प्रभाष जोशी के जन्म दिन (15 जुलाई) पर विशेष

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-संजय कुमार

जिनकी ओर प्रभाष जोशी आगाह करते रहे उन खतरों का परिणाम आज साफ नजर आ रहा है यही नहीं वे चिंताएं आज भी बरकरार हैं। पिछले लोकसभा और कुछ विधानसभा चुनाव के दौरान पैसे लेकर खबर छापने से मीडिया में जो हलचल पैदा हुई थी। उसे सामने लाने में जाने माने पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी की भूमिका अहम रही थी। स्व. जोशी जी ने मीडिया के अंदर उपजे इस सोच के खिलाफ जब देश भर में मुहिम चला कर मीडिया की पोल खोलनी शुरू की थी, तो केवल मीडिया के अंदर ही भूचाल नहीं बल्कि मीडिया से जुडे आमखास लोग भी सकते में आ गय थे। पत्रकारों के बीच बहस भी छिड़ गयी थी। कोई पक्ष में तो कोई विरोध में खड़ा हो गया था।

यों तो प्रभाष जी लेखनी के लिए विख्यात रहे हैं खासकर क्रिकेट पर जब वे लिखते थे तो उनका एक खास अंदाज रहता था। लेखन के साथ-साथ मीडिया के ही खिलाफ लोगों को गोलबंद करने की उनकी मुहिम ने लोगों को चैंकाया था। मीडिया के अंदर घुसपैठ करते खबर छापने की नयी संस्कृति के खिलाफ स्व.जोशी ने देश भर में मुहिम छेड़ी थी। सेमिनारों और सभाओं में वे गरजे-बरसे थे। अंतिम सांस तक वे मीडिया में उत्पन्न पैसे लेकर खबर छापने की संस्कृति के खिलाफ एक जनादेश तैयार करने में जुटे रह थे। करीब पचास साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता में योगदान दे चुके स्व. जोशी जी की बूढ़ी हड्डियों में जवानों जैसी जोश देखने को मिली थी। उनके इस मुहिम से मीडिया में घबराहट/बौखलाहट पैदा हो गया था। लोग गोलबंद भी हुए। हालांकि जोशी जी पर भी सवाल उठ थे। दोनों तरफ से हमला हुआ। इस हमले में एक बात साफ हुई वह यह कि मीडिया के चरित्र से आमलोग अवगत हुए। जो बड़ी बात थी। मीडिया को लेकर लोगों के मन में अविश्‍वास पैदा हुआ। हालांकि स्व. जोशी जी के साथ कुछ मीडिया हाउस ही खड़े थे। जो लोगों को विकल्प देते मिले। प्रभाष जोशी व मीडिया दोनों एक दूसरे के पूरक रहे हैं। दोनों को अलग-अलग कर नहीं देखा जा सकता है। स्व.जोशी जी के मुहिम ने घबड़हाट जरूर पैदा कर दी थी।

