै सिर्फ एक बात कहना चाहूँगा कि वो एक बार सांस्कृतिक महत्त्व की किताबें पढ़ें और राष्ट्रहित में संविधान की भूमिका का भी अध्यन करें। अगर इसके बाद भी विरोध के स्वर बुलंद हों तो विरोध के सामाजिक तौर-तरीकों का ख़ास अध्यन करें क्योंकि उनके द्वारा जो विरोध के तरीके अपनाए जाते हैं वो इस संस्कृति के प्रतिकूल हैं। साथ ही मै वेलेन्टाइन डे के समर्थकों से भी यह कहना चाहूँगा कि आप प्यार करें, खुशियाँ बाटें, अपने प्यार को अमरता प्रदान करें लेकिन हमारी संस्कृति में निर्धारित प्यार के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को लांघने कि चेष्टा न करें। अगर आप आपके प्यार में आपकी संस्कृति की सुन्दर झलक नज़र आयी तभी आपका प्यार सफल एवं दूरगामी है वरना आप में और आपके विरोधियों में कोई अंतर नहीं नहीं रह जाएगा, दोनों ही राष्ट्र के लिए खतरनाक होंगे। बस आप प्यार करने के लिए लड़ेंगे और वो रोकने के लिए ……तो फिर प्यार कौन करेगा ?

– शिवानन्द द्विवेदी “सहर”

8 COMMENTS

  1. सभी लोगों को स्नेह के लिए धन्यवाद ………………….

  2. यह एक विडंबना ही है कि हम पाश्च्यात संस्कृति की अच्छी बातें ग्रहण नहीं करते वरन इस प्रकार के आडंबर ओढ़ लेते हैं. इस अप-संस्कृति का विरोध तो होना ही चाहिये,विरोध कैसे, किस ढंग से हो, यह विचारणीय है.

  3. बहुत अच्छा लिखा है शिवा…सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं है और ना ही किसी एक के समर्थन में लिखा गया लेख है…
    आज हमारे यहाँ जो कुछ भी होता है सब या तो किसी के पक्ष में होता है या किसी के विपक्ष में ..ऐसे में इतने संवेदनशील मुद्दे पर बिना किसी आग्रह के लिखना और इतना सटीक लिखना…बहुत अच्छा लगा पढ़कर….
    एक बात और कहना चाहूँगी कि साधारण से 24 घंटे के एक दिन को जिसे प्रेमियों को समर्पित किया गया है एक संवेदनशील मुद्दा बना देना हमारे यहाँ के ही राजनीतिज्ञों के बस में है, व्यक्तिगत जीवन में झाँकना तो हमारा सबसे प्रिय शगल बन गया है….
    प्यार जैसे बेहद निजी और कोमल भावना को भी हम अपने प्रचार का एक हिंसक माध्यम बना लें..इससे बदतर स्थिति और नहीं हो सकती….अफसोस हम इसी स्थिति में जी रहे हैं और धीरे-धीरे शायद इसी के आदी होते जा रहे हैं..

  4. बड़ा सार्थक और संवेदनापूर्ण लेखन है आपका. कुछ उपयोगी जानकारी सादर संप्रेषित है, आशा है की पसंद करेंगे.
    ‘ वेलेंतैन डे ‘ का सच , लेख पर नज़र डालने की कृपा करें. धन्यवाद .

  5. TIWARI JEE
    YOU HAVE WRITTEN CORRECTLY THAT OUR FESTIVALS ARE BETTER THAN VALENTINE DAY CELEBRATIONS BUT IT IS VERY LATE BECAUSE WE ARE RESPONSIBLE FOR THAT AS WE ARE SENDING OUR CHILDRENS TO CONVENT AND ENGLISH MEDIUM SCHOOLS SO AISI HONA HI THA
    THANKS
    ANIL REJA, MUMBAI

  6. रेस्पेक्टेद तेवरी जी
    वे दो नोट हते सलेब्रतिओं ऑफ़ वलेंतिने डे बेकाउसे वे अरे रेस्पोंसीबले फॉर ठाट अस वे अरे सेंडिंग ओउर सेंडिंग ओउर चिल्ड्रेन्स इन कॉन्वेंट एंड इंग्लिश मीडियम स्कूल सो वे हवे तो एक्सेप्ट थिस फक्त एंड बार थे चंगे एंड बे हैप्पी . थिस व्हंगे ऑफ़ culture from englishmen तो india is very effectively endorsed by new generation. love matters is नोट थे thing ऑफ़ show off business but it is purest gift ऑफ़ God एंड indian culture is being tarnished by celebrating such functions . तेवरी जी you अरे right ठाट ओउर festivals अरे real वलेंतिने days
    thanks
    anil reja
    mumbai

  7. वाह तिवारी जी बहुत बढिया लिखा है आपके इस लेख राष्‍ट़ के प्रति पेम और मानव जाति के प्रति प्रेम दोनो पूर्ण रूप से दिखाई पड़ रहा है
    आपने किसे लक्ष्‍य बनाया है और किसे प्रेमपूर्वक समझाने की कोशिश की है वो तो यह सब जानते हुए भी ऐसा करते हैं मानो भारतीय संस्‍कृति उन्‍हीं के द्वारा फल फुल रही है
    आशा है इसी प्रकार लिखते रहेंगे

  8. आपके लेख में सार्थकता है ……………. आपने सही प्रश्न उठाया है उन लोगों से जो झूठी राजनीति को बढ़ावा de रहें हैं ………….

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