राजनीति

राजनीति मनोरंजन का नहीं मार्गदर्शन का विषय

राकेश कुमार आर्य

2019 अंग्रेजी वर्ष प्रारंभ हो गया है। भारत के संदर्भ में इस वर्ष की कुछ विशेषताएं हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि इस वर्ष में भारत की लोकसभा के आम चुनाव होने हैं । लोकसभा चुनाव से पहले भारत की राजनीति का जो परिदृश्य बनता दीख रहा है ,उस पर यदि दृष्टिपात करें तो इस समय भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए सब कुछ अनुकूल नहीं है। इस समय राजनीति में बड़ी तेजी से ध्रुवीकरण की प्रक्रिया आरंभ हो रही है। जिसे विपक्ष महागठबंधन कह रहा है तो भाजपा की ओर से इसे ‘ महाठगबंधन ‘ की संज्ञा दी जा रही है। इस समय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसकों की मानें तो सब कुछ श्री मोदी के पक्ष में है और छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश ,राजस्थान के चुनाव परिणामों से उनकी लोकप्रियता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है । प्रधानमंत्री के समर्थक आश्वस्त हैं कि 2019 में श्री मोदी पुनः सरकार बनाने जा रहे हैं ।
लोगों का कहना यह भी है कि तीन राज्यों में अपनी सरकार बनाने के उपरांत भी कांग्रेस को लोकसभा के चुनावों में कोई विशेष लाभ होने वाला नहीं है। इसी प्रकार जो लोग राहुल गांधी के प्रशंसक हैं , उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव परिणामों ने सब कुछ बदल कर रख दिया है । उनका कहना है कि जनता ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी की लोकप्रियता इस समय समाप्त हो चुकी है और 2019 के लोकसभा के चुनावों के पश्चात कांग्रेस केंद्र में सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के समर्थकों ने कुछ ऐसा बोलना आरंभ कर दिया है कि इस बार अवश्य ही राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं । जबकि श्री मोदी के समर्थक अभी भी पूर्णतया संतुष्ट और आशावादी हैं कि 2019 का वर्ष भी 2014 की भांति ही प्रधानमंत्री श्री मोदी के नाम ही रहने वाला है । अब इसमें सच क्या है ? – इस पर थोड़ा विचार किया जाना अपेक्षित है।
परिस्थितियों पर यदि थोड़ा गंभीरता से चिंतन किया जाए तो छत्तीसगढ़ , राजस्थान और मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने इतना भारी और स्पष्ट जनादेश नहीं दिया है कि देश के सभी मतदाताओं की भावनाओं को इन चुनाव परिणामों से समझा जा सके । हमें याद रखना चाहिए कि मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव के साथ ही मिजोरम और तेलंगाना विधानसभाओं के चुनाव भी हुए हैं ,जिनमें कांग्रेस बुरी तरह से हारी है। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है , और बीजेपी वहां बुरी तरह से हारी नहीं है ।