मीडिया की यह घबड़हाट पटना में गत वर्ष बारह जून 09 को उस वक्त देखने को मिली थी जब स्व. जोशी लोकतंत्र का ढहता हुआ चौथा स्तंभ विषय पर अपने मुहिम के तहत पटना आये थे। चिलचिलाती धूप और उमस वाली गर्मी के बीच गांधी संग्रहालय पटना में हर वर्ग के लोग जोशी जी के इस मुहिम में सरीक दिख थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि– “पत्रकारिता के अंदर आज जो कुछ हो रहा है यह घंटी मेरे लिये बज रही है। पचास साल तक जिस काम को जिस गर्व के साथ किया उसकी हालत पर दुख होता है। महज पत्रकारिता से हम रोजी नहीं चला रहे हैं। उस काम को आज की परिस्थिति में देखता हू तो ऐसा लगता है उस पर एक रोलर चढ़ा देना पड़ेगा,तभी आगे का जीवन ठीक से चल सकता है। पत्रकारिता का फजीहत, उसका अंत हो, तो अपन ही मर रहे हैं। अपन से केवल पत्रकार का मतलब नहीं है। लोकतंत्र के वह सब लोग जो उस हथियार के साथ हमारे बाकी के भी लोकतंत्र के स्तम्भों पर नजर रखते हैं। पत्रकारिता किसी के मुनाफे या खुशी के लिए नहीं। बल्कि पत्रकारिता लोकतंत्र में साधारण नागरिक के लिये एक वो हथियार है जिसके जरिये वह अपने तीन स्तम्भों न्यायपालिका,विधायिका और कार्यपालिका की निगरानी करता है। अगर पत्रकारिता नष्ट होगी तो हमारे समाज से हमारे लोकतंत्र की निगरानी रखने का तंत्र समाप्त हो जायेगा। साथ ही लोकतंत्र पर उसके स्वतंत्र नागरिक व सच्चे मालिक का अधिकार का भी अंत होगा। इसलिये पत्रकारिता के साथ जो कुछ हो रहा है वह मात्र एक व्यावसायिक चिंता के नाते नहीं करना चाहिये। आज जब पत्रकारिता पर कोड़े बरसाता हूं या धिक्कारता हूं तो मेरी पीठ पर ही पड़ता है। जब पत्रकारिता के वर्तमान हालात पर गाली देने बैठता हूं तो इससे मेरा वजूद भी आहत होता है। पत्रकारिता जगत में आज जो हो रहा है वह सिर्फ एक व्यवसाय है। इसके मूल्य बिखर गए है। उद्देश्य बदल गये है। और इसका सिर्फ एक ही मकसद रह गया है वह है ज्यादा से ज्यादा से पैसे कमाना। चुनाव में जो कुछ हुआ वह धीरे-धीरे वर्षों से हो रहा था लेकिन इस बार लगभग पूरे देश में हुआ। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश,राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, सभी जगहें खबरें बिकी। पार्टियों ने और उम्मीदवारों ने यह तय किया कि अब तक अखबार वाले हम पर निगरानी करते थे हमारी चीजों को देखते, परख़ते हैं, हमारी करतूतों का भंडाफोड़ करते हैं और हम से अलग ऐसी शक्ति बनने की कोशिश करते हैं कि हमें भी नियंत्रित कर सके। ये परिस्थति उनको रास नहीं आती थी। इसलिये उन्होंने बड़े पैमाने पर कोशिश कर, इस बार देश की स्वतंत्र, निष्पक्ष और जांबाज प्रेस को, मीडिया को अपने में शामिल कर लिया। उम्मीदवारों ने इस बार तय किया कि अखबार वालों को कहेंगे कि हमारे बारे में जो भी छापते हो, जो आपकी इच्छा हो छापो, लेकिन हम जो कहते हैं वह भी छापो। और वह विज्ञापन में मत छापो। वह खबरों में छापो। अब अखबारों को इस बात पर उनको इंकार करना चाहिये था। क्योंकि खबर की जो जगह होती है वो अपनी ही देश में ही नहीं सारी दुनिया मे पवित्र जगह मानी जाती है। पवित्र इसलिये मानी जाती है कि दुनिया का कोई भी अखबार पढ़ने वाला पाठक अखबार उठाता है या अखबार खरीदता है तो विज्ञापन के लिये नहीं खरीता है। अखबार लोग खरीदते हैं, उठाते हैं, पढ़ने के लिये, उन्हें खबर चाहिये। बिना खबर के कोई अखबार पाठक खरीद कर नहीं पढ़ेगा। इस बात को सारी दुनिया जानती है। इस बात को विज्ञापन देने वाले भी जानते हैं इसलिये उनकी अब तक इच्छा थी कि हम जो विज्ञापन को दें उसके आस पास हमारी विरोध में कोई खबर नहीं छपनी चाहिये। चुनाव में बड़ा नाटकीय घटनाक्रम हुआ कि नेताओं ने कहा कि मेरा विज्ञापन मत छापो, उम्मीदवारों ने कहा कि हमारे विज्ञापन मत छापो, खबरें छापने के लिए जितना पैसा चाहते हो ले लो, तो अखबारों ने अपनी तरफ से पैकेज बनाया। फोटो, समाचार, इंटरव्यू के लिए अलग अलग पैसा तय किया गया। जिस तरह से विज्ञापन का रेट कार्ड छपता है उसी तरह से उम्मीदवारों को दिया गया। वहीं हर उम्मीदवार ने एक मीडिया सलाहकार अपने पास रखा जो कि खबरों को उनके अनुसार बनाकर देते गये। जब चुनाव होते हैं तो मीडिया की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। मीडिया कसौटी पर होता है। मीडिया का दायित्व है कि पाठक को सही-सही जानकारी दें। किसी भी देश में माना जाता है कि चुनाव के समय मीडिया सही-सही जानकारी दे। ये मीडिया का माना हुआ कर्तव्य है। अपने देश में अखबरों के लिये कमाई का सबसे बड़ा सिजन चुनाव था। मीडिया ने खबरों को विज्ञापन बनाकर बेच दिया। ऐसे में चौथा खंभा इस बार चुनाव में स्वतंत्र होकर खड़ा नहीं हुआ। तो उसकी भूमिका जो लोकतंत्र में निभानी की थी वो उसने नहीं निभायी। अब अगर चुनाव के वक्त ये भूमिका नहीं निभाते हैं तो कब निभायेंगे, चुनाव के वक्त मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभायी। मीडिया अपनी निष्पक्ष भूमिका कब निभायेगी ,उन्होंने कहा कि मीडिया की जिम्मेदारी होती है कि वह निर्णायक क्षणों में पाठकों को सही-सही जानकारी दे,ताकि वह तय कर सके कि किस पार्टी व दल को वोट देना है। लेकिन, इस महती भूमिका को निभाने में मीडिया फेल हो गया। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, तीसरे स्तंभ के भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वतंत्र होकर खड़ा नहीं हो सका। पत्रकारिता पैसे वालों के हाथों बिक जायेगी, तो लोकतंत्र को मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी। लेग, पैग और मारूति की जिनकी लालसा है, वे पत्रकारिता में प्रवेश न करें, क्योंकि दलाली पत्रकारिता की मजबूरी नहीं है।”

