सिद्धार्थ शंकर गौतम
एक बार फिर राहुल गाँधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधते हुए कहा है कि मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अवनति का कारण संघ का साम्प्रदायिक रवैया ही है| उत्तरप्रदेश चुनाव में येन-केन प्रकरेण सत्ता पर काबिज होने की चाह में “युवराज” अब अपनी हदें पार करते जा रहे हैं| एक युवा जिसे मीडिया और कांग्रेस भावी प्रधानमंत्री ठहराते नहीं थकते, उससे ऐसी ओछी राजनीति की अपेक्षा देश नहीं करता| अपने बयान से राहुल ने अनायास ही केंद्र सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है| राहुल ने संघ विरोधी बयान भले ही मुस्लिम वोट-बैंक को ध्यान में रखकर लिया हो मगर इसकी जितनी तीव्र प्रतिक्रिया मुस्लिम समुदाय से आई है उसने राहुल की रातों की नींद उड़ा दी होगी|
जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख कारी मुहम्मद उस्मान का कहना है कि अगर सांप्रदायिक अधिकारियों या संघ पदाधिकारियों के कारण मुसलमानों के हक मारे जा रहे हैं, तो सवाल यह है कि इतने वर्षों से आप क्या कर रहे थे। आपकी जिम्मेदारी थी कि उन अधिकारियों पर नजर रखते। वहीं मजलिस उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद ने राहुल गांधी के बयान को हास्यास्पद करार देते हुए कहा कि यह बात अजीब लगती है कि कांग्रेस के शासन में संघ परिवार ने मुसलमानों का हक मारा और उनका दुरुपयोग किया है। उनके बयान से लगता है कि संघ ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है। इसका मतलब तो यह हुआ कि मुसलमानों के साथ नाइंसाफी होती रही और कांग्रेस तमाशा देखती रही। इसी तरह मिल्ली काउंसिल के महासचिव डॉ. मंजूर आलम का कहना है कि एक नौजवान और भविष्य का बड़ा लीडर या भावी प्रधानमंत्री इस तरह का बयान देता है तो उसे पहले इस इमेज को बदलना होगा कि बोलो सब कुछ और करो कुछ नहीं। इस बयान पर भरोसा इसलिए करना चाहिए कि दो साल बाद फिर चुनाव होने हैं। अगर वे इस पर खरे नहीं उतरते हैं, तो फिर मुसलमान विकल्प तलाश करेगा। मुस्लिम समुदाय के लगभग सभी बड़े धर्मगुरुओं तथा उलेमाओं की भी यही राय है|
मुस्लिमों के इतने आक्रामक जवाबों से राहुल गाँधी को यह समझ तो आ गया होगा कि मात्र संघ को गरियाने या मुस्लिमों को उसका छदम भय दिखाकर अब तो वोट-बैंक की राजनीति नहीं की जा सकती| पूरा देश यह समझ चुका है कि संघ जैसे सामाजिक संगठन को बदनाम कर कांग्रेस हमेशा ही मुस्लिमों को बरगलाने में कामयाब रही है मगर अब परिदृश्य बदला हुआ है| मुस्लिम भी संघ का खुलेआम समर्थन करने लगे हैं| शायद कांग्रेस “युवराज” को यह दिखाने वाला पार्टी में कोई नेता नहीं है| दिग्विजय सिंह की शिष्यता राहुल गाँधी के दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी हो गई है कि हर बड़ी घटना या चुनाव के वक़्त उनके मुंह से संघ का ही नाम निकलता है| क्या राहुल गाँधी यह भी भूल गए कि स्व. पं. जवाहरलाल नेहरु ने संघ की देशभक्ति से प्रभावित होकर ही सार्वजनिक रूप से संघ की प्रशंसा की थी और २६ जनवरी १९६३ को गणतंत्र दिवस की परेड में सलामी भी ली थी| राहुल को एक बार संघ और उसके सामजिक कार्यों के बारे में इतिहास ज़रूर पड़ना चाहिए वरना ऐसी असुविधाजनक स्थिति का उन्हें कई बार सामना करना पड़ सकता है|
यदि कांग्रेस या उसके नीति-नियंताओं को वर्तमान में संघ इतना ही साम्प्रदायिक लगता है तो अब तक उसपर कोई प्रतिबंधात्मक कार्रवाई क्यूँ नहीं की गई? कांग्रेस की संघ को गरियाने की नीति देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि यदि संघ पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई हुई तो फिर कांग्रेस के पास अल्पसंख्यक वोट हथियाने का कोई जरिया नहीं बचेगा| यानी संघ के नाम को साम्प्रदायिक साबित करना और पूरी ताकत से अल्पसंख्यक वोट हथियाना ही कांग्रेस की राजनीति बन चुका है| “युवराज” के लिए सभी जनहित के मुद्दे गौण हो चुके हैं, बस संघ का चरित्र एवं साम्प्रदायिक चेहरा ही राष्ट्रीय भय बन गया है| पता नहीं कांग्रेस और राहुल कब तक संघ का भय दिखाकर मुस्लिमों को छलेंगे और कब तक देश में इस तरह की साम्प्रदायिक राजनीति चलेगी? अब तो देश की जनता को चेत जाना चाहिए|
हमारे कुछ मुस्लिम बंधू राहुल से कुछ पूछना चाह रहे है | वो शायद ये नहीं जानते की ये रिकार्डिड सी डी है ये बहस नहीं करती ,चर्चा नहीं ,जवाब नहीं देती | ये सिर्फ भोकती है | ये संसद में तो बोलती भी नहीं है | क्योंकि वहाँ बोलने का मतलब जवाब देही है |
सीधी और सपाट बात कही है आपने.
इस देश की राजनीति में ‘संघ’ को गाली देकर कईयों ने अपनी दुकाने चलाई हैं.
लेकिन लोग धीरे-धीरे संघ को जानने लगे हैं. और संघ विरोधियों की कलाई भी खुल रही है.
खुद को महान सेकुलर या मुसलमानों-ईसाइयों का मसीहा साबित करने का सबसे आसान तरीका है संघ को जी भर के गालिया दो. एक बार आप सेकुलर सिद्ध हो गए तो फिर वारे-न्यारे हैं. आप हर सवाल से ऊपर हैं. आपके सात खून माफ़ हैं.
आप सही कह रहे है
0 न इधर उधर की बात कर यह बता क़ाफिला क्यों लुटा,
मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।