हम भारतीयों की एक विशेषता है कि जब किसी के पक्ष में थोड़ा सा कहीं विपरीत माहौल बनता है या विपरीत माहौल बनने की हमें भ्रांति होती है तो हम उसे द्विगुणित कर देते हैं और जिसके पक्ष में थोड़ा सा पलड़ा का झुकाव बनता दीखता है , उधर को अधिक शोर मचाने लगते हैं । माना जा सकता है कि इस समय प्रधानमंत्री श्री मोदी की लोकप्रियता में थोड़ा सा ठहराव है। इस ठहराव को विपक्षियों ने उनके प्रति बने नकारात्मक परिवेश का नाम दे दिया है, जबकि ऐसा नहीं है । यह ठहराव की स्थिति भी भाजपा के कारण है , प्रधानमंत्री श्री मोदी के कारण नहीं । अभी भी प्रधानमंत्री श्री मोदी लोकप्रियता में सबसे आगे हैं । राहुल गांधी उनसे अभी कई सीढ़ी पीछे हैं । राहुल के प्रति लोगों में अभी विश्वास नहीं है और अभी नहीं कहा जा सकता कि श्री गांधी के लिए दिल्ली दूर नहीं रही है । उनसे लोग अभी जुड़े नहीं हैं और प्रधानमंत्री श्री मोदी से लोग अभी हटे नहीं हैं। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री से लोगों की शिकायतें बढ़ी हैं , परंतु कई बार शिकायतों का बढ़ना भी किसी के प्रति नकारात्मक हो जाना नहीं माना जा सकता । लोग अभी भी प्रधानमंत्री श्री मोदी को एक अवसर देना चाहते हैं , क्योंकि पिछले साढे 4 वर्षों में जिस प्रकार लोगों ने देखा है कि देश में न तो यूपीए सरकार की अपेक्षा बड़ी संख्या में सांप्रदायिक दंगे हुए हैं और न ही आतंकी घटनाएं हुई हैं । नित्य प्रति के होने वाले बम विस्फोट और सांप्रदायिक दंगों के कारण किसी ना किसी शहर में कर्फ्यू के चलते रहने के समाचार अब बीते दिनों की बात हो चुके हैं । इस क्षेत्र में लोग अनुभव कर रहे हैं कि देश में ‘अच्छे दिन ‘ आए हैं । लोगों को देश की सीमाओं पर अपने सुरक्षा प्रहरियों की सुरक्षा को लेकर भी विश्वास बढ़ा है कि अब वह पहले से कहीं अधिक सुरक्षित और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं । लोग यह अनुभव कर रहे हैं कि यूपीए सरकार के समय न केवल सीमाएं असुरक्षित थीं , अपितु हमारे सैनिक भी असुरक्षित थे । क्योंकि उनके पास आधुनिकतम अस्त्र – शस्त्र नहीं थे । इसी प्रकार की ‘ अच्छे दिनों ‘ की अच्छी परिस्थितियां अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत के लिए बनी हैं । राहुल गांधी जिस प्रकार का नकारात्मक परिवेश बनाकर पहले से ही खराब राजनीति को और अधिक खराब करने की कोशिशों में जुटे हैं , उससे उनके प्रति लोगों में भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा है। राहुल गांधी ने चुनावों में मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में चाहे सफलता प्राप्त कर ली हो और वहां के किसानों का ऋण माफ करने की ‘ राजाज्ञा ‘भी चाहे जारी करा दी हो ,परंतु यह भी तय है कि किसानों की कर्ज माफी का उनका यह दांव भविष्य में उनके लिए ही उल्टा पड़ेगा । 
कर्ज माफी समस्या का कोई समाधान नहीं है । इससे विसंगतियां और अधिक बढ़ेंगी और उनके परिणाम पूरा देश भोगेगा । यह बात सोचने समझने लायक है कि किसानों की ऋण माफी की कांग्रेस की घोषणा को देख कर अब अन्य वर्ग भी अपनी ऋण माफी की आवाज उठाने लगे हैं । हमें यह सोचना चाहिए कि यदि सभी लोग ऋण माफी के लिए प्रयास करने लगेंगे और सरकारों को सबके ऋण माफ करने की स्थिति में आना पड़ गया तो क्या होगा ? 