जोशी जी की इस पीड़ा के खिलाफ वहीं पटना की मीडिया उनके इस मुहिम पर बटा दिखा था। जिन अखबारों के खिलाफ पैसे लेकर खबर छापने की संस्कृति पर स्व. जोशी गरजे- बरसे थे उन अखबारों ने उन्हें तब्बजों नहीं दी। दूसरी ओर अंग्रेजी अखबारों ने ब्लैक आउट कर दिया दिया था।

यह कटुता… घृणा…प्रभाष जोशी जी के विचारों के आगे बौनी नजर आयी हैं। हालांकि चर्चा होना लाजमी है। विचार व व्यक्ति की लड़ाई में मीडिया घालमेल करे तो परिणाम चैंकाने वाले हैं। जिन खतरों की ओर प्रभाष जोशी आगाह करते रहे उसकी परिणति आज साफ दिख रही है। तभी तो वह गुंज संसद और चुनाव आयोग में सुनाई दी । राज्यसभा में सांसदों ने पैसे लेकर मीडिया द्वारा खबर छापने की खतरनाक बढ़ती प्रवृति के खिलाफ गंभीर चर्चा की। यही नहीं सरकार से अनुरोध भी किया गया कि लोकतंत्र के हित में इस पर अंकुश लगाया जाये। सांसदों ने मीडिया द्वारा पैसे लेकर खबर छापने को लोकतंत्र के लिए घातक बताया। जबकि स्व. प्रभाष जोशी ने देश भर में मुहिम चलाकर इसे पत्रकारिता के लिए खतरनाक सोच करा दिया था। हालांकि उस समय राजनीति से जुड़े लोगों ने कोई कोहराम नहीं मचाया था। और न ही स्व. जोशी के साथ खड़े हुए । कुछ अखबार व पत्रकारों ने भले ही उनके साथ कंधा से कंधा मिलाया। लम्बे समय के बाद सत्ता के गलियारे में पहुंचने वाले गोलबंद हुए, अच्छी बात है लेकिन अनका दबाव कितना असरदार होगा यह तो आने वाले चुनाव के दौरान ही पता चल पायेगा। पैसे लेकर खबर छापने की मीडिया के सोच के खिलाफ केवल सांसद ही नहीं बल्कि पिछले ही दिनों मुख्य निर्वाचन आयुक्त नवीन चावला ने भी चिंता व्यक्त की और इसे गलत करार भी दिया। भोपाल में नेशनल इलेक्शन वाच यानी राष्ट्रीय चुनाव निगरानी नामक स्वैच्छिक संगठन की ओर से आयोजित छठे राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्री चावला ने पैसे लेकर खबर देने को सबसे गलत बताते हुए मीडिया से आग्रह किया कि इस बुराई को रोकने के लिए वे आत्म संयम अपनाये। श्री चावला ने कहा कि मीडिया को पैसे लेकर खबर देने की प्रवृति पर रोक लगाने के वास्ते स्वयं ही मानक तैयार करने होंगे। क्योंकि इससे लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है।

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संजय कुमार
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।समाचार संपादक, आकाशवाणी, पटना पत्रकारिता : शुरूआत वर्ष 1989 से। राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में, विविध विषयों पर ढेरों आलेख, रिपोर्ट-समाचार, फीचर आदि प्रकाशित। आकाशवाणी: वार्ता /रेडियो नाटकों में भागीदारी। पत्रिकाओं में कई कहानी/ कविताएं प्रकाशित। चर्चित साहित्यिक पत्रिका वर्तमान साहित्य द्वारा आयोजित कमलेश्‍वर कहानी प्रतियोगिता में कहानी ''आकाश पर मत थूको'' चयनित व प्रकाशित। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा ''नवोदित साहित्य सम्मानसहित विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा कई सम्मानों से सम्मानित। सम्प्रति: आकाशवाणी पटना के प्रादेशिक समाचार एकांश, पटना में समाचार संपादक के पद पर कार्यरत।

2 COMMENTS

  1. स्वर्गीय प्रभाष जोशी का उनके जन्म दिन पर स्मरण करने के लिए आपको ह्रदय से धन्य्ब्बाद ..भारत के सांस्कृतिक वैभव से परिपूर्ण किन्तु अधुनातन प्रगतिशील विचारों के बलाहक .क्रिकेट evm any mahtwpun rajnetik सामाजिक आर्थिक मसलों पर देश को सार्थक दिशा निर्देशन
    करने में आजीवन बिना किसी दर भय या स्वार्थ के निरंतर
    गतिमान कलम के अजेय योद्धा को क्रन्तिकारी श्रद्धांजलि .

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