राजनीति के बाजार में अकल को चर गई भैंस ।
बुद्धिहीन नेता फिरें , फिजूल में खा रहे तैश ।। 
इस समय एक बात कही जा सकती है कि भाजपा को अपना विमर्श बदलने की आवश्यकता है । पिछले 6 – 7 महीने से या कहिये कि गुजरात और कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा ने अपना विमर्श बदलने की प्रक्रिया को अपनाना भी आरंभ किया है । यह एक शुभ संकेत है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी जीएसटी दरों में कटौती कर लोगों की नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है , साथ ही किसानों को भी सरकार कुछ रियायत देने की घोषणा कर रही है । माना जा सकता है कि भाजपा की यह चुनावी चाल हो सकती है , परंतु गलतियों को अनुभव कर उन पर पुनर्विचार करने की स्थिति में आना भी सकारात्मकता होती है। जहां तक मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए सत्ता परिवर्तन की बात है तो यहां पर हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में यदि भाजपा की सरकार गई है तो मिजोरम से कांग्रेस की सरकार भी चली गई है । जहां तक राजस्थान और मध्य प्रदेश की बात है तो यहां पर अभी भी सुविधा संतुलन प्रधानमंत्री श्री मोदी के पक्ष में है। स्पष्ट बहुमत लेकर कांग्रेस ने सरकार नहीं बनायी है। वह बैसाखियों के सहारे सरकार बना कर चल रही है और अगले लोकसभा चुनावों तक लोगों में उसके प्रति ठहराव की स्थिति आ जाएगी और यह ठहराव की स्थिति ही प्रधानमंत्री श्री मोदी के लिए अनुकूल होगी।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि मिजोरम में 10 वर्ष सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सत्ता से बाहर ही नहीं हुई है ,अपितु वह बुरी तरह हार गई है । यह वैसे ही हुआ है जैसे कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के साथ हुआ है । तेलंगाना में 2014 में कांग्रेस सत्ता में थी , इस बार उसकी अपेक्षा थी कि वह सरकार बनाएगी । यदि इस बार वहां पर कांग्रेस सत्ता में आ गई होती तो कहा जा सकता था कि देश के लोग बदलाव की स्थिति में हैं , और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं । परंतु वहां पर भी कांग्रेस को लोगों ने बुरी तरह नकार दिया है। इसका अभिप्राय है कि राहुल गांधी लोगों को अभी प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में कुछ मद और कुछ प्रमाद के कारण ठहराव और यथास्थितिवाद की स्थिति में फंसी भाजपा को पुन: युवीकरण की आवश्यकता है । जिसके लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को अपने परंपरागत भाषणों से अलग हटकर कुछ नया परोसने पर विचार करना चाहिए। लोग नया चाहते हैं और यह नया चाहना हर व्यक्ति की विशेषता होती है। प्रधानमंत्री श्री मोदी को अतीत में जीते – जीते कांग्रेस पर हमला करते रहने की अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । हम बार – बार इन्हीं बातों को नहीं सुन सकते कि एक परिवार ने देश को इस प्रकार बर्बाद कर दिया , इतने घोटाले हुए , यह हुआ- वह हुआ आदि। अब उन चीजों से कुछ आगे बढ़कर देखने की आवश्यकता है , क्योंकि देश की जनता ने साढ़े 4 वर्ष का समय प्रधानमंत्री श्री मोदी को देकर देख लिया है । बीते हुए कल में क्या हुआ ? – उसे दफन कर आगे बढ़ने की कोशिश प्रधानमंत्री की होनी चाहिए। भाजपा के रणनीतिकारों को यह समझना चाहिए कि आक्रामक होना अलग चीज है और नकारात्मक होना अलग है। आप हमेशा नकारात्मक और आक्रामक बने रहकर अपने विरोधी को परास्त नहीं कर सकते हैं । कहीं नकारात्मकता काम आती है तो कहीं आक्रामकता काम आती है। कहीं दोनों का समन्वय कर के चलना पड़ता है तो कहीं दोनों को भुलाना भी पड़ता है । एक ही प्रकार की नीति और रणनीति को देखते हुए लोग ऊब जाते हैं । वह नीति और रणनीति में भी बदलाव के समर्थक होते हैं , इसलिए भाजपा को अपनी नीति और रणनीति में भी बदलाव करने की आवश्यकता है । साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन करना होगा। यह बहुत ही चिंता का विषय है कि भाजपा के भीतर से ही नितिन गडकरी जैसे नेताओं की कुछ विरोधी बातें उठती हुई दिखाई देने लगी हैं । यद्यपि श्री गडकरी को पार्टी के नेताओं का अधिक समर्थन नहीं मिला है , परंतु वह कुछ ऐसा कह गए हैं जो पार्टी के भीतर की बेचैनी को स्पष्ट करता है । इस बेचैनी पर इस समय लगाम लगाने की आवश्यकता है और यह तभी संभव है जब नीति और रणनीति में अपेक्षित परिवर्तन करने के लिए भाजपा तत्पर हो । भाजपा को जिस प्रकार प्रधानमंत्री श्री मोदी ने आम आदमी की पार्टी बनाने का बड़ा काम कर दिखाया है उस पर आगे काम को जारी रखना समय की आवश्यकता है । कभी इस पार्टी के लिए कहा जाता था कि यह ब्राह्मण , बनिया और शहरी मध्यवर्ग की पार्टी ही है । पर उसे अब जन – जन की पार्टी होने का गौरव प्राप्त हुआ है । भाजपा को ऐसी स्थिति में रोके रखना होगा । यदि इस स्थिति में भाजपा नहीं रुक पाती है , तो 2019 का चुनाव परिणाम उसके प्रतिकूल भी जा सकता है । इसके लिए भाजपा के सभी प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों और नेताओं की आवाज को सुनने के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को स्वयं पहल करनी चाहिए और लोगों को समय देकर उनसे उनके वर्ग के लोगों की समस्याएं पूछनी चाहिए । यह बहुत ही दुखद बात है कि कई पिछड़े वर्ग के नेता अपने प्रधानमंत्री से पिछले 4 – 5 वर्ष में चार – पांच मिनट के लिए भी नहीं मिल पाए हैं । पार्टी के भीतर ही पार्टी के नेताओं से इतनी दूरी बन जाना पार्टी के लिए अच्छी बात नहीं है । पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों के नेता यदि अपने प्रधानमंत्री और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से चार-पांच वर्ष में 4 – 5 मिनट भी नहीं मिल पाए हैं तो यह स्थिति संगठन के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती।
राफेल के मुद्दे को लेकर राहुल गांधी ‘ फेल ‘ हो चुके हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है और इसके उपरांत भी राहुल गांधी चाहे राफेल पर बोल रहे हैं , परंतु देश की जनता राफेल को भूल चुकी है । राहुल गांधी को भी समझना होगा कि अभी भी देश के अधिकांश मतदाताओं की दृष्टि में प्रधानमंत्री श्री मोदी दूध के धुले हुए हैं , इसलिए उन्हें अपनी राजनीति को कुछ ऐसे विशिष्ट मुद्दों पर केंद्रित करना चाहिए जिनसे देश की जनता उनके साथ दिल से जुड़ने को तैयार हो । अभी वे जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं वह उन्हें क्षणिक लाभ पहुंचा सकती हैं परंतु इससे स्थाई लाभ नहीं मिल सकता । इस प्रकार की राजनीति का नुकसान देश झेलता है । देश के राजनीतिक परिवेश पर चिंतन करें तो देश की राजनीति का निरंतर ह्रास हो रहा है। खराब राजनीति और भी खराब होती जा रही है। इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं है ,जबकि राजनीति की दुरावस्था का देश की सेहत पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी दोनों को ही एक दूसरे के प्रति अपनाई जाने वाली भाषा में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता है । प्रधानमंत्री श्री मोदी का राहुल को ‘ कामदार ‘ कहना अब लोगों को जँच नहीं रहा है और राहुल गांधी का प्रधानमंत्री को ‘ चौकीदार चोर है’ – कहना रास नहीं आ रहा है । दोनों ही नेताओं को एक दूसरे के लिए कुछ गंभीर शब्दों का चयन करना चाहिए, जिनसे देश की जनता मनोरंजन न कर दोनों नेताओं से मार्गदर्शन लेने की स्थिति में आ जाए । लोकतंत्र नेताओं के माध्यम से जनता के लिए मनोरंजन का साधन नहीं है , बल्कि मार्गदर्शन का एक उचित माध्यम है । नए वर्ष में होने वाले चुनाव यदि हमें यह संदेश देने में सफल रहे कि अब राजनीति मनोरंजन का नहीं – मार्गदर्शन का विषय हो गई है तो यह सचमुच ही इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी